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________________ ३३० लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : अन्तरद्वीप वर्णन सूत्र ६०७-६०८ ... तं जहा-बहरामया निम्मा एवं वेश्यावण्णओ भाणि- यथा-उसकी वज्रमय नींव-आधारभूमियाँ हैं इस प्रकार यव्वो।' वेदिका का वर्णन कहना चाहिए। सा णं पउमवरवेइया एगेणं वणसंडेणं सव्वओ समंता वह पद्मवरवेदिका एक वनखण्ड से चारों ओर घिरी संपरिक्खित्ता। हुई है। से णं वणसंडे देसूणाई दो जोयणाई चक्कवालविक्खंभेणं, वह वनखण्ड कुछ कम दो योजन चारों ओर चौड़ा है। वेइयासमेणं परिक्खेवेणं पण्णत्ते, वेदिका के समान उस वनखण्ड की परिधि कही गई है। से गं वणसडे किण्हे किण्होभासे एवं वणसंडवण्णओ वह वनखण्ड सघन वृक्ष समूह से श्याम एवं श्याम जैसा भाणियव्वो। प्रतीत हो रहा है। तणाण य वण्ण-गंध-फासो सद्दो तणाणं वावीओ उप्पाय- तृणों के वर्ण, गंध और स्पर्श तथा तृणों के शब्द, वापिकायें, पव्वया पुढविसिलापट्टगा य भाणियवा-जाव-तत्थ णं बहवे उत्पात पर्वत, पृथ्वी शिला पट कहने चाहिए यावत्-वहाँ अनेक वाणमंतरा देवा य देवीओ य आसयंति-जाव-विहरंति । वाणव्यन्तर देव-देवियाँ बैठते हैं-यावत्-विहरण करते हैं । -जीवा. पडि. ३, सु. १०६-११० एगोरुयदीवे वणमाला एकोरुकद्वीप में वनमाला६०८. एगोरुयदीवस्स णं दीवस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे ६०८. एकोरुकद्वीप में सर्वथा सम एवं रमणीय भूभाग कहा पण्णत्ते. गया है। से जहाणामए आलिंगपुक्खरेति वा, जिस प्रकार मृदंगतल है। एवं सणिज्जे भाणितब्वे-जाव-पुढविसिलापट्टगंसि तत्थ णं इसी प्रकार शय्या कहनी चाहिए-यावत्-पृथ्वीशिलापट बहवे एगुरुयदीवया मणुस्सा य, मणुस्सीओ य आसयंति-जाव- पर अनेक एकोरुकद्वीप के मनुष्य और स्त्रियाँ बैठते हैं-यावत विहरंति । विहरण करते हैं। एगुरुयदीवे णं दीवे तत्थ तत्थ देसे तहि तहिं बहवे उद्दा- हे आयुष्मान् श्रमण ! एकोरुकद्वीप में अनेक जगह अनेक लका कोद्दालका कतमाला णयमाला गट्टमाला सिंगमाला उद्दालक, कोद्दालक, कृतमाल, नत्तमाल, नृत्यमाल, शृङ्गमाल, संखमाला दंतमाला सेलमालगा णाम दुमगणा पण्णत्ता शंखमाल, दंतमाल, शैलमाल नाम के वृक्षों का समूह कहा समणाउसो ! गया है। कुस-विकुस-विसुद्ध-रुक्खमूला मूलमंतो कंदमंतो-जाव-बीय- कुश, विकुश आदि निकालकर जिन वृक्षों के मूल शुद्ध किए मंतो पत्तेहि य पुप्फेहि य अच्छण्णपडिच्छण्णा सिरीए अतीव गये हैं ऐसे शुद्ध मूल वाले कंद वाले-यावत्-बीज वाले, वृक्ष अतीव उवसोभेमाणा उवसोहेमाणा चिट्ठन्ति । पत्र एवं पुष्पों से आच्छादित तथा शोभा से अत्यन्त सुशोभित हैं। एक्कोरुयदीवे णं दीवे रुक्खा बहवे हेरुयालवणा भेरुया- एकोरुकद्वीप में हेरेताल-भैरुताल, मेरुताल, सेरुताल आदि लवणा मेरुयालवणा सेरुयालवणा सालवणा सरलवणा सत्त- अनेक प्रकार के तालवृक्षों के वन हैं । साल, सरल, सप्तवर्ण, पूतफल, वण्णवणा पूतफलिवणा खज्जूरिवणा णालिएरिवणा कुस- खजूर, नालियर आदि वृक्षों के अनेक वन हैं । सभी वृक्षों के मूल, विकुस-विसुद्ध-रुक्खमूला-जाव-चिट्ठन्ति । कुश, विकुश रहित हैं, अतएव शुद्ध हैं । एगुरुयदीवे गं तत्थ तत्थ बहवे तिलया लवया नग्गोधा एकोरुकद्वीप में अनेक जगह अनेक तिलक, लवक, न्यग्रोध -जाव-रायरुक्खा गंदिरुक्खा कुस-विकुस-विसुद्ध-रुक्खमूला -यावत्-राजवृक्ष, नंदिवृक्ष हैं । कुश विकुश रहित उनके मूल -जाव-चिन्ति। एगुरुयदीवे णं तत्थ बहूओ पउमलयाओ-जाव--सामलयाओ एकोरुक द्वीप में अनेक जगह अनेक पद्मलताएँ-यावत्निच्चं कुसुमिताओ, एवं लयावण्णओ-जाव-पडिरूवाओ। सामलताएँ सदा पुष्पयुक्त हैं, इस प्रकार लता-वर्णक कहना चाहिए-यावत्-मनोहर है। १ जहा रायपसेणईए तहा भाणियव्वा । २ एवं जहा रायपसेणइय वणसंडवण्णओ तहा निरवसेसं भाणियब्वं । . ३ जहा उववाइए।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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