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________________ ३२२ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : महानदी वर्णन सूत्र ५८४-५८८ णरकतामहाणईए पवायाईणं पमाण-- नरकान्ता महानदी के प्रपातादि का प्रमाण५८४. महापुण्डरीए दहे णरकता महाणई दक्खिणेणं णेयव्वा' जहा ५५४. नरकान्ता महानदी महापुण्डरीकद्रह के दक्षिणी तोरण से रोहिआ। -जंबु० वक्ख० ४, सु० १११ निकलती है-ऐसा जानना चाहिए। जिस प्रकार रोहिता महानदी णारिकतामहाणईए पवायाईणं पमाणं नारीकान्ता मदानदी के प्रपातादि का प्रमाण५८५. एवं णारिकतावि उत्तराभिमुही णेयव्वा । ५८५. इसी प्रकार नारीकान्ता महानदी भी उत्तराभिमुखी जानना चाहिए । पवहे अ मुहे अ जहा हरिकता सलिला' इति । प्रवाह और मुख का प्रमाण हरिकान्ता महानदी के (प्रवाह -जंबु० वक्ख० ४, सु० ११० और मुख) के प्रमाण जैसा है। ५८६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं रम्मएवासे दो ५८६. जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत से उत्तर (दिशा स्थित) महाणईओ बहुसमतुल्लाओ-जाव-परिणाहणं, रम्यक्वर्ष में दो महानदियाँ अधिक सम या तुल्य हैं-यावत् परिधि की अपेक्षा से एक दूसरी का अतिक्रमण नहीं करती है। तं जहा यथा१. नरकंता चेव, २ नारिकता चेव। (१) नरकान्ता, और (२) नारिकान्ता । -ठाणं २, उ०३, सु०८८ सोआमहाणईए पवायाई पमाणं शीता महानदी के प्रपातादि का प्रमाण५८७. एत्थ में केसरिद्दहो, दाहिणणं सीआ महाणई पवूढा समाणी,५ ५८७. यहाँ केशरीद्रह के दक्षिणी तोरण से शीता महानदी -जंब० वक्ख० ४, सु० ११० निकलती है । सीओआमहाणईए पवायाईणं पमाणं शीतोदा महानदी के प्रपातादि का प्रमाण५८८. तस्स णं तिगिछिद्दहस्स उत्तरिल्लेणं तोरणेणं सीओआमहाणई ५८८. उस तिगिछिद्रह के उत्तरी तोरण से शीतोदा महानदी पवूढा समाणी, सत्त जोयणसहस्साई चत्तारि अ एगवीसे जोअणसए एगं च एगूणवीसइभागं जोअणस्स उत्तराभिमुही निकलकर ७४२१ - योजन उत्तर की ओर पर्वत पर बहकर पव्वएणं गंता, महया घडमुहपवित्तिएणं मुत्तावलिहारसंठिएणं साइरेग चउ-जोअणसइएणं पवाएणं पवडइ । विशाल घटमुख से गिरती हुई मुक्तावलिहार की आकृति वाले कुछ अधिक चार सौ योजन के प्रपात से नीचे गिरती है। सीओआ ण महाणई जओ पवडइ एत्थ णं महं एगा जहाँ शीतोदा महानदी गिरती है वहाँ एक विशाल जिबिका जिब्भिया पण्णत्ता, चत्तारि जोअणाई आयामेणं, पण्णासं कही गई है। यह जिबिका चार योजन लम्बी, पचास योजन जोअणाई विक्खंभेणं जोअणं बाहल्लेणं, मगरमुहविउट्ठ संठाण- चौड़ी, एक योजन मोटी और मगर के मुख के आकार की है। संठिआ सव्ववइरामइ अच्छा-जाव-पडिरूवा । सारी वज्रमय है, स्वच्छ है-यावत्-मनोहर है। -जंबु० वक्ख० ४, सु० ८४ १ महापुण्डरीकोऽत्र महापद्मद्रहतुल्यः अस्माच्चनिर्गता दक्षिणतोरणेन नरकान्ता महानदी नेतव्या। २ यथा रोहिता महाहिमवतो महापद्मद्रहतो दक्षिणेन प्रव्यूढा तथैषापि प्रस्तुतवर्षधराद्दक्षिणेन निर्गता -टीका। ३ एवं नारीकता, इत्यादि-एतमुक्तन्यायन नारीकान्ताऽपि उत्तराभिमुखी नेतव्या-कोऽर्थः ? यथा नीलवंत केशरिद्रहाद् दक्षिणाभि मुखी शीता निर्गता तथा नारीकान्ताऽपि उत्तराभिमुखी निर्गता। ४ प्रबहे च मुखे च यथा हरिकान्ता सलिला, तथाहि-प्रवहे २५ योजनानि विष्कम्भेन, अर्द्ध योजनमुटे धेनेति मुखे २५० योजनानि विष्कम्भेन, ५ योजनान्युद्वधेनेति । यच्चात्र हरिसलिला विहाय प्रबहमुखयोहरिकान्ता उक्तास्तत् हरिसलिला प्रकरणेऽपि हरिकान्तादेशस्योकत्वात् टीका। - ५ अत्र केसरिद्रहो नामद्रह अस्माच्च शीता महानदी प्रव्यूढा सती -टीका।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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