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________________ सूत्र ६०५-६०७ प० - जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे एरवएवासे कति तित्था पण्णत्ता ? उ०- -गोयमा ! तओ तित्था पण्णत्ता, तं जहा - १. मागहे, २. वरदामे, ३. पभासे । तिर्यक् लोक : अन्तरद्वीप वर्णन प० - जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे महाविदेहे वासे एगमेगे चक्क - विजए कति तित्या पण्णत्ता ? उ० -गोयमा ! तओ तित्था पण्णत्ता, तं जहा- १. मागहे, २. वरदामे, ३. पभासे' । एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे एगे बिउत्तरे तित्यसए भवतीतिमश्यायंति। - जंबु० वक्ख० ६, सु० १२५ उ०- गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं ल्लहिमवतस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरपुरच्छिमिल्लाओ चरिताओ लवणसमुद्द तिनि जोयसाई ओगाहिता एत्थ णं दाहिणिल्लाणं एगोरुयमणुस्साणं एगुरुयदीवे णामं दीवे पण्णत्त । तिन्नि जोयणसयाइं आयामविक्खंभेणं, व एगूणपण्णजोयणसए कि चिविसेसेणं परिक्खेवेणं, एवाए मरवाए एवं च यणसं समता संपरिक्खित्ते । सवओ - जीवा. पडि. ३, उ. १, सु. १०६ - पउमवरवेयाए वणसंसय पमाणं६०७. सामवेडया अटु जोगाई · उपयसे पंच धणुसयाई विवखंभेणं, एगूरुयदीवं सव्वओ समता परिक्खेवेणं पण्णत्ता । तीसे परमवरवंड्याए अयमेवास्ये यण्णावासे से गणितानुयोग ३२६ अन्तरदीवगाणं परवणाएगोरीवाइणं ठाणण्यमाणाई अंतरद्वीपों की प्ररूपणाएकोरुकद्वीप के स्थान - प्रमाणादि ६०६. प० – कहि णं भंते! दाहिणिल्लाणं एगोरुयमणुस्साणं एगो ६०६. प्र० - हे भदन्त ! दक्षिण दिशा के - दाक्षिणात्य एकोरुक मनुष्यों का एकोद्वीप नाम का द्वीप कहाँ कहा गया है ? रुयदीवे णामं दीवे पण्णत्ते ? प्र० - भगवन् ! जम्बूद्वीप ( नामक ) द्वीप के ऐरवतक्षेत्र में कितने तीर्थ कहे गये हैं ? उ०- गौतम ! तीन तीर्थ कहे गये हैं, यथा - (१) मागध, (२) वरदाम, (३) प्रभास । प्र० - भगवन् ! जम्बूद्वीप ( नामक ) द्वीप के महाविदेह क्षेत्र के प्रत्येक चक्रवर्ती विजय में कितने तीर्थ कहे गये हैं ? उ०- गौतम ! तीन तीर्थ कहे गये हैं, यथा - ( १ ) मागध (२) वरदाम, (३) प्रभास । इस प्रकार सब मिलाकर जम्बूद्वीप (नामक द्वीप में एक सी दो तीर्थ हैं- ऐसा कहा गया है। उ०- हे गौतम! जम्बूद्वीप के मन्दर पर्वत से दक्षिण में हिमवन्त वर्षधर पर्वत के अन्तिम उत्तरपूर्वान्त से लवणसमुद्र में तीन सौ योजन जाने पर दक्षिणदिशा के एकोरक वाले मनुष्यों का एकोरुकद्वीप नाम का द्वीप कहा गया है । वह तीन सौ योजन लम्बा-चौड़ा है । नव सौ उनपचास योजन से कुछ अधिक उसकी परिधि है । एक पद्मवर वेदिका और एक वनखण्ड से वह चारों ओर घिरा हुआ है। पद्मवरवेदिका और वनखण्ड का प्रमाण ६०७. वह पदमवरवेदिका आठ योजन ऊँची और पांच सौ धनुष चौड़ी है। उससे एकोरुकद्वीप चारों ओर से घिरा हुआ ह गया है । उस पद्मवर वेदिका का यह और इस प्रकार वर्णन कहा गया है । १ जम्बूद्वीप में १०२ तीर्थों की गणना इस प्रकार है भरत और ऐरवत क्षेत्र में तीन-तीन तथा महाविदेह के ३२ विजयों में (प्रत्येक में) तीन तीन - इस प्रकार १०२ तीर्थ होते हैं । इनके तीर्थ स्थल इस प्रकार हैं भरत और ऐरवत के ६ तीर्थं लवणसमुद्र में है । महाविदेह की कच्छादि आठ विजयों के और वत्सादि आठ विजयों के (अर्थात् सोलह विजयों के ४५ तीयं सीतानदी में है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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