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________________ सूत्र ५६६-५६८ तिर्यक् लोक : महानदी वर्णन गणितानुयोग ३२५ सिंधु महाणईए लवणसमुद्दे समत्ति सिन्धु महानदी का लवणसमुद्र में मिलना५६६. .....-जाव-अहे तिमिसगुहाए वेअद्धपव्वयं दालइत्ता' पच्चत्थि- ५६६. (वह सिन्धु नदी) तमिस्रागुफा के नीचे होकर वैताढ्य पर्वत माभिमुही आवत्ता समाणी चोद्दससलिलासहस्सेहि समग्गा को दो भागों में विभक्त करती हुई (दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र में बहती अहे जगई पच्चत्थि मेणं लवणसमुद्द-जाव-२ समप्पेइ, सेसं तं है तथा वह सिन्धुनदी दक्षिणार्ध भरत क्षेत्र के मध्य में होकर) चेवत्ति । पश्चिमाभिमुख होती हुई चौदह हजार नदियों सहित जगती के नीचे होती हुई पश्चिमी लवणसमुद्र में मिल जाती है । शेष कथन -जंबु० वक्ख० ४, सु०७४ पूर्ववत् है। रत्तामहाणईए लवणसमुद्दे समत्ति रक्तामहानदी का लवणसमुद्र में मिलना-जंबुछ वक्ख० ४, सु० १११ रत्तवईमहाणईए लवणसमुद्दे समत्ति रक्तवती महानदी का लवणसमुद्र में मिलना-जंबु० वक्ख० ४, सु० १११ रोहिआमहाणईए लवणसमुद्दे समत्ति रोहिता महानदी का लवणसमुद्र में मिलना.५६७. तस्स णं रोहिअप्पवायकुण्डस्स दक्खिणिल्लेणं तोरणेणं रोहिआ- ५६७. उस रोहितप्रपातकुण्ड के दक्षिणी तोरण से रोहिता महा महाणई पवढासमाणी, हेमवयं वासं एग्जेमाणी एज्जेमाणी- नदी निकलकर हैमवतक्षेत्र में बहती, बहती सहावई वट्टवेयड्ढपव्वयं अद्धजोअणेणं असंपत्ता, पुरत्था- शब्दापाती वृत्त वैताढ्य पर्वत से आधा योजन की दूरी पर भिमही आवत्ता समाणी हेमवयंवासं दुहा विभयमाणी विभय- पूर्वाभिमुख होती हुई हैमवत वर्ष को दो भागों में विभाजित माणी करती-करतीअट्ठावीसाए सलिलासहस्सेहि समग्गा अहे जगई दालइत्ता अठाईस हजार नदियों से परिपूर्ण (वह रोहिता नदी) जगती पुरत्थिमेणं लवणसमुद्द समप्पेइ।। के नीचे होती हुई पूर्वी लवणसमुद्र में मिल जाती है। -जंबु० वक्ख० ४, सु०८० रोहिअंसामहाणईए लवणसमुद्दे समत्ति- रोहितांशा महानदी का लवणसमुद्र में मिलना५६८. तस्स णं रोहिअंसप्पवायकुण्डस्स उत्तरिल्लेणं तोरणेणं रोहि- ५६८. उस रोहितांशा प्रपातकुण्ड के उत्तरी तोरण से रोहितांसा अंसामहाणई पवूढा समाणी हेमवयं वासं एज्जेमाणी, एज्जे- महानदी निकलकर हैमवत वर्ष में बहती बहतीमाणी आगमोदय समिति की प्रति के पाठ में यहाँ संक्षिप्त वाचना का सांकेतिक वाक्य नहीं दिया है किन्तु यहाँ संक्षिप्त वाचना का सांकेतिक वाक्य देना आवश्यक था, जिससे बीच का पाठ कितना ग्राह्य है-यह जानने में सुविधा होती। टीकाकार ने यहाँ इस प्रकार सूचित किया है-"अधस्तमिस्रागुहाया वैताढ्यपर्वतं दारयित्वा 'देशदर्शनादेशस्मरण मिति' वाहिद्धभरहवासस्स बहुमज्झदेसभागं गंता' इति पदानि बोध्यानि ।" टीकाकार के सामने जो प्रति थी उसमें भी 'दालइत्ता' के आगेदाहिणइड्ढभरहवासं एज्जेमाणी एज्जेमाणी इतना पाठ छूटा हुआ प्रतीत होता है। पूरे पाठ के लिए देखें"तस्स णं सिन्धुप्पवाय कुण्डस्स दक्खिणिल्लेणं तोरणेणं सिन्धुमहाणई पबूढासमाणि उत्तरद्धभरहवासं एज्जेमाणी एज्जेमाणी, सत्तहि सलिलासहस्से हि आउरेमाणी आउरेमाणी अहे तिमिसगुहाए वेअड्ढपवयं दालइत्ता दाहिणड्ढभरहवासं एज्जेमाणी एज्जेमाणी दाहिणद्धभरहवासस्स बहुमज्झदेसभागं गंता पच्चत्थाभिमुही आवत्तासमाणी चोद्दसहिं सलिलासहस्से हिं समग्गा अहे जगई दालहदाल इत्ता पच्चथिमेगं लवणसमुई समप्पेइ, सेसं तं चैवति । - जम्बु० वक्ख० ४, सु०७४ २ (क) यह मूलपाठ आगमोदय समिति की प्रति से उद्धृत किया गया है-इस मूलपाठ में यह-जाव-अनावश्यक है। (ख) जम्बुद्वीप वक्ष०४, सूत्र ७४ में संक्षिप्त वाचना की सूचना-'एवं सिंधुए विणेयच्वं' अर्थ-इसी प्रकार (गंगा नदी के समान) सिंधू नदी का वर्णन जानना चाहिए । ३ इसका सम्बन्ध प्रवाह आदि से है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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