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लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक्लोक : पद्मद्रह वर्णम
सूत्र ५२७-५३०
उ०-गोयमा ! पउमद्दणं तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहवे. उ०-गौतम ! पद्मद्रह में उस-उस स्थान पर बहुत से पद्म
उप्पलाइ-जाव-सयसहस्सपत्ताई पउमद्दहप्प भाई पउम- हैं-यावत्-शतपत्र सहस्रपत्र (जाति के कमल) हैं, वे पद्मद्रह द्दह वण्णाभाई।
__ की प्रभा वाले तथा पद्मद्रह के वर्ग जैसे है। सिरी अ इत्थ देवी महिड्ढिया-जाव-पलिओवमट्टिईआ यहाँ महद्धिक-यावत्-पल्योपम की स्थिति वाली श्री परिवसइ।
नामक देवी निवास करती हैं। ऐएएण?णं गोयमा! एवं वुच्चइ-पउमद्दहे, पउमद्दहे। इस कारण गौतम ! पद्मद्रह को पद्मद्रह कहते हैं। अदुत्तरं च णं गोअमा ! पउमद्दहस्स सासए णामधेज्जे इसके अतिरिक्त, गौतम ! पद्मद्रह यह नाम शाश्वत कहा पण्णत्ते जं गं कयावि णासि,-जाव-अवहिए णिच्चे गया है, जो कभी नहीं था ऐसा नहीं है-यावत्-पद्मद्रह अव
पउमद्दहे पण्णत्ते इति । -जंबु० वक्ख० ४, सु०७३ स्थित एवं नित्य कहा गया है। महापउमद्दहस्स अवट्ठिई पमाणं च-
(२) महापद्मद्रह की अवस्थिति और प्रमाण५२८. महाहिमवंतस्स णं बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं एगे महापउमद्दहे ५२८. महाहिमवन्त पर्वत के ठीक मध्य भाग में महापद्मद्रह णामं दहे पण्णत्ते ।
नामक द्रह कहा गया है । दो जोअणसहस्साई आयामेणं,' एग जोअणसहस्सं विक्खं- जो दो हजार योजन लम्बा, एक हजार योजन चौड़ा, दस भेणं, दस जोअणाई उव्वेहेणं अच्छे-जाव-पडिरूवे रययामय- योजन गहरा स्वच्छ-यावत्-मनोहर है । एवं रजतमय किनारों कूले।
वाला है। एवं आयाम-विखंविहूणा जा चेव पउमद्दहस्स वत्तव्वया इसी प्रकार लम्बाई-चौड़ाई को छोड़कर शेष बातों में पद्मसा चेव अव्वा । पउमप्पमाणं दो जोअणाई।
द्रह के समान ही जानना चाहिए। इसके पद्म का प्रमाण दो -जंबु० बक्ख० ४, सु०८० योजन का है। महापउमद्दहस्स णामहेऊ
महापद्मद्रह के नाम का हेतु५२६. प०-से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ-महापउमद्दहे महा- ५२६. प्र०-भगवन् ! महापद्मद्रह-महापद्मद्रह क्यों कहा पउमद्दहे?
गया है ? उ०-गोयमा ! महापउमदहणं तत्थ तत्थ देसे तहि तहिं उ०-गौतम ! महापद्मद्रह में स्थान-स्थान पर अनेक उत्पल
बहवे उप्पलाई-जाव-सयसहस्सपत्ताई महापउमद्दहप्प- हैं यावत् - शतपत्र सहस्रपत्र (जाति के कमल) हैं। वे महाभाई महापउमद्दहवण्णाभाई।
पद्मद्रह के वर्ण जैसे हैं। हिरी अ इत्थ देवी महिडढोया-जाव-पलिओवमट्ठिइया यहाँ ही नामक देवी निवास करती है जो महद्धिक-यावत् परिवसइ।
-पल्योपम की स्थिति वाली है। से एएण?ण गोयमा ! एवं वुच्चइ-महापउमहह, इस कारण गौतम ! महापद्मद्रह महापद्मद्रह कहा जाता है। महापउमद्दहे। अवुत्तरं च णं गोयमा ! महापउमद्दहस्स सासए णाम- इसके अतिरिक्त गौतम ! महापद्मद्रह यह नाम शाश्वत कहा धिज्जे पण्णत्ते।
गया है। जंणं कयाइ णासी-जाव-णिच्चे महापउमद्दहे पण्णत्ते, जो कभी नहीं था, ऐसा नहीं है-यावत्-महापद्मद्रह इति ।
-जंबु० वक्ख० ४, सु० ८० नित्य कहा गया है । (३) तिगिछिद्दहस्स अवठिई पमाणं च- (३) तिगिछि द्रह की अवस्थिति और प्रमाण५३०. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्मदेसभाए ५३०. उस अति सम एवं रमणीय भूमिमाग के मध्य में तिगिछि
एत्थ णं महं एगे तिगिछिद्दहे णामं दहे पण्णत्ते । द्रह नामक एक विशाल द्रह कहा गया है ।