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________________ सूत्र ६३४-६३६ तिर्यक् लोक : लवणसमुद्र वर्णन गणितानुयोग ३४१ ६३३. से गं वणसंडे देसूणाई दो जोयणाई चवकवालविक्खंभेणं ६३३. वह वनखण्ड कुछ कम दो योजन चक्रवाल चौड़ा है -जाव-विहरइ। -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १५४ यावत्-(देव) विचरण करते हैं । लवणसमुद्दस्स उदगमाल पमाणं लवणसमुद्र की उदकमाला का प्रमाण६३४. ५०-लवणस्स णं भंते ! समुद्दस्स के महालए उदममाले ६३४. प्र०-भगवन् ! लवणसमुद्र की उदकमाला कितनी विशाल पण्णत्ते? ___ कही गई हैं ? उ०-गोयमा ! दसजोयणसहस्साई उदगमाले पण्णत्ते । उ०-गौतम ! उदकमाला दस हजार योजन की कही -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १७१ गई है । लवणसम दस्स उव्वेहाईणं पमाणं लवणसमुद्र के उद्व धादि का प्रमाण६३५. प०-लवणे णं भंते ! समुद्दे केवतियं उव्वेहेणं पण्णत्ते ? ६३५. प्र०-भगवन् ! लवणसमुद्र की गहराई कितनी कही गई है? उ.-गोयमा ! एग जोयणसहस्सं उब्वेहेणं पण्णत्ते । ___उ०-गौतम ! एक हजार योजन की गहराई कही गई है। ६३६. ५०-लवणे णं भंते ! समुद्दे केवतियं उस्सेहेणं पण्णत ? ६३६. प्र०-भगवन् ! लवणसमुद्र की ऊँचाई कितनी कही गई है ? उ०-गोयमा ! सोलसजोयणसहस्साई उस्सेहेणं पण्णत्ते। उ०-गौतम ! सोलह हजार योजन की ऊँचाई कही गई है। ६३७. ५०-लवणे णं भंते ! समुद्दे केवतियं सव्वग्गेणं पण्णत्ते ? ६३७. प्र०-भगवन् ! लवणसमुद्र का सर्वाग्र कितना कहा गया है। उ०-गोयमा ! सत्तरसजोयणसहस्साई सम्वग्गेणं पण्णत्ते। उ०-गौतम ! सतरह हजार योजन का सर्वाग्र कहा -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १७२ गया है। लवणसमुदस्स उव्वेहपरिवुड्ढी लवणसमुद्र में गहराई की वृद्धि६३८. ५०-लवणे णं भंते ! समुद्दे केवतियं उठवेहपरिवड्ढोते ६३८. प्र०-भगवन् ! लवणसमुद्र में गहराई की वृद्धि कितनी पण्णते? कही गई है ? उ०-गोयमा ! लवणस्स णं समुद्दस्स उभओ पासिं पंचाण- उ.- गौतम ! लवणसमुद्र के दोनों ओर (जम्बूद्वीप की उति पंचाणउति पदेसे गंता पदेसं उब्वेहपरिवुड्ढीए वेदिका एवं लवणसमुद्र की वेदिका के अन्त से आरम्भ करके) पण्णते। पंचानवे पंचानवे प्रदेश जाने पर एक एक प्रदेश गहराई की वृद्धि कही गई। पंचाणति पंचाणउति वालग्गाई गंता वालग्गं उन्वेह- पंचानवे पंचानवे वालाग्र जाने पर एक-एक वालाग्र गहराई परिवुड्ढोए पण्णत्ते। की वृद्धि कही गई है। पंचाणउति पंचाणउति लिक्खाओगंता लिक्खा उब्वेह- पंचानवे पंचानवे लीक्षा जाने पर एक-एक लीक्षा गहराई की परिवुड्ढीए पण्णत्ते । वृद्धि कही गई है। एवं पंचाणउइ जवाओ जवमज्झे अंगुल-विहत्थि-रयणी- इसी प्रकार पंचानवे पंचानवे यव, यवमध्य, अंगुल, वितस्ति, कुच्छी-धण-गाउय-जोयण-जोयणसत-जोयणसहस्साई रनि, कुक्षी, धनुष, गाउ, सौ योजन और हजार योजन पर एकगंता जोयणसम्हसं उन्वेहपरिवुड्ढीए। एक यव, यवमध्य-यावत्-हजार योजन गहराई की वृद्धि कही -जीवा. पडि. ३, उ, २, सु. १७० गई है। लवणसमुदस्स उस्सेहपरिवुड्ढी लवणसमुद्र की उत्सेध परिवृद्धि६३६. प०-लवणे णं भंते ! समुद्दे केवतियं उस्सेहपरिवुड्ढीए ६३६. प्र०-भगवन् ! लवणसमुद्र की उत्सेधपरिवद्धि (शिखापण्णते? वृद्धि) कितनी कही गई है ? १ उदकमाला-समपानीयोपरिभूता। २ ठाणं. १०, सु० ७२० । ३ सम. १६, सु.७। ४ सम. १७, सु.५। ५ सम.६५ सु.३।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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