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________________ ३२४ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : महानदी वर्णन सूत्र ५६२-५६५ १. गंगा, २. सिंधु, ३. रोहिता, ४. रोहितंसा, ५. हरी, (१) गंगा, (२) सिन्धु, (३) रोहिता, (४) रोहितांशा, ६. हरिकता, ७. सीता, ८. सीतोदा, ६. नरकंता, १०. (५) हरी, (६) हरिकान्ता, (७) शीता, (८) शीतोदा, (९) नारिकता, ११. सुवण्णकूला, १२. रूप्पकूला, १३. रत्ता, नरकान्ता, (१०) नारीकांता, (११) सुवर्णकूला, (१२) रूप्यकूला, १४. रत्तवई।' -सम० १४, सु० ८ (१३) रक्ता, (१४) रक्तवती । दसण्हं गईणं गंगा-सिंधुसु समत्ति गंगा और सिन्धु नदी में दस नदियों का मिलना५६३. जंबु-मंदरदाहिणेणं गंगा-सिधुमहाणईओ दसमहाणईओ ५६३. जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से दक्षिण में गंगा और सिन्धु महासमप्पेंति, तं जहा नदियां मिलती हैं, यथा१. जउणा, २. सरऊ, ३. आवी, ४. कोसी, ५. मही, (१) यमुना, (२) सरयू, (३) आवी, (४) कोशी, (५) मही, ६. सतद्दु, ७. वितत्था, ८. विभासा, ६. एरावती, १०. (६) शतद्र, (७) वितस्ता, (८) विभासा, (९) ऐरावती, (१०) चंदभागा। -ठाणं १०, सु० ७१७ चन्द्रभागा। दसण्हं णईणं रत्ता-रत्तवइसु समत्ती रक्ता और रक्तवती नदी में दस नदियों का मिलना५६४. जंबु-मंदर उत्तरेणं रत्ता-रत्तवईओ महाणईओ दसमहाणईओ ५६४. जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से उत्तर में रक्ता और रक्तवती समप्पेति, तं जहा महानदी में दस महानदियाँ मिलती हैं। १-१० किण्हा-जाव-महाभागा।' यथा-(१) कृष्णा, (२) महाकृष्णा, (३) नीला, (४) महा नीला, (५) महातीरा, (६) इन्द्रा, (७) इन्द्रसेना, (८) सुसेणा, -ठाणं १०, सु० ७१७ (६) वारिसेणा, (१०) महाभागा । गंगामहाणईए लवणसमुद्दे समत्ति गंगा महानदी का लवणसमुद्र में मिलना५६५. तस्स णं गंगप्पवायकुण्डस्स दक्खिणिल्लेणं तोरणेणं गंगामहा- ५६५. उस गंगाप्रपातकुण्ड के दक्षिणी तोरण (द्वार) से गंगा गई पढासमाणी उत्तरड्ढभरहवासं एज्जेमाणी सहि महानदी निकलकर उत्तरार्ध भरतक्षेत्र में बहती हुई सात हजार सलिलासहस्सेहि आउरेमाणी आउरेमाणी अहे खंडप्पवाय- नदियों को अपने में मिलाती है और बाद में खण्डप्रपातगुफा के गुहाए वेयड्ढपव्वयं दलइत्ता दाहिणड्ढभरहवासं एज्जेमाणी नीचे से होकर वैताढ्य पर्वत को दो भागो में विभक्त करती हुई एज्जेमाणी, दाहिणड्ढभरहवासस्स बहुमज्झदेसभागं गंता दक्षिणार्ध भरत क्षेत्र में बहती हैं। (तथा वह गंगानदी) दक्षिणार्ध पुरत्थाभिमुही आवत्ता समाणी चोदसहि सलिलासहस्सेहिं भरतक्षेत्र के मध्य में होकर पूर्वाभिमुख होती हुई चौदह हजार समग्गा अहे जगई दालइ दालइत्ता पुरथिमेणं लवणसमुदं नदियों सहित जगती के नीचे से होती हुई पूर्वी लवणसमुद्र में समप्पेह। -जंबु० वक्ख० ४, सु०७४ मिल जाती है । १ जम्बुद्दीवे दीवे सत्तमहाणईओ पुरत्याभिमुहीओ लवणसमुदं समप्पेंति, तं जहा-(१) गंगा, (२) रोहिता, (३) हरी, (४) सीता, (५) नरकंता, (६) सुवण्णकूला, (७) रत्ता । जम्बुद्दीवे दीवे सत्तमहाणईओ पच्चत्थाभिमुहीओ लवणसमुई समप्पेंति, तं जहा-(१) सिन्धु, (२) रोहितंसा, (३) हरिकंता, (४) सीतोदा, (५) णारिकता, (६) रूप्पकूला, (७) रत्तवती । ठाणं ७, सु० ५५५ २ जम्बुद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्बयस्स दाहिणेणं गंगामहानई पंचमहानईओ समप्पेंति, तं जहा-(१) जऊणा, (२) सरऊ, (३) आवी, (४) कोसी, (५) मही। जम्बूमंदरस्स दाहिणणं सिन्धुमहाणई पंचमहाणईओ समप्पेंति, तं जहा-(१) सतद्दद्र , (२) वितत्या, (३) बिभासा, (४) एरावती, (५) चंदभागा। -ठाणं ५, उ० ३, सु० ४७० जम्बूमंदरस्स उत्तरेणं रत्तामहाणई पंचमहाणईओ समप्पंति, तं जहा-(३) किण्हा, (२) महाकिण्हा, (३) नीला, (४) महानीला, (५) महातीरा। जम्बूमंदरस्स उत्तरेणं रत्तवई महाणई पंचमहाणईओ सप्पेंति, तं जहा-(१) इंदा, (२) इंदसेणा, (३) सुसेणा, (४) वारिसेणा, (५) महाभागा। -ठाणं ५, उ०३, सु० ४७०
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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