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________________ ६४८ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : लवणसमुद्र वर्णन सूत्र ६५६-६६० उ०-गोयमा ! दोभासे णं आवासपन्वते लवणसमुद्दे अट्ठ- उ०-गौतम ! दकभास आवासपर्वत लवणसमुद्र के आठ जोयणियखेत्ते दगं सवतो समंता ओमासेति उज्जोवेति योजन जितने क्षेत्र में जल को सब ओर से अवभासित करता है, तवति पभासेति। उद्योतित करता है, तपाता है और प्रभासित करता है। --जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १५६ सिविगा रायहाणी शिविका राजधानी६५७. सिवए इत्थ देवे महिड्ढीए-जाव-रायहाणी । ६५७. यहां शिवक महधिक देव है यावत्-राजधानी (का वर्णन) कहें, से दओभासस्स पब्वयस्स दक्खिणेणं अण्णंमि लवणसमुद्दे वह शिविका राजधानी दकभासपर्वत के दक्षिण में है। सिविगा रायहाणी दओभासस्स । सेसं तं चेव । शेष पूर्ववत् है। -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १५६ संखस्स आवासपव्वयस्स अवट्टिई पमाणं य- शंख आवासपर्वत की अवस्थिति और प्रमाण६५८. ५०-कहिणं भंते ! संखस्स वेलंधरणागरायस्स संखे णामं ६५८. प्र०-भगवन् ! शंख वेलंधर नागराज का शंख नामक आवासपन्वते पण्णते? आवासपर्वत कहाँ कहा गया है ? उ०-गोयमा ! जंबुद्दीवे गं वीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थि- उ०-गौतम ! जम्बूद्वीप (नामक) द्वीप के मेरुपर्वत से मेणं लवणं समुह बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता पश्चिम में लवणसमुद्र में बियालीस हजार योजन जाने पर शंख -एत्थ णं संखस्स वेलंधरणागरायस्स संखे णाम आवास- वेलंधर नागराज का शंख नामक आवासपर्वत है। पर्वत का पन्वते । तं चेव पमाणं, णवरं सब्वरयणामए अच्छे प्रमाण गोस्तूप पर्वत के समान है। विशेष यह है कि-पूरा पर्वत -जाव-पडिरूवे । रत्नमय है, स्वच्छ है-यावत्-मनोहर है। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं-जाव- वह पर्वत एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से (सब अट्रो बहओ खडाखुड्डियामओ-जाव-बहूई उप्पलाई संखा- ओर से घिरा हुआ है)-यावत्-नाम का हेतु कहना चाहिए। भाई संखवण्णाई संखवष्णामाई । अनेक छोटी-छोटी (वापिकायें)-यावत्-अनेक उत्पल हैं। वे -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १५६ शंख जैसी आभा वाले हैं, शंख जैसे वर्ण वाले हैं, शंख जैसे वर्ण की आभा वाले हैं। संखा रायहाणी शंखा राजधानी६५६. संखे एत्थ देवे महिड्ढीए-जाव-रायहाणीए पच्चत्थिमेणं, ६५६. वहाँ शंख (नामक) देव महधिक है-यावत्-राजधानी पश्चिम में है। संखस्स आवासपब्वयस्स संखा नामं रायहाणी, तं चेव शंख आवासपर्वत की शंखा नाम की राजधानी है। राजधानी पमाणं। -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १५६ का प्रमाण गोस्तूपा राजधानी के प्रमाण के समान है। दगसीम आवासपब्वयस्स अवट्रिइ पमाणं य- दकसीम आवासपर्वत की अवस्थिति और प्रमाण-- ६६०.५०-कहि णं भंते ! मणोसिलगस्स वेलंधरणागरायस्स दग- ६६०. प्र०-भगवन् ! मनःशिलाक वेलंधर नागराज का दकसीम सीमे णामं आवासपवते पण्णत्ते? नामक आवासपर्वत कहाँ कहा गया है ? उ०-गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं, उ०-गौतम ! जम्बूद्वीप (नामक) द्वीप के मेरुपर्वत से उत्तर लवणसमुह बायालीसं जोयणसहस्साई ओगाहित्ता- में लवणसमुद्र में बियालीस हजार योजन जाने पर मनःशिलाक एत्थ मणोसिलगस्स वेलंधरणागरायस्स दगसीमे वेलंधर नागराज का दकसीम नामक आवासपर्वत कहा गया है । णामं आवासपवते पण्णत्ते । तं चेव पमाणं, णवरि पर्वत का प्रमाण गौस्तूपपर्वत के समान है। विशेष यह है कि- सव्वफलिहामए अच्छे-जाव-अट्ठो। पूरा पर्वत स्फटिक रत्नमय है स्वच्छ है-यावत् -नाम का हेतु -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १५६ कहना चाहिए।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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