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________________ सूत्र ५५६-५६२ तिर्यक् लोक : महानदी वर्णन गणितानयोग ३१७ . एवामेव सपुवावरेणं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहेवासे दस इस प्रकार सब मिलकर जम्बूद्वीप के महाविदेह वर्ष में दस सलिलासयसहस्सा चउस४ि च सलिलासहस्सा भवं- लाख चौसठ हजार नदियाँ हैं। ऐसा कहा गया है। तीतिमक्खायं । -जंबु० वक्ख० ६, सु० १२५ दुवालस अंतरणईओ महाविदेह में बारह अन्तर नदियां५६०. जंबू-मंदर-पुरथिमेणं सीताए महाणईए उभयकूले छ अंतरणईओ ५६०. जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से पूर्व में शीता महानदी के दोनों पण्णत्ताओ, तं जहा किनारों पर छः अन्तर नदियाँ कही गई हैं, यथा१. गाहावती, २. दाहावती, ३. पंकवती, ४. तत्तजला, (१) गाथावती, (२) द्रहवती, (३) पंकवती, (४) तप्तजला, ५. मत्तजला, ६. उम्मत्तजला।' (५) मत्तजला, (६) उन्मत्तजला । जंबू-मंदर-पच्चत्थिमेणं सोतोदाए महाणईए उभयकूले छ जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से पश्चिम में शीतोदा महानदी के अंतरणईओ पण्णत्ताओ, तं जहा दोनों किनारों पर छः अन्तरनदियाँ कही गई हैं, यथा१. खीरोदा, २. सीहसोता, ३. अंतोवाहिणी. ४. उम्मि- (१) क्षीरोदा, (२) शीतस्रोता, (३) अन्तोवाहिनी, (४) मालिणी, ५. फेणमालिणी, ६. गंभीरमालिणी।' उमिमालिनी, (५) फेनमालिनी, (६) गम्भीरमालिनी । -ठाणं ६, सु० ५२२ गंगामहाणईए पवायाईणं पमाणं गंगा महानदी के प्रपातादिका प्रमाण५६१. तस्स णं पउमद्दहस्स पुरिथिमिल्लेणं तोरणेणं गंगामहाणई ५६१. इस पद्मद्रह के पूर्व दिशा के तोरण (द्वार) से गंगा महानदी पढासमाणी पुरत्थाभिमुही पंचजोयणसयाई पब्बएणं गंता निकलकर पूर्व की ओर पाँच सौ योजन पर्वत पर होकर गई है । गंगावत्तणकूडे आवत्तासमाणी पचतेवीसे जोयणसए तिण्णि अ एगूणवीसइभाए जोअणस्स दाहिणाभिमुही पव्वएणं गंतो यहाँ गंगावर्तन कूट के नीचे से मुड़कर ५२३ २. योजन दक्षिण में महया घडमुहपवत्तिएणं मुत्तावलिहारसंठिएणं साइरेगजोयणसइएणं पवाएणं पवउद। पर्वत पर होकर घट के मुख से निकलते हुए सौ योजन से कुछ अधिक चौड़े मुक्ताहार की आकृति वाले प्रपात से नीचे गिरती है। गगा महाणई जओ पवडइ इत्थणं महं एगा जिब्भिया गंगा महानदी जहाँ से गिरती है वहाँ एक विशाल जिलिका पण्णत्ता, सा णं जिब्भिया अद्धजोयणं आयामेणं छसकोसाइं (नालिका) कही गई है। यह नालिका आधा योजन लम्बी, सवा जोयणाई विक्खंभेणं, अद्धकोसं बाहल्लेणं मगरमुहविउट्ठ- छह योजन चौड़ी, आधा कोस मोटी, मगर के खुले हुए मुख के सठाणसंठिया सव्ववइरामई अच्छा सण्हा-जाव पडिरूवा। आकार की सर्वात्मना वज्रमयी, स्वच्छ और चिकनी है यावत् -जंबु० वक्ख० ४, सु० ७४ मनोहर है । ५६२. गंगा णं महाणई पवहे छ सकोसाइं जोयणाई विक्खंभेणं, ५३२. (उद्गम स्थान में) गंगा महानदी के प्रवाह का विष्कम्भ अद्धकोसं उब्वेहेणं, तयणंतरं च णं मायाए-मायाए परिवड्ढ- सवा छ: योजन और उद्बध (गहराई) आधाकोश का है, तदनन्तर १ जम्बूमंदरपुरस्थिमेणं सीताए महाणईए उत्तरेणं तओ अंतरणईओ पण्णत्ताओ, तं जहा—(१) गाहावती, (२) दाहावती, (३) पंकवती। जम्बूमंदर पुरथिमेणं सीताए महाणईए दाहिणणं तओ अंतरणईओ पण्णत्ताओ, तं जहा---(१) तत्तजला, (२) मत्तजला, (३) उम्मत्तजला। २ जम्बूमंदर पच्चस्थिमे णं सीतोदाए महाणईए दाहिणणं तओ अंतरणईओ पण्णत्ताओ, तं जहा-(१) खीरोदा, (२) सीहसोता, (३) अंतोवाहिणी । जम्बूमंदरपच्चस्थिमे णं सीतोदाए महाणईए उत्तरेणं तओ अंतरणईओ पण्णत्ताओ, तं जहा-(१) उम्मिमालिणी, (२) फेणमालिणी, (३) गंभीरमालिणी। ... -ठाणं, ३, उ० ४, सु० १६७
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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