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________________ सूत्र ६२० ६२४ ति लोक अन्तरद्वीप वर्णन : चरिमंताओं दाणि पश्यत्थिमेणं लवणसमुद्द तिष्णि जोयणसयाई ओगाहिता, एस्थ णं शहिणिस्लाणं गंगो लियमणुस्साणं णंगुलियद्दीवे नामं दीवे पण्णत्ते । सेसं जहा एगुरुयाणं तहेव निरवसेसं भाणियव्वं । उ०- गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं सहिमवंतस्स बासहरवस्वपस्स उत्तर पम्चत्थि मिल्लाओ चरिमंताओ उत्तर-पच्चत्विमेणं लवणसमुद्द तिमि जोयणसवाई ओगा हिसा, एस्थ नं दाहिमित्तानं साणियमणुस्साणं वेसाणियदीवे नामं दीवे पण्णत्ते । से वहा एगुस्यागं तहेब निश्वसेस भाणिय -जीवा. पडि. ३, सु. १११ ६२१. प० – कहि णं मंते ! दाहिणिल्लाणं वेसाणियमणुस्साणं वेसा - ६२१. प्र० - हे भदन्त ! दाक्षिणात्य वैसाणिक मनुष्यों का वैाणिकद्वीप नाम का द्वीप कहीं कहा गया है ? जिद्दीने नाम दीये पण्यते ? बारसजोयणसया पण्णट्ठी किचिविसेसूणा परिवखेवेणं, से णं एगाए पउमचरयाए से जहा एगुरुयाणं तव निरवसेसंभागिय ६२२.० मते । दाहिजिल्ला गयकरण-मराणं गय कण्णदीवे नामं दीवे पण्णत्ते ? हमकण्णाइयं दीव चउप हयकर्णादिक द्वीप चतुष्क ६२२. प०—–कहि णं भंते ! दाहिणिल्लाणं हयकण्णमणस्साणं हय- ६२२. प्र० - हे मदन्त ! दाक्षिणात्य हयकर्ण मनुष्यों का हय कर्ण कण्णदीवे नामं दीवे पण्णत्ते ? द्वीप नाम का द्वीप कहाँ कहा गया है ? उ०- गोयमा ! एगोरुयदीवस्स उत्तर-पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ लवणसमुद्र चत्तारि ओवणसपाई ओमाहिला एस्य णं दाहिगिल्लाणं हथकण्णमनुस्साणं हमकण्णयीये नामं दीवे पण्णत्ते । चत्तारि जोयणसयाई आयाम विक्खंभेणं । उ०- गोयमा ! आभासियदोवस्त दाहिण पुरथिमिल्लाओ परिमताओ लवणसमुद्र चलारि जोसपाई भोगाहित्ता, एत्थ णं दाहिणिल्लाणं गयकष्णमणुस्साणं गय कण्णदीवे नामं दीवे पण्णत्ते । गणितानुयोग ३३७ सेसं जहा हयकण्णाणं तहेव निरवसेसं भाणियव्वं । ६२४. १० – कहि मं भंते! दाहिणिल्लाणं गोकणमस्ताणं गोकण्णदीवे नामं दीवे पण्णत्ते ? दक्षिण-पश्चिम में सयणसमुद्र में तीन सौ योजन जाने पर दाक्षिणात्य नांगोलिक मनुष्यों का नांगोलिकद्वीप नाम का द्वीप कहा गया है। यस एकteesोपवासी मनुष्यों के समान कहना चाहिए। उ०- गोयमा ! बेसाणियदीवस्स दाहिण-पच्चत्थिमिल्लाओ चरिताओ लवणसमुद्र' चत्तारि जोपणसबाई ओगा हित्ता एत्य गं दाहिणिल्लाणं योकण्णम गुस्साणं गोकणदीवे नामं दीवे पण्णत्ते । सेसं जहा हमकण्णाणं तहेव निरवसेसं भाणियव्वं । उ०- हे गौतम! जम्बूद्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में लुइहिमवन्त वर्षधर पर्यंत के उत्तर-पश्चिमान्त के अन्तिम भाग में उत्तर-पश्चिम में लवणसमुद्र में तीन सौ योजन जाने पर दाक्षिणात्य वैसालिक मनुष्यों का सालिकद्वीप नाम का द्वीप कहा गया है । शेष सब एकोवक द्वीप के मनुष्यों के समान कहना चाहिए। उ०- हे गौतम! एकोरुद्वीप के उत्तर-पूर्वान्त के अन्तिम भाग से लवणसमुद्र में चार सौ योजन जाने पर दाक्षिणात्य - कर्ण मनुष्यों का हवकर्षद्वीप नाम का द्वीप कहा गया है। उस द्वीप की लम्बाई-चौड़ाई चार सौ योजन की कही गई है। बारह सौ पैंसठ योजन से कुछ कम की परिधि कही गई है। यह एक पद्मवेदिका से चारों ओर घिरा हुआ है। शेष सब एकोपवासी मनुष्यों के समान कहना चाहिए। ६२२. प्र० भदन्त ! दाक्षिणात्य गजकर्ण मनुष्यों का गजकर्णद्वीप नाम का द्वीप कहाँ कहा गया है ? उ०- हे गौतम | आभाविकद्वीप के दक्षिणपूर्वान् के अन्तिम भाग से लवणसमुद्र में चार सौ योजन जाने पर दाक्षिणात्य गजकर्ण मनुष्यों का गजकर्णद्वीप नाम का द्वीप कहा गया है । शेष समीपवासी मनुष्यों के समान कहना चाहिए। ६२४. प्र०—हे मदत! दाक्षिणात्य गोकर्ण मनुष्यों का गोकर्णद्वीप नाम का द्वीप कहाँ कहा गया है ? उ०- हे गौतम! वैसालिकद्वीप के दक्षिण-पश्चिमान्त के अन्तिम भाग से लवणसमुद्र में चार सौ योजन जाने पर दाक्षिणात्य गोकर्ण मनुष्यों का गोकर्णद्वीप नाम का द्वीप कहा गया है। शेब सब हयकर्णद्वीपवासी मनुष्यों के समान कहना चाहिए।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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