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________________ ३१० लोक-प्रज्ञप्ति तर्यक् लोक : महाद्रह वर्णन सूत्र ५३६-५४१ (६) पुण्डरीयद्दहस्स अवट्ठिई पमाणं च- (६) पुण्डरीकद्रह की अवस्थिति और प्रमाण५३६. .."पुण्डरीयदहे.... -जंबु० वक्ख० ४, सु० १११ ५३६. पुण्डरीकद्रह में५३७. पउमपुण्डरीयदहा य दस दस जोयणसयाई आयामेणं ५३७. पद्मद्रह और पुण्डरीकद्रह की लम्बाई एक-एक हजार पण्णत्ताई। -सम० १०००, सु० १० योजन की कही गई है। देवकुराए उत्तरकुराए य दस महद्दहा- देवकुरा और उत्तरकुरा में दस महाद्रह५३८. जंबु-मंदर-दाहिणणं देवकुराए कुराए पंच महदहा पण्णत्ता, ५३८. जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से दक्षिण के देवकुरा नामक कुरा में तं जहा–१ निसहदहे, २ देवकुरुदहे, ३ सूरदहे, ४ सुलसदहे, पाँच महाद्रह कहे गये हैं । यथा-(१) निषधद्रह, (२) देवकुरुद्रह, ५ विज्जुप्पभदहे। (३) सूर्यद्रह, (४) सुलसद्रह, (५) विद्युत्प्रभद्रह.... ५३६. जंबु-मंदर-उत्तरेणं उत्तरकुराए पंच महद्दहा पण्णत्ता, तं ५३६. जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से उत्तर के उत्तरकुरा नामक कुरा जहा-१ नीलवंतदहे, २ उत्तरकुरुदहे, ३ चंददहे, ४ एरा- में पांच महाद्रह कहे गये हैं, यथा-(१) नीलवंतद्रह, उत्तरकुरावणदहे, ५ मालवंतदहे। ठाण० ५, उ० २, सु० ४३४ द्रह, (३) चन्द्रद्रह, (४) एरावणद्रह, (५) माल्यवंतद्रह । देवकराए णिसढाइ पंचदहाणं ठाणप्पमाणाइ- देवकुरु में निषधादि पाँच द्रहों के स्थान प्रमाणादि५४०. ५०-कहि णं भंते ! देवकुराए कुराए णिसढदहे णामं दहे ५४०. प्र०-भगवन् ! देवकुरु में निषधद्रह नामक द्रह कहाँ कहा पण्णते? गया है ? -गोयमा ! तेसि चित्त-विचित्तकूडाणं पम्वयाणं उत्त- उ०-गौतम ! उन चित्र-विचित्रकूट पर्वतों के उत्तरीय रिल्लाओ चरिमंताओ अट्ठ चोत्तीसे जोअणसए चत्तारि अ सत्तभाए जोयणस्स अबाहाए सीओआए महाणईए चरमान्त से ८३४- की बाधा रहित दूरी पर सीतोदा महानदी बहुमज्मदेसभाए एत्थ णं णिसहदहे णामं दहे पण्णत्ते। के बीचों बीच निषधद्रह नामक द्रह कहा गया है। एवं जच्चेव नीलवंत-उत्तरकुरु-चंद-एरावय-मालवंताणं जिस प्रकार नीलवन्त, उत्तरकुरु, चन्द्र, ऐरावत और माल्यसच्चेव णिसह-देवकुरु-सूर-सुलस-विज्जुप्पभाणं णेअब्वा। वन्त (नामक उत्तरकुरु के पांचों द्रहों) को वक्तव्यता को गई है रायहाणीओ दक्खिणेणंति ।। उसी प्रकार निषध, देवकुरु, सूर्य, सुलस तथा विद्युत्प्रभ ग्रह की -जंबु० वक्ख० ४, सु९६६ वक्तव्यता जान लेनी चाहिए (इनके अधिपति देवों की) राजधानियाँ दक्षिण में है। उत्तरकुराए णीलवंताइ पंचदहाणं ठाणप्पमाणाइ- उत्तरकुरु में नीलवंतादि पाँच द्रहों के स्थान प्रमाणादि५४१.५०-कहि गं भंते ! उत्तरकुराए णीलवंतदहे णामं दहे ५४१. प्र०-भगवन् ! उत्तरकुरु में नीलवन्तद्रह नामक द्रह कहाँ पण्णत्ते ? कहा गया है ? उ०-गोयमा ! जमगाणं दक्खिणिल्लाओ चरमंताओ अट्ठसए उ०-गौतम ! यमक पर्वतों के दक्षिणी चरमान्त से चोत्तीसे चत्तारि अ सत्तभाए जोअणस्स अबाहाए सोआए महाणईए बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं णीलवंत- ८३४ - योजन बाधारहित शीतामहानदी के ठीक मध्य भाग में दहे णाम दहे पण्णत्ते । नीलवन्तद्रह नामक द्रह कहा गया है। दाहिण-उत्तरायए, पाईण-पडोणवित्थिण्णे, वह दक्षिण-उत्तर में लम्बा एवं पूर्व-पश्चिम में चौड़ा है। १ पुण्डरीकद्रह की अवस्थिति और प्रमाण पद्मद्रह के समान है। २ षोडश महाह्रदाः षड् वर्षधराणां, शीता-शीतोदयोश्च प्रत्येक पंच, पंच । -जम्बू• वृत्ति, सु० १२५.
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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