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________________ सूत्र ५४१-५४३ तिर्यक् लोक : महाद्रह वर्णन गणितानुयोग ३११ जहेव पउमद्दहे, तहेब वण्णओ अव्वो, णाणत्तं- पद्मद्रह के समान उसका वर्णन समझ लेना चाहिए। दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंहिं संपरिक्खित्ते, विशेषता यह है कि-यह दो पद्मवरवेदिकाओं और दो वनखण्डों से घिरा हुआ है। णीलवंते णामं णागकुमारे देवे, सेसं तं चेव णेअब्बं । यहाँ नीलवन्त नामक नागकुमार देव हैं, शेष वर्णन वही समझना चाहिए। गाहा गाथार्थपढमित्थ णीलवंतो, बितिओ उत्तरकुरु मुणेअव्वो। प्रथम नीलवन्त, दूसरा उत्तरकुरु, तीसरा चन्द्रद्रह, चौथा चंददहोत्थ तइओ, एरावय, मालवंतो अ॥' ऐरावत और पांचवां माल्यवन्तद्रह है। एवं वण्णओ अट्ठो पमाणं पलिओवमट्टिइआ देवा । नीलवन्त द्रह के समान उनके नाम का कारण, प्रमाण एवं -जंबु० वक्ख० ४, सु० ८६ पल्योपम की स्थिति वाले देव, इत्यादि वर्णन समझ लेना चाहिए। उत्तरकुराए णीलवंतद्दहस्स ठाणप्पमाणाइ उत्तरकुरा में नीलवन्तद्रह का स्थान-प्रमाणादि'५४२. ५०-कहि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए नीलवंतद्दहे णामं ५४२. प्र०-भगवन् ! उत्तरकुरा नामक कुरा में नीलवन्तद्रह दहे पण्णत्ते ? नामक द्रह कहाँ कहा गया है ? उ०-गोयमा ! जमगपव्वयाणं दाहिणणं अट्ठचोत्तीसे जोयण- उ०-गौतम ! यमक पर्वतों के दक्षिण में, आठ सौ चौंतीस सए चत्तारि सत्तभागा जोयणस्स अबाहाए सीताए योजन और चार योजन के सात भाग की दूरी पर व्यवधानरहित महाणईए बहुमज्झदेसभाए-एत्थ णं उत्तरकुराए सीता महानदी के ठीक मध्य भाग में उत्तरकुरा नामक कुरा में कुराए णीलवंतहहे णामं बहे पण्णत्ते। नीलवन्तद्रह नामक द्रह कहा गया है। उत्तरदक्खिणायए पाईण-पडीणवित्थिन्ने एगं जोयण- यह उत्तर-दक्षिण में चौड़ा है और पूर्व-पश्चिम में विस्तृत सहस्सं आयामेणं, पंच जोयणसयाई विक्खंभेणं, दस है। यह एक हजार योजन लम्बा, पाँच सौ योजन चौड़ा और जोयणाई उव्वेहेणं, अच्छे सण्हे रययामयकूले चउक्काणे दस योजन गहरा है । स्वच्छ है, चमकदार है, रजतमय किनारे समतीरे-जाव-पडिरूवे । __ वाला है, चतुष्कोण है, किनारे पर समतल है-यावत्-सुन्दर है। उभओ पासि दोहि पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहि दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकाओं से एवं दो वनखण्डों से वह सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते । (नीलवन्तद्रह) चारों ओर से घिरा हुआ है। दोण्हवि वण्णओ। दोनों (वेदिका और वनखण्डों) का वर्णन यहाँ कहना चाहिये। नीलवंतदहस्स णं दहस्स तत्थ तत्थ-जाव-बहवे तिसो- नीलवन्तद्रह नामक द्रह में स्थान-स्थान पर अनेक त्रिसोपानक वाणपडिरूवगा पण्णत्ता। (तीन तीन सुन्दर पगथिये) कहे गये हैं। वण्णओ भाणियब्वो-जाव-तोरणत्ति । तोरण पर्यन्त त्रिसोपानकों का वर्णन कहना चाहिए। -जीवा. प. ३, उ. २, सु. १४६ नीलवंतदहस्स पउम-परिवारो नीलवन्तद्रह का पद्म-परिवार'५४३. तस्स गं नीलवंतद्दहस्स णं दहस्स बहुमज्झदेसभाए-एत्थ ५४३. उस नीलवन्तद्रह नामक द्रह के ठीक मध्यभाग में एक गं एगे महं पउमे पण्णत्ते । महान् पद्म (कमल) कहा गया है। ___ जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, वह (कमल) एक योजन लम्बा-चौड़ा है, कुछ अधिक तीन अद्धजोयणं वाहल्लेणं, दस जोयणाई उन्वेहेणं । गुणी उसकी परिधि है, आधा योजन मोटा है, दस योजन (पानी में) गहरा है। १ ठाणं. ५, उ. २, सु. ४३४ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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