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________________ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : लवणसमुद्र वर्णन सूत्र ६७५-६७७ १३. सोया-सीतोदगासु सलिलासु देवयाओ महिड्ढिी- (१३) शीता और शीतोदगा नदियों में महधिक-यावत्याओ-जाव-पलिओवमद्वितीयाओ परिवसति । तेसि गं पल्योपम की स्थिति वाली देवियां रहती है-उनके प्रभाव से पणिहाए लवणसमुद जाव-नो चेव णं एगोदगं करेंति। लवणसमुद्र-यावत्-जलप्लावित नहीं करता है । १४. देवकुरू-उत्तरकुरूसु वासेसु मणुया पगतिभद्दया (१४) देवकुरू और उत्तरकुरू क्षेत्र में भद्रप्रकृति वाले-जाव-विणीता-तेसि णं पणिहाए लवणे समुद्दे-जाव- यावत्-विनीत मनुष्य रहते हैं उनके प्रभाव से लवणसमुद्रनो चेव णं एगोदगं करेंति ।। यावत्-जलप्लावित नहीं करता है। १५. मंदरे पन्वते देवा महिड्ढीया-जाव-पलिओवमट्ठि- (१५) मेरुपर्वत पर महधिक-यावत्-पल्योपम की स्थिति तीया परिवसंति । तेसि णं पणिहाए लवणसमुद्दे-जाव- वाले देव रहते हैं-उनके प्रभाव से लवणसमुद्र-यावत् -जलनो चेव णं एगोदगं करेंति। प्लावित नहीं करता है। १६. जंबूए य सुदंसणाए जंबुद्दीवाहियती अणाढीए णाम (१६) जम्बू सुदर्शन वृक्ष पर महधिक-यावत्-पल्योपम देवे महिड्ढीए-जाव-पलिओवमद्वितीए परिवसंति । तस्स की स्थिति वाला जम्बूद्वीप का अधिपति अनाधृत नामक देव पणिहाए लवणसमुद्दे नो उवीलेति नो उप्पीलेति नो रहता है, उसके प्रभाव से लवणसमुद्र जम्बूद्वीप को बहाता नहीं है चव णं एकोदगं करेंति । उत्पीडित नहीं करता है और जलप्लावित नहीं करता है। १७. अदुत्तरं च णं गोयमा ! एसालोगढिती लोगाणु- (१७) अथवा हे गौतम ! लोक स्थिति एवं लोकानुभान ही भावे जण्णं लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो उवोलेति नो ऐसा है जिसके कारण लवणसमुद्र जम्बूद्वीप (नामक) द्वीप को उप्पोलेति नो चेव णं एगोदगं करेंति ।' बहाता नहीं है, उत्पीडित नहीं करता है और जलप्लावित नहीं -जीवा. पडि, ३, उ. २, सु. १७३ करता है । लवणसम हे दव्वसरूवं लवणसमुद्र में द्रव्यों का स्वरूप६७६. ५०-अस्थि णं भंते ! लवणसमुद्दे दब्वाइं ६७६. प्र०-हे भगवन् ! लवणसमुद्र में द्रव्यसवण्णाइं पि, अवण्णाई पि, वर्णसहित भी हैं, वर्णरहित भी है, सगंधाई पि, अगंधाई पि, गंधसहित भी हैं. गंधरहित भी है, सरसाइं पि, अरसाई पि, रससहित भी हैं, रसरहित भी है, सफासाइं पि, अफासाई पि, स्पर्शसहित भी हैं, स्पर्श रहित भी है, अण्णमण्णबद्धाइं अण्णमण्ण पुट्ठाई, परस्पर बद्ध है, परस्पर स्पृष्ट हैं, अण्णमण्णबद्धपुट्ठाई, अण्णमण्ण घडताए चिट्ठन्ति ? परस्पर बद्ध-स्पृष्ट हैं, परस्पर सम्बद्ध हैं ? उ०-हंता गोयमा ! अस्थि । उ०-हाँ गौतम ! हैं। -भग. स. ११, उ. ६, सु. २६ जंबुद्दीवपएसाणं लवणसम दृफासाइ जम्बूद्वीप के प्रदेशों का लवणसमुद्र से स्पर्श६७७. प०-जंबुद्दीवस्स णं भंते ! दीवस्स पएसा लवणं समुद्दे ६७७. प्र०-भगवन् ! जम्बुद्वीप (नामक) द्वीप के प्रदेश क्या पुट्ठा? लवणसमुद्र से स्पृष्ट है ? उ०-हंता । पुट्ठा। उ०-हाँ स्पृष्ट हैं। प०-ते णं भंते ! कि जंबुद्दीवे दोवे लवणसमुद्दे ? प्र०-भगवन् ! क्या वे (प्रदेश) जम्बूद्वीप हैं या लवण समुद्र हैं ? उ०-गोयमा ! जंबुदीवे नो खलु ते लवणसमुद्दे ।। उ०-गौतम ! वे (प्रदेश) जम्बूद्वीप (नामक) द्वीप है किन्तु -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १४६ लवणसमुद्र नहीं है । (ख) भग. स. ३, उ. ३ सु.१७ । १ (क) भग. स. ५, उ. २, सू.१८ । २ जंबु० वक्ख० ६, सु० १२४ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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