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________________ सूत्र ६५३-६५६ तिर्यक् लोक : लवणसमुद्र वर्णन गणितानुयोग ३४७ ... गोथभ आवासपव्वयस्स णामहेऊ गोस्तूप आवासपर्वत के नाम का हेतु६५३. ५०-से केण? गं भंते ! एवं बुच्चइ-गोथूभे आवास- ६५३. प्र०-भगवन् ! किस कारण से गोस्तूप आवासपर्वत को पव्वए, गोथूभे आवासपव्वए ? गोस्तूप आवासपर्वत कहा जाता है ? उ०—गोयमा ! गोथू णं आवासपन्वते तत्थ तत्थ देसे तहिं उ०-गौतम ! गोस्तूप आवासपर्वत पर जगह-जगह अनेक तहिं बहुओ खुड्डाखुड्डियाओ-जाव-गोथूभवण्णाई बहूई छोटी छोटी (वापिकायें)-यावत्-गोस्तूप वर्ण वाले अनेक उप्पलाइं तहेव-जाव-गोथूभे तत्थ देवे महिड्ढीए-जाव- कमल है उसी प्रकार-यावत्-महधिक-यावत्-पल्योपम पलिओवमट्टितीए परिवसति । की स्थिति वाला गोस्तूप देव वहाँ रहता है । से णं तत्थ चउण्हं सामाणियसाहस्सोणं-जाव-गोथूभस्स . वह वहाँ चार हजार सामानिक देवों के (साथ)-यावत्आवासपवतस्स गोथूभाए रायहाणीए-जाव-विहरति । गोस्तूप आवासपर्वत की गोस्तूपा राजधानी में-यावत्-विचरण करता है। से तेण?णं गोयमा ! एवं वुच्चइ-गोथूभे आवास- गौतम ! इसी कारण से गोस्तूप आवासपर्वत शाश्वतपव्वए सासए-जाव-णिच्चे। यावत्-नित्य कहा गया है । -जीवा० पडि० ३, उ० २, सु० १५६ गो)भा रायहाणी गोस्तूपा राजधानी६५४. ५०-कहि णं भंते ! गोथूभस्स भुगिदस्स भुजगरायस्स ६५४ प्र०-हे भगवन् ! गोस्तूप भुजगेन्द्र भुजगराज की गोस्तूपा गोथूभा रायहाणी पण्णता? राजधानी कहाँ कही गई है ? उ०-गोयमा ! गोथूभस्स आवासपटवतस्स पुरत्थिमेणं हे गौतम ! गोस्तूप आवासपर्वत के पूर्व में तिरछे असंख्यद्वीप तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीतिवईत्ता अण्णं मि लवण- समुद्र लाँघने पर अन्य लवणसमुद्र में (राजधानी है) वही प्रमाण समुद्दे तं चेव पमाणं, तहेव सव्वं ।' है। उसी प्रकार सब है। -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १५६ दओभासपव्वयस्स अवट्ठिइ पमाणं य दकभास आवासपर्वत की अवस्थिति और प्रमाण६५५. १०-कहिणं भंते ! सिवगस्स वेलंधरणागरायस्स दओभास- ६५५. प्र०-भगवन् ! शिवक वेलंधर नागराज का दकभास णामे आवासपव्वते पण्णते? नाम का आवासपर्वत कहाँ कहा गया है ? उ०-गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दक्खिणेणं उ०-गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत से दक्षिण लवणसमुहबायालीसं जोयणसहस्साई ओगाहित्ता- में लवणसमुद्र में बियालीस हजार योजन जाने पर शिवक वेलंधर एत्थ णं सिवगस्स वेलंधरणागरायस्स दोभासे णामं नागराज का दकभास नामक आवासपर्वत कहा गया है। आवासपव्वते पण्णत्तं । तं चेव पमाणं जं गोथूभस्स । णवरि सव्वअंकामए, जो गोस्तूप (आवासपर्वत) का प्रमाण है वही इसका प्रमाण , अच्छे-जाव-पडिलवे-जाव- अट्ठो भाणियब्वो। है। विशेष यह है कि पूरा पर्वत अंकरत्नमय है स्वच्छ है-यांवत् -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १५६ -मनोहर है-यावत्-नाम का हेतु कहना चाहिए। दओभासपव्वयस्स णामहेउ . दकभास आवासपर्वत के नाम का हेतु६५६. प०-से केण?णं मंते ! एवं बुच्चइ-"दओभासे नाम ६५६. प्र०-हे भगवन् ! किस कारण से दकभास आवासपर्वत आवासपवए, दोभासे नामं आवासपव्वए ?" को दकभास आवासपर्वत कहा जाता है? १ गोयमा ! गोथूभस्स आवासपव्वयस्स दुवालस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता गोथूभस्स भुजगिंदस्स भुजगरायस्स गोथूभा नामरायहाणी पण्णत्ता, सा च विजयारायहाणी सरिसी वत्तव्वया । (टीकान्तर्गत पाठान्तर)
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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