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________________ सूत्र ६७५ तिर्यक् लोक : लवणसमुद्र वर्णन गणितानुयोग ३५३ M २. गंगा-सिंधु-रत्ता-रत्तवईसु सलिलासु देवयाओ-जाव- (२) गंगा सिन्धु रक्ता और रक्तवती नदियों में महधिकपलिओवमद्वितीयाओ परिवसंति । तेसि णं पणिहाए यावत्-पल्योपम की स्थिति वाली देवियाँ रहती है-उनके लवणसमुद्द-जाव-नो चेव णं एगोदगं करेंति । प्रभाव से लवणसमुद्र-यावत-जलप्लावित नहीं करता है। ३. चुल्लहिमवंत-सिहरेसु वासहरपन्वतेसु देवा महि- (३) लघुहिमवन्त और शिखरी वर्षधर पर्वत पर महधिकड्ढिया-जाव-पलिओवमद्वितीया परिवसंति । तेसि णं यावत्-पल्योपम की स्थिति वाले देव रहते हैं उनके प्रभाव से पणिहाए लवणसमुद्द-जाव-नो चेव णं एगोदगं करेंति। लवणसमुद्र-यावत्- जलप्लावित नहीं करता है। ४. हेमवतेरण्णवतेसु वासेसु मणुया पगतिभद्दया-जाव- (४) हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्रों में भद्र प्रकृति वाले मनुष्य विणीता-तेसि णं पणिहाए लवणसमुद्दे-जाव-नो चैव रहते हैं-यावत्-विनीत मनुष्य रहते हैं उनके प्रभाव से लवणणं एगोदगं करेंति । समुद्र-यावत्-जलप्लावित नहीं करता है। ५. रोहिता-रोहितंस-सुवण्णकूल-रुष्पकूलासु सलिलासु (५) रोहिता, रोहितांशा, सुवर्णकूला और रूप्यकूला नदियों देवयाओ महिड्ढियाओ-जाव-पलिओवमद्वितीयाओ में महधिक-यावत्-पल्योपम की स्थिति वाली देवियाँ रहती हैंपरिवति । तेसि णं पणिहाए लवणसमुद्दे -जाव-नो उनके प्रभाव से लवणसमुद्र-यावत्-जलप्लावित नहीं करता है। चेव णं एगोदगं करेंति ।' ६. सद्दावति-वियडावतिवट्टवेयड्ढपव्वतेसु देवा महि- (६) शब्दापाति और विकटापति वृत्तवैताढ्य पर्वतों पर डिढया-जाव-पलिओवमद्वितीया परिवसंति । तेसि णं महधिक-यावत्-पल्योपम की स्थिति वाले देव रहते हैंपणिहाए लवणसमुद्दे -जाव-नो चेव णं एगोदगं करेंति। उनके प्रभाव से लवणसमुद्र-यावत्-जलप्लावित नहीं करता है। ७. महाहिमवंत-रुप्पिसु वासहरपन्वतेसु देवा महिड्ढिया (७) महाहिमवंत और रुक्मिवर्षधर पर्वत पर महधिक-- -जाव-पलिओवमद्वितीया परिवसंति । तेसि णं पणिहाए यावत्-पल्योपम की स्थिति वाले देव रहते हैं उनके प्रभाव से लवणसमुद्द-जाव-नो चैव णं एगोदगं करेंति । लवणसमुद्र-यावत्-जलप्लावित नहीं करता है। परिवास-रम्मयवासेसु मणुया पगतिभद्दया-जाव- (८) हरिवर्ष और रम्यक्वर्ष में भद्र प्रकृति वाले मनुष्य विणीता-तेसि णं पणिहाए लवणे समुद्द-जाव-नो चेव रहते हैं-यावत्-विनीत मनुष्य रहते है-उनके प्रभाव से णं एगोदगं करेंति । लवणसमुद्र-यावत्-जलप्लावित नहीं करता है । ६. गंधावति-मालवंतपरिताएसु वट्टवेयड्ढपव्वतेसु देवा (8) गंधापाति और माल्यवंत पर्याय वृत्त वैताढ्य पर्वतों पर महिडिया-जाव-पलिओवमद्वितीया परिवसंति । तेसि महधिक-यावत्-पल्योपम की स्थिति वाले देव रहते हैंण पणिहाए लवणसमुह-जाव-नो चेव णं एगोदगं करति। उनके प्रभाव से लवणसमुद्र-यावत् -जलप्लावित नहीं करता है। १०.णिसढ-नीलवतेसु वासधरपव्वतेसु देवा महिड्ढिया (१०) निषध और नीलवन्त वर्षधर पर्वत पर महधिक-जाव-पलिओवमद्वितीया परिवसंति । तेसि णं पणिहाए यावत्-पल्योपम की स्थिति वाले देव रहते हैं-उनके प्रभाव से लवणसमुद्द-जाव-नो चेव णं एगोदगं करेंति। लवणसमुद्र-यावत्-जलप्लावित नहीं करता है। ११. सव्वाओ दहदेवयाओ भाणियवाओ। (११) सभी द्रह देवियों का भी कथन करना चाहिएपउमद्दह-पुण्डरीअद्दह-महापउमद्दह-महापुण्डरीअद्दह- पद्मद्रह पुण्डरीकद्रह महापद्मद्रह महापुण्डरीकद्रह तिगिच्छतिगिच्छिहह-केसरिद्दहावसाणेसु देवा महिड्डिया-जाव- द्रह और अन्तिम केशरीद्रहों पर महधिक-यावत्-पल्योपम पलिओवमद्वितीया परिवसंति । तेसि गं पणिहाए की स्थिति वाले देव रहते हैं उनके प्रभाव से लवणसमुद्रलवणसमुद्दे-जाव-नो चेव णं एगोदगं करेंति । यावत् --जलप्लावित नहीं करता है। १२. पुम्वविदेहावरविदेहेसु वासेसु अरिहंत-चक्कवट्टि- (१२) पूर्व विदेह और अपरिविदेह (महाविदेह) क्षेत्र में अर्हन्त बलदेव-वासुदेवा चारणा विज्जाहरा समणा समणीओ चक्रवर्ती वासुदेव चारण विद्याधर श्रमण-श्रमणियाँ श्रावकमणया पगतिमद्दया-जाव-विणीता तेसि णं पणिहाए श्राविकायें तथा भद्र प्रकृति वाले–यावत्-विनीत मनुष्य रहते लवणसमुद्दे-जाव-नो चैव णं एगोदगं करेंति । हैं-उनके प्रभाव से लवणसमुद्र-यावत्-जलप्लावित नहीं करता है। १ आगमोदयसमिति से प्रकाशित प्रति में-नदियों के नामों में रोहिता नदी का नाम छुटा है। १ द्रहों के नामों में पुंडरीकद्रह- महापद्व्ह, महापुण्डरीकद्रह का नाम छूटा हुआ है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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