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________________ ३३२ लोक-प्रज्ञप्ति तियेक लोक अन्तरद्वीप वर्णन : चाल-लक अपलित-अवपद-गवारक-विचित्त बटुक-मविक सुति - चारू पिणया-कंचण मणि रयण मत्तिविचित्ता भायण विधीए बहुमारा । तब से गंगा मगणा, अगबहुविविह्वीससाए, परिषताए भाजणविधीए उपवेया फलेहि पुनाविव विसन्ति कुल- विकुल- विबुद्ध-मूला जान- चिट्ठन्ति । जहा से मुग-पणन-हर- करडि-डिडिम गंगा-होरंभ" कणिया-खरसंखिरिली परिवाइस-वेणुबीना सुधोस बिंचि महति मिरिगसिंगा"- हलाल" कंसताल-सुपडता आलो. विधिणिउणगंधव्वसमयकुसल हि फंदिया, तिद्वाणसुद्धा, - तव ते तुडियंगयावि दुमगणा, अणेगबहुविविधवीससा - परिणामाए रात-वित पण-मुसिराए चढबिहाए आतोज्ज विहीए उपवेदा कहिं पुष्णा विसन्ति कुल विकुल- विमुखमूला जाब चिन्ति 1 (१४) बरग (१५) पी. (१६) चाल, (१०) व्यस्तक कवलित (१८) अवय, (१६) दगवारक पानी का घड़ा, ( २० ) सचित्र वर्तन (२१) मणिजटित वर्तन, (२२) सीप का वर्तन, (२३) बरु, (२४) पौनक अफीम लेने का पात्र, (२५) सचित्र स्वर्णपात्र, (२६) सचित्र मणिपात्र, (२७) सचित्र रत्नजटिल पात्र आदि अनेक प्रकार के पात्र होते हैं । " उसी प्रकार 'भृतांग' नाम के वृक्ष समूह भी अनेक स्वभावसिद्ध पात्राकार युक्त फलों से पूर्ण विकसित हैं, ६११. एगोरुगदीवे णं दीवे तत्थ तत्थ बहवे तुडियंगा णाम दुमगणा ६११. हे आयुष्मान् श्रमण ! एकोरुद्वीप के अनेक स्थानों में पण्णत्ता समणाउसो ! 'ग' नाम के अनेक वृक्षों के समूह कहे गये है। उन वृक्षों के मूल कुश =डाभ, विकुश बल्वजघास रहित हैं अतएव विशुद्ध हैं । सूत्र ६१०-६१२ = 1 जिस प्रकार ( १ ) आलिंग - भुरज, (२) मृदंग, (३) पणव, (४) पट (५) वर, (६) करी, (७) डिडिम, (८) गंभा (१) होरंभ, (१०) कणिका (११) खरमुली (१२) मुकुन्द (१३) लका, (१४) परिली (१५) बच्च (१६) परिवादिनी (१७) वंस, (१८) वेणुवीणा, (१६) सुघोषा, (२०) विपंची, (२१) महति, (२२) कच्छभी, (२३) रिगिसिगिका, (२४) तलताल, (२५) कांस्यताल आदि विविध वाद्यों के बजाने में निपुण संगीतशास्त्रकुशलों द्वारा बजाये गये त्रिस्थान (आदि-मध्य और अवसान स्थानों से ) शुद्ध वाद्य होते हैं, उसी प्रकार त्रुटितांग नाम के द्रुमगण भी अनेक प्रकार के स्वभावसिद्ध वाद्य विधानों से युक्त फलों से पूर्ण विकसित है। उन वृक्षों के मूल कुश - डाभ, विकुश – बल्वजघास रहित हैं अतएव शुद्ध हैं । १ 'आलिगोनाम' यो वादकेन आलिय वायते, 'सुरज' इति २ 'मृगङ्गो' लघुमर्दनः । ३ ' पणवः' भाण्डपटह 1 ४ 'दर्द्दरिको' यस्य चतुभिश्चरणैरवस्थानं भुवि स गोधाचर्मावनद्धो वाद्य विशेषः । ५ 'डिंडिम:' प्रथम प्रस्तावना सूचकः पणवविशेषः । ६ भंभा ढक्का | ७ होरंभा महाढक्का । ६ 'मुकुन्द' - मुरजविशेषो, यो अतिलीनं प्रायो वाद्यते । १०पा ११ पिरली वच्चको तृणरूपवाद्यविशेषौ । १२ रिगिसिगिका घार्यमाण वादित्र विशेष, देशिभाषायां - 'रणसिंगा' इति प्रसिद्धः । १३ तास हस्तपुस्ति न ६१२. एगोरुयदीवे णं दीवे तत्थ तत्थ बहवे दीवसिहा णाम दुमगणा ६१२. हे आयुष्मन् श्रमण ! एकोरुकद्वीप के अनेक स्थानों में पण्णत्ता समणाउसो ! 'दीपशिखा' नाम के अनेक वृक्षों का समूह कहा गया है। ८ खरमुही काहला । विशेषस्तथापि तदुत्थित शब्दप्रतिकृतिः शब्द सत्यते ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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