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________________ सूत्र ५६७-५७३ तिर्यक् लोक : महानदी वर्णन गणितानुयोग ३१६ mmmmmmmmmmmmmmmmmmarmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm रत्तारत्तवइओ य पवायाईणं पमाणं रक्ता और रक्तवती नदी के प्रपातादि का प्रमाण ५६७. एवं जह चेव गंगा-सिंधूओ तह चेव रत्ता-रत्तवईओ अब्वाओ ५६७. जिस प्रकार गंगा और सिन्धु नदियों का वर्णन है उसी पुरथिमेणं रत्ता, पच्चत्थिमेणं रत्तवई । प्रकार रक्ता और रक्तवती नदियों का जानना चाहिए। रक्तानदी पूर्व की और रक्तावती नदी पश्चिम की और (प्रवाहित होती) है। अवसिट्ठ तं चेव भाणिअव्वत्ति । शेष सब पूर्ववत् कहना चाहिए। -जंबु० वक्ख० ४, सु० १११ ५६८. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं एरवएवासे दो ५६८. जम्बुद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत से उत्तर (दिशा स्थित) महाणईओ बहुसमतुल्लाओ-जाव-परिणाहेणं, ऐरवत क्षेत्र में दो महानदियाँ अधिक सम या तुल्य हैं-यावत्-- परिधि की अपेक्षा से एक दूसरी का अतिक्रमण नहीं करती है, तं जहा यथारत्ता चेव, रत्तवई चेव। -ठाणं २, उ० ३, सु० ८८ (१) रक्ता, और (२) रक्तवती। ५६६. रत्ता-रत्तवईओ णं महानदीओ पणवीसं गाऊयाणि पुहुत्तेणं ५६६. रक्ता और रक्तवती-ये दोनों महान दियाँ घड़े के मुख से मगरमुहपवित्तिएणं मुत्तावलिहार-संठिएणं पवातेण पडंति । निकलते हुए जल के समान कल-कल शब्द करती हुई पच्चीस ___-सम० २५, सु० ८ गाउ विस्तृत मुक्तावलीहार की आकृति जैसे प्रपात से गिरती है। ५७०. रत्ता-रत्तवतीओ णं महाणदोओ पवाहे सातिरेगे णं चउवीसं ५७०. रक्ता और रक्तवती महानदी प्रवाह कुछ अधिक चौवीस कोसे वित्थारेणं पण्णत्ता। -सम० २४, सु०६ कोश विस्तार वाला कहा गया है । रोहिआमहाणईए पवायाईणं पमाणं रोहिता महानदी के प्रपातादि का प्रमाण५७१. तस्स णं महापउमद्दहस्स दक्खिणिल्लेणं तोरणेणं रोहिआ ५७१. उस महापद्मद्रह के दक्षिणी तोरण से रोहिता महानदी महाणई पवूढा समाणी सोलस पंचुत्तरे जोअणसए पंच य एगूणवीसइभाए-जोअणस्स दाहिणाभिमुही पवएणं गंता निकलकर १६०५ - योजन दक्षिण की ओर पर्वत पर जाकर महया घडमुहपवित्तिएणं मुत्तालिहारसंठिएणं साइरेग दो जोअणसइएणं पवाएणं पवडइ । विशाल घट के मुख से निकलती हुई एवं मुक्तावली हार की आकृति वाले दो सौ योजन से कुछ अधिक (चौड़े) प्रपात से नीचे गिरती है। रोहिआ णं महाणई जओ पवडइ एत्थ णं महं एगा जिग्भिया जहाँ रोहिता महानदी गिरती है वहाँ एक विशाल जिबिका पण्णत्ता, सा णं जिब्भिया जोअणं आयामेणं अद्धतेरसजोअणाई (नाली) कही गई है। यह नाली एक योजन लम्बी, साढ़े बारह विक्खंभेणं कोसं बाहल्लेणं, मगरमुहविउट्ठसंठाणसंठिया योजन चौड़ी, एक कोस मोटी, खुले हुए मगर के मुख के आकार सव्ववइरामई अच्छा-जाव-पडिरूवा । की, सर्ववज्रमयी और स्वच्छ हैं-यावत्-मनोहर हैं। -जंबु० बक्ख० ४, सु० ८० ५७२. रोहिआणं जहा रोहिअंसा तहा पवाहे अ मुहे अ भाणियव्वा ५७२. रोहिता का प्रवाह और मुख आदि का प्रमाण रोहितांसा इति-जाव-सपरिक्खित्ता। --जंबु० वक्ख० ४, सु०८० नदी के जैसा कहना चाहिए यावत्-यह (पदमवरवेदिका और वनखण्ड से) संपरिक्षिप्त है। रोहिअंसामहाणईए पवायाईणं पमाणं रोहितांशा महानदी के प्रपातादि का प्रमाण ५७३. तस्स णं पउमदहस्स उत्तरिल्लेणं तोरणेणं रोहिअंसामहाणई ५७३. उस पद्मद्रह के उत्तरी तोरण से रोहितांसा महानदी
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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