________________
३५२
लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : लवणसमुद्र वर्णन
सूत्र ६७२-६७५
३. संखस्स ३. जूयगस्स,
इसी प्रकार संख आवासपर्वत के पूर्वी चरमान्त से युपक
पातालकलश के पश्चिमी चरमान्त का अन्तर है। ४. दगसीमस्स ४. ईसरस्स,
___इसी प्रकार दकसीम आवासपर्वत के पूर्वी चरमान्त से
-सम. ५२, सु. २, ३ ईसर पातालकलश के पश्चिमी चरमान्त का अन्तर है। गोधुभाइचरमन्ताओ वलयामुहमहापायालाइ मज्झ- गोस्तूपादि पर्वतों के चरमान्तों से वलयामुखादि महापाताल भागाणमन्तरं--
कलशों के मध्यभागों का अन्तर६७३. गोथुभस्स णं आवासपव्वयस्स पुरथिमिल्लाओ चरमंताओ ६७३. गोस्तूप आवासपर्वत के पूर्वी चरमान्त से वलयामुखपाताल
वलयामुहस्स महापायालस्स बहुमज्झदेसभाए एस णं सत्तावन्नं कलश के मध्यभाग का व्यवहित अन्तर सत्तावन हजार योजन का जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते,
कहा गया है। एवं २. दगभासस्स २. के उगस्स,
इसी प्रकार दकभास आवासपर्वत के पूर्वी चरमान्त से केतुक
पातालकलश के मध्यभाग का अन्तर है। ३. संखस्स ३. जूयगस्स,
इसी प्रकार संख आवासपर्वत के पूर्वी चरमान्त से यूपक
पातालकलश के मध्यभाग का अन्तर है। ४. दगसीमस्स ४. ईसरस्स,
इसी प्रकार दकसीम आवासपर्वत के पूर्वी चरमान्त से
-सम. ५७, सु. २, ३ ईसर पातालकलश के मध्यभाग का अन्तर है। गोभ चरमन्ताओ बलयामुहमहापायाल मज्झभायस्स गोस्तूप के चरमान्त से वलयामुख महापातालकलश के अंतरं
मध्यभाग का अन्तर६७४. गोथुभस्स आवासपव्वयस्स पुरथिमिल्लाओ चरमंताओ ६७४. गोस्तूप आवासपर्वत के पूर्वी चरमान्त और वलयामख
वलयामुहस्स महापायालस्स बहुमज्मदेसभाए एस णं अट्ठावण्णं पातालकलश के मध्यभाग का व्यवहित अन्तर अट्रावन हजार जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ।
योजन का कहा गया है। एवं चउदिसि पि नेयव्वं, -सम. ५८, सु. ३, ४ इसी प्रकार चारों दिशाओं में जानना चाहिए। लवणसमुद्दजलावपीडणाओ जंबुद्दीवस्स अबाहाए लवणसमुद्र के जल से जम्बूद्वीप के जलमग्न न होने के कारणाणि
कारण६७५.५०--जहणं भंते ! लवणसमुद्दे दो जोयणसतसहस्साई ६७५. प्र०-भगवन् ! यदि लवणसमुद्र की चक्राकार चौड़ाई दो
चक्कवालविक्खंभेणं, पण्णरसजोयणसयसहस्साई एका-, लाख योजन की है, पन्द्रह लाख इक्यासी हजार एक सौ गुनतालीस सीति च सहस्साई सतं इगुयाल किंचिबिसेसूणे परिक्खे- योजन से कुछ कम की परिधि है, एक हजार योजन की गहराई वेणं, एग जोयणसहस्सं उब्वेहेणं, सोलसजोयणसहस्साई है, सोलह हजार योजन की ऊंचाई है और सतरह हजार योजन सव्वग्गणं पण्णत्ते ।
___ का सर्वाग्र कहा गया है। कम्हाणं भंते ! लवणसमुद्दे जंबुद्दीव दीवं नो उवीलेति, तो भगवन् ! किस कारण से लवणसमुद्र जम्बूद्वीप नामक द्वीप नो उप्पोलेति नो चेव णं एक्कोदगं करेंति ? को बहाता क्यों नहीं है, उत्पीड़ित क्यों नहीं करता है और जल
मग्न क्यों नहीं करता है ? उ०-१. गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे भरहेरवएसु वासेसु उ०-(१) गौतम ! जम्बूद्वीप (नामक) द्वीप के भरत और
अरहंतचक्कवट्टि-बलदेव-वासुदेवा चारणा विज्जाधरा ऐरवत क्षेत्र में अर्हन्त (तीर्थंकर), चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, चारण समणा समणीओ सावया सावियाओ मणुया एगधच्चा (जंधाचारण और विद्याचारण मुनि) विद्याधर; श्रमण-श्रमणियाँ पगतिभट्टया पगतिविणीया पगतिउवसंता पगतिपयणु- श्रावक-श्राविकायें हैं तथा भद्र प्रकृति वाले, विनीत प्रकृति वाले, कोह-माण-माया-लोभा मिउमद्दवसंपन्ना अल्लीणा उपशांत प्रकृति वाले, अल्पक्रोध मान माया-लोभ की प्रकृति वाले, महगा विणीता-तेसि णं पणिहाते लवणे समुद्दे मार्दवसम्पन्न अलिप्त भद्र एवं विनीत मनुष्य रहते हैं-उनके जंबुट्टीवं दीवं नो उवीलेति, नो उप्पोलेति, नो चेव णं प्रभाव से लवणसमुद्र जम्बूद्वीप (नामक) द्वीप को बहाता नहीं है. एगोदगं करेंति ।
उत्पीडित नहीं करता है और जलप्लावित नहीं करता है ।