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________________ सूत्र ६७८-६८४ तिर्यक् लोक : लवणसमुद्र वर्णन गणितानुयोग ३५५ लवणसम द्द-पएसाणं जबुद्दीवफासाइ लवणसमुद्र के प्रदेशों का जम्बूद्वीप से स्पर्श६७८. ५०-लवणस्स णं भंते ! समुद्दस्स पदेसा जंबुद्दीवं दीवं पुट्ठा? ६७८. प्र०-भगवन् ! लवणसमुद्र के प्रदेश क्या जम्बूद्वीप (नामक) द्वीप से स्पृष्ट हैं ? उ०-हंता ! पुट्ठा। उ०-हाँ स्पृष्ट हैं। ५०-ते णं भंते ! कि लवणसमुद्दे जंबुद्दीवे दीवे ? प्र०-भगवन् ! क्या वे (प्रदेश) लवणसमुद्र हैं या जम्बूद्वीप (नामक) द्वीप है ? उ०-गोयमा ! लवणे णं ते समुद्दे नो खलु ते जंबुद्दीवे उ०—गौतम ! वे (प्रदेश) लवणसमुद्र हैं किन्तु वे (प्रदेश) दीवे। -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १४६ जम्बूद्वीप (नामक) द्वीप नहीं है। जंबुद्दीवजीवाणं लवणसम हे उप्पत्ति जम्बूद्वीप के जीवों की लवणसमुद्र में उत्पत्ति६७६. ५०-जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे जीवा उद्दाइत्ता उद्दाइत्ता ६७६. भगवन् ! जम्बूद्वीप (नामक) द्वीप के जीव मर-मरकर लवणसमुद्दे पच्चायंति? ___ क्या लवणसमुद्र में उत्पन्न होते है ? उ०-गोयमा ! अत्थेगतिया पच्चायंति, अत्थेगतिया नो उ०-गौतम ! कुछ उत्पन्न होते हैं और कुछ उत्पन्न नहीं पच्चायति । -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १४६ होते हैं । लवणसम दस्स जीवाणं जंबुद्दीवे उप्पत्ति- लवणसमुद्र के जीवों की जम्बूद्वीप में उत्पत्ति१०.५०-लवणे गं भंते ! समुद्दे जीवा उद्दाइत्ता उद्दाइत्ता जंबु- ६८०. प्र०-भगवन् ! लवणसमुद्र के जीव मर-मर कर क्या दीवे दीवे पच्चायंति ? जम्बूद्वीप (नामक) द्वीप में उत्पन्न होते हैं ? उ.-गोयमा ! अत्थेगतिया पच्चायंति, अत्थेगतिया नो उ०-गौतम ! कुछ उत्पन्न होते है और कुछ उत्पन्न नहीं पच्चायति । -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १४६ होते हैं । लवणसम दस्स दारचउक्कं लवणसमुद्र के चार द्वार६८१.५०-लवणस्स णं भंते ! समुदस्स कति दारा पण्णता? ६८१. प्र०-भगवन् ! लवणसमुद्र के द्वार कितने कहे गये हैं ? उ.-गोयमा ! चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा-१. विजए, उ०-गौतम ! चार द्वार कहे गये हैं, यथा-(१) विजय, २. वेजयंते, ३. जयंते, ४. अपराजिते । (२) वैजयन्त, (३) जयन्त, (४) अपराजित । ६८२.५०-कहिणं भंते ! लवणसमुद्दस्स विजए णामं दारे पण्णते? ६८२ प्र०--भगवन् ! लवणसमुद्र का विजय नामक द्वार कहाँ कहा गया है? उ०-गोयमा ! लवणसमुद्दस्स पुरथिमपेरते, धायइसंडस्स उ०-गौतम ! लवणसमुद्र के पूर्वान्त में, घातकीखण्ड द्वीप दीवस्स पुरथिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं, सीओदाए महा- के पूर्वाध के पश्चिम में और शीतोदा महानदी के ऊपर लवणनदीए उप्पि-एत्थ णं लवणसमुद्दस्स विजए णामं दारे समुद्र का विजय नामक द्वार कहा गया है। बह आठ योजन पण्णत्ते । अट्र जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि ऊपर की ओर ऊँचा है, चार योजन चौड़ा है। जोयणाइं विक्खंभेणं। एवं तं चेव सव्वं जहा जंबुद्दीवस्स विजयस्ससरिसे । इसका सम्पूर्ण वर्णन जम्बूद्वीप के विजयद्वार के सदृश है। ६८३. रायहाणी पुरत्थिमेणं अण्णमि लवणसमुद्दे । ६८३. इसकी राजधानी पूर्व में अन्य लवणसमुद्र में है। ६८४. प०-कहि णं भंते ! लवणसमुद्दे वेजयंते नामं दारं पण्णते? ६८४.प्र०-भगवन् ! लवणसमुद्र का वैजयन्त नामक द्वार कहाँ कहा गया है ? १ जंबु० वक्ख० ६, सु० १२४ की संक्षिप्त वाचना है। २ ठाणं ४. उ. २, सु. ३०५।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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