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________________ ३४६ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक्लोक : लवणसमुद्र वर्णन सूत्र-६५०-६५२ प०-एतेसि णं भंते ! चउण्हं वेलंधरणागरायाणं कति प्र०-भगवन् ! इन चार वेलंधर नागराजों के आवासपर्वत आवासपव्वता पण्णत्ता? कितने कहे गये हैं ? उ०-गोयमा ! चत्तारि आवासपव्वता पण्णत्ता, तं जहा- उ०-गौतम ! चार आवासपर्वत कहे गये हैं, यथा१. गोथूभे, २. उदगमासे, ३. संखे, ४. दगसीमे।' (१) गोस्तूप, (२) उदकभास, (३) शंख, (४) दकसीम । - -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १५६ गोथूभ आवासपव्वयस्स अवट्ठिई पमाणं य- गोस्तूप आवासपर्वत की अवस्थिति और प्रमाण६५१. ५०-कहि णं भंते ! गोथूभस्स वेलंधरणागरायस्स गोथूभे ६५१. प्र०-भगवन् ! गोस्तूप वेलंधर नागराज का गोस्तूप आवासपवते पण्णत्ते ? आवासपर्वत कहाँ कहा गया है ? उ०-गोयमा ! जंबुद्दीबे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं उ०-गौतम ! जम्बूद्वीप (नामक) द्वीप के मेरुपर्वत से पूर्व लवणं समुद्दबायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता- में लवणसमुद्र में बियालीस हजार योजन जाने पर यहाँ पर एत्थ णं गोथूभस्स भुजगिदस्स भुजगरायस्स बेलंधर- गोस्तूप भुजगेन्द्र भुजगराज नामक वेलंधर नागराज का गोस्तूप णागरायस्स गोथूभे णामं आवासपव्वते पण्णत्ते। नामक आवासपर्वत कहा गया है। सत्तरसएक्कवीसाइं जोयणसताई उड्ढे उच्चत्तेणं, सत्रह सौ इक्कीस योजन ऊपर की ओर ऊँचा है । चत्तारि तीसे जोयणसते कोसं च उब्वेधणं, चार सौ, तीस योजन और एक कोश (भूमि में) गहरा है । मूले दसबावीसे जोयणसते आयाम-विवखंभेणं, मूल में एक हजार बावीस (१०२२) योजन लम्बा-चौड़ा है। मझे सत्ततेवीसे जोयणसते आयाम-विक्खंभेणं, मध्य में सात सौ, तेवीस (७२३) योजन लम्बा-चौड़ा है। उरिं चत्तारि चउवीसे जोयणसते आयाम-विक्खंभेणं, ऊपर चार सौ, चौबीस (४२४) योजन लम्बा-चौड़ा है। मूले तिणि जोयणसहस्साई दोणि य बत्तीसुत्तरे मूल में तीन हजार, दो सौ, बत्तीस (३२३२) योजन से कुछ जोयणसते किंचि विसेसूणे परिक्खेवेणं, कम की परिधि है। मझे दो जोयणसहस्साई दोण्णि य छलसीते जोयणसते मध्य में दो हजार, दो सौ, छियासी (२२८६) योजन से कुछ किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं, अधिक की परिधि है। उरि एगं जोयणसहस्सं तिण्णि य ईयाले जोयणसते ऊपर एक हजार, तीन सौ इकतालीस (१३४१) योजन से किंचि विसेसूणे परिक्खेवेणं । कुछ कम की परिधि है। मूले वित्थिण्णे, मज्झे संखित्ते, उप्पि तणुए गोपुच्छ- मूल में विस्तृत, मध्य में संक्षिप्त और ऊपर से पतला है, संठाणसंठिए सव्वकणगामए अच्छे-जाव-पडिरूवे। गाय के पूंछ के आकार जैसा है, पूरा कनकमय है स्वच्छ है यावत्-प्रतिरूप है। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं वह एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से चारों ओर से सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते । दोण्हवि वण्णओ। घिरा हुआ है । यहां दोनों का वर्णन कहना चाहिए। ६५२. गोथूभस्स णं आवासपन्वतस्स उरि बहुसमरमणिज्जे भूमि- ६५२. गोस्तूप आवासपर्वत के ऊपर अधिक सम एवं रमणीय भागे पण्णत्ते-जाब-तत्थ णं बहवे नागकुमारा देवा आसयंति भूभाग कहा गया है-यावत्-वहाँ पर बहुत से नागकुमार देव सयंति-जाव-विहरति । बैठते हैं, सोते हैं-यावत्-विचरण करते हैं। तस्स ण बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए उस अधिक सम एवं रमणीय भूभाग के ठीक मध्य भाग में -एत्थ णं एगे महं पासायवढेसए। एक महान् प्रासादावतंसक है। बावट्ट जोयणद्धं च उड्ढं उच्चत्तेण, तं चेव पमाणं । (वह) साढ़ा बासठ योजन ऊपर की ओर ऊँचा है, उसका वही द्ध आयाम-विवखंभेणं वण्णओ-जाव-सीहासणं सपरिवारं। प्रमाण है । उसका आधा (सवा बत्तीस योजन) लम्बा-चौड़ा है । -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १५६ प्रासाद का वर्णन-यावत्-सपरिवार सिंहासन का वर्णन है । १ ठाणं, अ. ४, उ. २, सु. ३०५। २ सम. १७, सु. ४ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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