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________________ ३३८ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : अन्तरद्वीप वर्णन सूत्र ६२५ ६२५. ५०-कहि णं भंते ! दाहिणिल्लाणं सक्कुलिकण्ण-मणुस्साणं ६२५. प्र०-हे भदन्त ! दाक्षिणात्य शष्कुलिकर्ण मनुष्यों का सक्कुलिकण्णदीवे नाम दीवे पण्णत्ते ? शकुलिकर्णद्वीप नाम का द्वीप कहाँ कहा गया है ? उ०-गोयमा ! गंगोलियदीवस्स उत्तर-पच्चथिमिल्लाओ उ०-हे गौतम ! नंगोलिकाद्वीप के उत्तर-पश्चिमान्त के चरिमंताओ लवणसमुद्द चत्तारि जोयणसयाई ओगा- अन्तिम भाग से लवणसमुद्र में चार सौ योजन जाने पर दाक्षिहित्ता, एत्थ णं दाहिणिल्लाणं सक्कुलिकण्णम तुस्साणं णात्य शष्कुलिकर्ण मनुष्यों का शष्कुलिकर्णद्वीप नाम का द्वीप सक्कुलिकण्णदीवे नाम दीवे पण्णत्ते । कहा गया है। सेसं जहा हयकण्णाणं तहेव निरवसेसं भाणियव्वं । शेष सब हयकर्णद्वीपवासी मनुष्यों के समान कहना चाहिए। आयंसमुहाईयं दीवचउक्कं आदर्शमुखादिकद्वीप चतुष्क(पंचजोयणसयाई ओगाह) (ये पांच सौ योजन अवगाहन के बाद हैं ।) आसमुहाईयं दीवचउक्कं अश्वमुखादिक द्वीप चतुष्क(छ जोयणसयाई ओगाह) (ये छह सौ योजन अवगाहन के बाद हैं।) आसकन्नाईयं दीवचउक्कं अश्वकर्णादिक द्वीप चतुष्क(सत्त जोयणसयाई ओगाह) (ये सात सौ योजन अवगाहन के बाद हैं ।) उक्कामुहाईयं दीवचउक्कं उल्कामुखादिक द्वीप चतुष्क(अट्ठ जोयणसयाई ओगाह) (ये आठ सौ योजन अवगाहन के बाद हैं ।) घणदंताईयं दीवचउक्कं घणदंतादिक द्वीप चतुष्क(नव जोयणसयाई ओगाह) (ये नव-सौ योजन अवगाहन के बाद हैं।) गाहा गाथार्थएग्ररुयपरिक्खेवो नव चेव सयाई अउणपन्नाई। (१) एकोरुकादि द्वीप चतुष्क की परिधि नौ सौ योजन की है। बारसपन्नट्ठाई हयकण्णाईणं परिक्खेवो ॥ (२) हयकर्णादि द्वीप चतुष्क की परिधि बारा सौ पैंसठ योजन की हैं। आयसमूहाईणं पन्नरसेकासीए जोयणसते किंचिविसे- (३) अश्वमुखादिक द्वीप चतुष्क की परिधि पन्द्रह सौ साधिए परिक्खेवेणं । इक्यासी योजन से कुछ अधिक कहे हैं। एवं एएणं कमेणं उवउंजिऊण तव्वा चत्तारि चत्तारि इस प्रकार इस क्रम से उपयोग लगाकर चार चार द्वीपों एगपमाणा। को परिधि एक समान जाननी चाहिए। णाणत्तं ओगाहे, विखंभे परिक्खेवे । अवगाहन, विष्कम्भ और परिधि नाना प्रकार के हैं। पढम-बीय-तइय-चउक्काणं उग्गहो विक्खंभो परिक्खेवो प्रथम, द्वितीय और तृतीय, चतुष्क की परिधि कही गई है। भणिओ। चउत्यचउक्के छजोयणसयाई आयामविक्खंभेणं, चतुर्थ द्वीप चतुष्क का आयाम-विष्कम्भ छ सौ योजन का अट्ठारसत्ताणउते जोयणसते परिक्खेवेणं । है। अठारह सौ नब्वे योजन की परिधि है। पंचमचउक्के सत्त जोयणसताई आयामविक्वंभेणं, पंचम द्वीप चतुष्क का आयाम-विष्कम्भ सात सौ योजन का बावीस तेरसोत्तरे जोयणसए परिक्खेवेणं । है। बावीस सौ तेरह योजन को परिधि है। छट्टचउक्के अद्वजोयणसताई आयामविक्खंभेणं, पणुवीसं छठे द्वीप चतुक का आयाम-विष्कम्भ आठ सौ योजन का गुणतीसंजोयणसए परिक्खेवेणं । है। पच्चीस सौ गुणतीस योजन की परिधि हैं। सत्तमचउक्के नवजोयणसताई आयामविक्खंभेणं, दो सप्तम द्वीप चतुष्क का आयाम-विष्कम्म नौ सौ योजन का जोयणसहस्साई अट्र पणयाले जोयणसए परिक्वेवेणं । है। दो हजार आठ सौ पैंतालीस योजन की परिधि है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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