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लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : महानदी वर्णन
सूत्र ५७३-५७८
पवूढा समाणी दोणि छाबत्तरे जोअणसए छच्च एगूणवीसइ भाए जोअणस्स उत्तराभिमुही पव्वएणं गंता महया घडमुह- निकल कर २७६ ६. योजन उत्तर की ओर पर्वत पर होती हुई पवत्तिएणं मुत्तावलिहारसंठिएणं साइरेगजोअणसइएणं पवाएणं पवडइ।
विशाल घट के मुख से गिरते हुए एवं मुक्तावलीहार की आकृति के समान, सौ योजन से कुछ अधिक (चौड़े) प्रपात से नीचे
गिरती है। रोहिअंसा महाणई जओ पवडइ एत्थ णं महं एगा जिब्भिया रोहितांसा महानदी जहाँ गिरती है वहाँ एक विशाल जिबिका पण्णत्ता।
(नालिका) कही गई है। सा णं जिभिआ जोअणं आयामेणं, अद्धतेरस जोअणाइं यह नालिका एक योजन लम्बी, साढ़े बारह योजन चौड़ी विक्खंभेणं, कोसं बाहल्लेणं, मगरमुहविउटसंठाणसंठिया सव- एक कोस मोटी, मगर के मुख के आकार की, सर्वात्मना वज्रमयी वइरामई अच्छा-जाव-पडिरूवा ।
हैं, स्वच्छ हैं-यावत् -मनोहर है ।
-जंबु० वक्ख० ४, सु०७४ ५७४. रोहिअंसाणं पवहे अद्धतेरसजोयणाई विक्खंभेणं, कोसं ५७४. (उद्गमस्थान में) रोहितांसा महानदी के प्रवाह का उव्वेहेणं ।
विष्कम्भ साढ़े बारह योजन का है और उद्वेध (गहराई) एक
कोश की है। तयाणंतरं च णं मायाए मायाए परिवड्ढमाणी, परिवड्ढ- तदनन्तर क्रमशः बढ़ते-बढ़ते मुख के मूल (समुद्र में प्रवेश माणी, मुहमूले पणवीसं जोयणसयं विक्खंभेणं, अड्ढाइज्जाई करते समय प्रवाह) का विष्कम्भ एक सौ पच्चीस योजन का है। जोयणाई उत्वेहेणं ।
और उद्वेध अढाई योजन का है। उभओ पासि दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहिं इसके दोनों पार्श्व (किनारे) दो पद्मवरवेदिकाओं से तथा संपरिक्खित्ता।
-जंबु० वक्ख० ४, सु०७४ दो वनखण्डों से घिरे हुए है । ५७५. जंबढ़दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं हेमवए वासे दो ५७५. जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरु पर्वत से दक्षिण दिशा स्थित महाणईओ बहुसमतुल्लाओ-जाव-परिणाहणं,
हेमवत क्षेत्र में दो महानदियाँ अधिक सम या तुल्य हैं-यावत्
परिधि की अपेक्षा से एक दूसरी का अतिक्रमण नहीं करती है, तं जहा
यथारोहिता चेव, रोहितंसा चेव ।-ठाणं २, उ० ३, सु० ८८ (१) रोहिता, और (२) रोहितांसा । सवण्णकूला महाणईए पवायाईण पमाणं- सुवर्णकूला महानदी के प्रपातादि का प्रमाण५७६. पुण्डरीए दहे सुवण्णकूला महाणई दाहिणेणं अव्वा, जहा ५७६. सुवर्णकूला महानदी पुण्डरीकद्रह के दक्षिणी तोरण से रोहिअंसा पुरत्थिमेणं गच्छइ ।
निकलती है-ऐसा जानना चाहिए और रोहितांसा महानदी के -जंबु० वक्ख० ४, सु० १११ जैसे पूर्वी लवणसमुद्र में मिलती है । रुप्पकूला महाणईए पयायाईणं पमाणं
रूप्यकूला महानदी के प्रपातादि का प्रमाण५७७. (महापुण्डरीए दहे) रुप्पकूला (महाणई) उत्तरेणं अव्वा । ५७७. रूप्यकूला (महानदी) महापुण्डरीकद्रह के उत्तरी तोरण से जहा हरिकता पच्चस्थिमेणं गच्छइ । अवसेसं तं चेवत्ति। निकलती है-ऐसा जानना चाहिए और हरिकान्ता महानदी जैसे
-जंबु० वक्ख० ४, सु० १११ पश्चिमी लवणसमुद्र में मिलती है । शेष वर्णन पूर्ववत् है। ५७८. जंबुदीचे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं हेरग्णवए वासे दो ५७८. जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरु पर्वत से उत्तर (दिशा) स्थित महाणईओ बहुसमतुल्लाओ-जाव-परिणाहेणं,
हैरण्यवत क्षेत्र में दो महान दियाँ अधिक सम या तुल्य हैं-यावत्
परिधि की अपेक्षा से एक दूसरी का अतिक्रमण नहीं करती हैं। तं जहा
यथासुवण्णकूला चेव, रुप्पकूला चेव ।
(१) सुवर्णकूला, और (२) रूप्यकूला। -ठाणं २, उ० ३, सु०८०