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________________ सूत्र ६०२-६०४ तिर्यक लोक महानवी वर्णन नारीकंता महाणईए लवणसमुद्दे समति १०२. गवरमिमं जातं - गंधाबद्द यट्टवेयपथ्ययं जोजणं असंपता पचत्याभिमु आवता समाणी अवसिद्ध त बंब' - जंबु० वक्ख० ४, सु० ११० सीआमहागईए लवणसमुद्दे समति१०३. दाहिने सोलामहामईपबूढासमाणी उत्तरकुरु एक्ले माणी एज्जेमाणी, जमगपव्वए १. णीलवंत, २. उत्तरकुरू, ३ - ४. चंदेरावत, ५. मालवंतद्दहे अ दुहा विभयमाणी, विभयमाणी; चउरासीए सलिलासहस्सेहि आपूरेमाणी आपूरेमाणी, भद्द सालवणं एज्जेमाणी एज्जेमाणी, मंदरपव्ययं दोहिं जोवणेगं असंयत्ता पुरत्याभिगृही आवता समाणी, अहे मालवंतवक्खा रपव्वयं दालइ, दालइत्ता मंदरपव्वयस्स पुरस्थिमेणं पुष्वविदेहवासं दुहा विभयमाणी विभयमाणी, एगमेगाओ चक्कवट्टिविजयाओ अट्ठावीसाए अट्ठावीसाए सलिलासहस्ते हि आपूरेमाणी आपूरेमाणी, पंचहि सलिलासय सहस्सेहि बत्तिसाए य सलिलास हस्से हि समग्गा, अहे विजयस्स दारस्स जगई दालइ दालइत्ता पुरत्थिमेणं लवणसमुद्र समप्पे अवसितं वि - जंबु० वक्ख० ४, सु० ११० सीओआमहानईए लवणसमुद्दे समति-६०४. तस्स णं सीओअप्पवायकुण्डस्स उत्तरिल्लेणं तोरणेणं सीओओमहागाई पबूढा समाणी देवकु एज्जेमाणा एज्जेमामा चित्त विचितकूडे पव्वए निसढ देवकुरु- सूर सुलस-विज्जुप्पभद हे अ हा विभयमाणी विभागी चउरासीए सलिलासहस्सेहि आपूरेमाणी आपूरेमाणी, भद्दसालवणं एज्जेमाणी एज्जेमाणी, मंदरं पव्वयं दोहिं जोयणेहि असंपत्ता पच्चत्थाभिमुही आवत्तासमाथी गणितानुयोग ३२७ कान्ता महानदी का लवणसमुद्र में मिलना - ६०२. विशेष यह है कि नारीकान्ता महानदी गन्धापाती वृत्त वैताढ्य पर्वत से एक योजन दूर पश्चिमाभिमुख होकर... शेव पूर्ववत् है । शीता महानदी का लवणसमुद्र में मिलना६०३. उस सीतापतिकुण्ड के दक्षिणी (तोरण से ) सीता महानदी निकलकर उत्तरकुरु में बहती बहती यमकपर्वतों को तथा (१) नीलवन्त, (२) उत्तरकुरु, (३) चन्द्र, ( ४ ) ऐरावत और ( ५ ) माल्यवन्त - इन पाँचों द्रहों को दो भागों में विभक्त करती करती; चौरासी हजार नदियों को मिलाती मिलाती; भद्रशालवन में बहती बहती; मेरु पर्वत से दो योजन की दूरी पर पूर्वाभिमुख होती हुई; माल्यवन्त वक्षस्कार पर्वत के नीचे से होकर मेरुपर्वत से पूर्व में पूर्व महाविदेह को दो भागों में विभक्त करती करती प्रत्येक चक्रवर्ती विजय की अठाईस अठाईस हजार नदियों को अपने में मिलाती मिलाती; ( सब मिलाकर) पाँच लाख बीस हजार नदियों से परिपूर्ण ( वह शीता नदी), विजय द्वार के नीचे होकर पूर्वी लवणसमुद्र में मिल जाती है। शीतोदा महानदी का लवणसमुद्र में मिलना६०४. उस शीतोदा प्रपातकुण्ड के उत्तरी तोरण से शीतोदा महानदी निकलकर देवकुरुक्षेत्र में बहती बहती चित्र-विचित्रकूट पर्वतों के तथा (१) निषध, (२) देवकुरू, (३) सूर्य, (४) सुलस और (2) विद्युत्प्रभग्रह को दो भागों में विभक्त करती करती चौरासी हजार नदियों को अपने में मिलाती मिलाती; भद्रशाल भवन में बहती बहती; मेरुपर्वत से दो योजन की दूरी पर पश्चिमाभिमुख होती हुई. १ अवशिष्टं सर्व सदेव हरिकान्ता सतिलावदा समग्गा अहेजगई दालइ, दालइत्ता पच्चत्थिमेणं लवणसमुद्दं समप्पेइ त्ति । ....यस्स णं सीअप्यवायकुष्टस्स.... इतना पाठ जोड़ देने पर पाठपूर्ण हो जाता है। ३ आगमोदम समिति की प्रति में 'दाहिने' के आगे 'तोरणं' पाठ नहीं है किन्तु 'तोरणे" पाठ होना चाहिए, क्योंकि जम्बूद्वीप वक्ष० ४, सु० ८४ में शीतोदानदी सम्बन्धी मूलपाठ में 'उत्तरिल्लेणं' के बाद 'तोरणेणं' पाठ है, अतः यहाँ भी 'तोरणेणं पाठ होना चाहिए। तवचारम्भणवास दहा विश्रयमाणी विषयमाणी छपाए सलिलसहि टीका
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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