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________________ सूत्र ६२५-६२८ गाहा— १ जस्स व जो विश्वंभो ओहोणोतस्स तसिओ व पढमाइयाण परिरतो जाण सेसाण अहिओ उ ॥ तिर्यक लोक लवणसमुद्र वर्णन ऐसा जहा एगुरुवदीवसा जाब- सुदन्तदीये, देवलोकपरिग्गहा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो । - जीवा० पडि० ३ सु० ११२ — उ०- गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं सिहरिस्त बासधरयस्वयरस उत्तरपुरथिमिलाओ चरिताओ समुद्द तिग जोयसाई ओगाहिता एत्थ णं उत्तरिल्लाणं एगुरुयमणुस्साणं एगुरुयदीवे णामं दीवे पण्णत्ते । एवं जहा दाहिणिल्लाणं तहा उत्तरिल्लाणं भाणितव्वं, णवरं - सिरिस्स वासहरपव्वयस्स विदिसासु, एवं - जाव - सुद्धदन्तदीवेत्ति' - जाव - सत्तं अन्तरदीवका । - जीवा० पडि० ३, सु० ११२ लवणसमुद्दवण्णओ लवणसमुद्दस्स संठाणं, विक्खंभ-परिक्खेव पमाणं च६२७. जंबुद्वीनामंदी सब नाम समुद्दे व बलयागारठाण संठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता णं चिट्ठति । -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १५४ ६२८. प० - लवणे णं मंते ! समुद्द े कि संठिए पण्णत्ते ? - उत्तरिल्लाणं एगोरुयाइदीवाणं ठाणप्पमाणाइं अत्तरेय एकोरकादि द्वीपों के स्थान प्रमाणादि ६२६. ० -- कहि णं भंते ! उत्तरिल्लाणं एगुरुयमणुस्साणं एगुरुय - ६२६. प्र० - हे भदन्त ! औत्तरेय एकोरुक मनुष्यों का एकोरुक दीवे णामं दीवे पण्णत्ते ? द्वीप नाम का द्वीप कहाँ कहा गया है ? उ०- हे गौतम ! जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर में शिखरी वर्षधर पर्वत के उत्तर-पूर्वान्त के अन्तिम भाग से सव समुद्र में तीन सौ योजन जाने पर औत्तरेयएकोक मनुष्यों का एकोरुकद्वीप नामक द्वीप कहा गया है । - , उ०- गोयमा ! गोतित्यसंठिते, नावासंठाणसंठिते, सिप्पिसंपुटिते सपठिते बलभिसंहिते, बट्टे वलया आसखंधसंटिते गारसंठाणसंठिते पण्णत्ते ! - जीवा. पडि ३, उ. २, सु. १७२ भग० स० १० उ०७-२८ सु० १ । गणितानुयोग ३३६ गाथार्थ जिस द्वीप का जो विष्कम्भ है उसका उतना ही अवगाहन अन्तर है । प्रथमादि द्वीप चतुष्क की जितनी परिधि है शेष चतुष्कों की परिधि उनसे अधिक है । शुद्धदन्तद्वीप पर्यन्त शेष सब एकोरुकद्वीप के समान है । हे आयुष्मान् श्रमण ! वे मनुष्य देवलोक में उत्पन्न होते हैं । जिस प्रकार दाक्षिणात्य मनुष्यों के द्वीप कहे उसी प्रकार औसरेय मनुष्यों के द्वीप कहने चाहिए। विशेष – शिखरी वर्षधर पर्वत की विदिशाओं में शुद्धदन्त द्वीप पर्यन्त ये सात अन्तरद्वीप हैं । लवण समुद्रवर्णन लवणसमुद्र का संस्थान, विष्कम्भ और परिधि का प्रमाण६२०. वृत एवं वलयाकार संस्थान से स्थित सवगसमुद्र जम्बूद्वीप को चारों ओर से घेरकर स्थित है । ६२८. प्र० – भगवन् ! लवणसमुद्र का संस्थान (आकार) कैसा कहा गया है ? उ०- गौतम ! लवणसमुद्र गोतीर्थ संस्थान, नावा-संस्थान, शुक्तासंपुट-संस्थान, अश्वस्कंध संस्थान, बलभीगृह संस्थान, वृत्त और वलयाकार संस्थान से स्थित कहा गया है ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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