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________________ सूत्र ५३०-५३५ तिर्यक् लोक : पद्मद्रह वर्णन गणितानुयोग ३०६ पाईण-पडीणायए, उदीणदाहिणवित्थिण्णे, चत्तारि जोअण- यह पूर्व-पश्चिम में लम्बा, उत्तर-दक्षिण में चौड़ा, चार सहस्साई आयामेणं' दो जोअणसहस्साई विक्खंभेणं, दस हजार योजन लम्बा, दो हजार योजन चौड़ा, दस योजन गहरा जोयणाई उब्वेहेणं, अच्छे-जाव-पडिरूवे रययामयकूले। और स्वच्छ है-यावत्-मनोहर है। एवं रजतमय किनारों वाला है। तस्स णं तिगिछिद्दहस्स चउदिसि चत्तारि तिसोवाणपडि- उस तिगिंछद्रह के चारों दिशाओं में चार मनोहर तीन सोपान रूवगा पण्णत्ता। (पगथिये) कहे गये हैं। एवं-जाव-आयाम-विक्खंभविहूणा जा चेव महापउमद्दहस्स इसी प्रकार—यावत्-लम्बाई और चौड़ाई को छोड़कर वत्तब्वया-सा चेव तिगिछिद्दहस्स वि वत्तव्वया । तं चेव पउ- जो-महापद्मद्रह का कथन है वही तिगिछिद्रह का कथन है मप्पमाण। (धृति देवी के) पद्म-कमलों का प्रमाण भी वही (एक करोड़, बीस लाख) समझना चाहिए। तिगिछिद्दहस्स णामहेऊ तिगिछिद्रह के नाम का हेतु५३१. प०–से केणटुणं भते ! एवं बुच्चइ-तिगिछिदहे तिगि- ५३१.प्र०-भगवन् ! तिगिछिद्रह, तिगिछिद्रह क्यों कहा जाता है ? छिद्दहे ? -गोयमा ! तिगिछिद्दहणं तत्थ तत्थ देसे तहि बहवे उ०-गौतम ! तिगिछिद्रह में स्थान-स्थान पर अनेक उत्पल उप्पलाइ-जाव-सयसहस्सपत्ताई तिगिछिद्दहप्पभाई हैं-यावत्-सहस्रपत्र (जाति के कमल) हैं। वे तिगिछिद्रह की तिगिछिद्दहवण्णाभाई । प्रभा वाले एवं तिगिछिद्रह के वर्ग जैसे हैं । धिई अ इत्थ देवी महिड्ढीया-जाव-पलिओवमट्ठिइया यहाँ महद्धिक-यावत्-पल्योपम की स्थिति वाली धति परिवसइ। नामक देवी रहती है। से तेणढणं गोयमा ! एवं बुच्चइ-तिगिछिदहे इस कारण गौतम ! तिगिछिद्रह तिगिछिद्रह कहा जाता है। तिगिछिद्दहे। अदुत्तर च णं गोयमा ! तिगिछिद्दहस्स सासए णाम अथवा गोतम ! तिगिछिद्रह यह नाम शाश्वत कहा गया है। धिज्जे पण्णत्ते । जं णं कयाइ णासी-जाव-णिच्चे तिगिछिदहे पण्णत्ते जो कभी नहीं था-ऐसा नही हैं-तिगिछिद्रह नित्य कहा इति । -जंबु० वक्ख० ४, सु० ८३ गया है । (४) केसरीदहस्स अवट्ठिई पमाणं च- (४) केसरीद्रह की अवस्थिति और प्रमाण५३२. .."एत्थ णं केसरीदहो..... -जंबु० वक्ख० ४, सु० ११० ५३२. यहाँ केशरीद्रह है। "५३३. तिगिच्छ-केसरिदहाणं चत्तारि चत्तारि जोयणसहस्साई- ५३३. तिगिच्छिद्रह और केशरीद्रह की लम्बाई चार-चार हजार आयामेणं पणत्ताई। -सम० ४०००, सु० २ योजन की कही गई है। (५) महापुण्डरीयदहस्स अवट्ठिई पमाणं च- (५) महापुण्डरीकद्रह की अवस्थिति और प्रमाण५३४. .."महापुण्डरीदहे.... -जंबु० वक्ख० ४, सु० १११ ५३४. महापुण्डरीकद्रह में५३५. महापउम-महापुण्डरीयदहाणं दो दो जोयणसहस्साई आयामेणं ५३५. महापद्मद्रह और महापुण्डरीकद्रह की लम्बाई दो-दो हजार पण्णत्ताई। -सम० २०००, सु०१ योजन की कही गई है। १ सम० ११७ । १, २, ३–ये संक्षिप्त वाचना के पाठ हैं । १ केसरी द्रह की अदस्थिति और प्रमाण तिगिछिद्र के समान है। २ महापुण्डरीकद्रह की अवस्थिति और प्रमाण महापदमद्रह के समान है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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