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सूत्र ५२६-५२७
तिर्यक् लोक : पद्मग्रह '
कोसं ऊसिया जलंताओ, साइरेगाई दसजोयणाई उड्ढ उच्चतेणं ।
तेसि णं परमाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते । तं जहावद्दरामया मूला जाव - कणगामई कण्णिआ ।
साणं कण्णिया कोसं आयामेणं, अद्धकोसं बाहल्लेणं, सव्वकणगामई अच्छा - जाव पडिरूवा इति ।
तीसे णं कण्णिआए उप्पि बहुसमरमणिज्जे- जाव-मणह उसोभए ।
तस्स णं पउमरस अवस्तेणं उत्तर-पुरस्थिमेणं एवं पं सिरोए देवीए चउन्हं सामाणियसाहस्सीणं चत्तारि परम साहसीओ पण्णत्ताओ ।
तस्स णं पउमस्स पुरत्थिमेणं एत्थ णं सिरीए देवीए चउन्हं महत्तरियाणं चत्तारि पउमा पण्णत्ता ।
तरस णं पठमस्स दाहिण-पुत्थिमेणं सिरीए अग्मितरिआए परिसाए अद्रुष्टं देवसाहस्सोणं अट्ठ पउमसाहस्सोओ पण्णत्ताओ। दाहिणं मज्झिमपरिसाए दसण्हं देवसाहस्सीणं दस पउमसाहस्सीओ पण्णत्ताओ ।
दाहिण -पच्चत्थिमेणं बाहिरिआए परिसाए बारसहं देवसाहस्तीर्ण बारसपउमसाहस्सोओ पाओ।
पच्चत्थिमेणं सत्तण्हं अणिआहिवईणं सत्त पउमा पण्णत्ता ।
तस्स णं पउमस्स चंउद्दिस सव्वओ समंता एत्थ णं सिरीए देवीए सोलसहं आयरक्खदेव साहस्सीणं सोलस पउमसाहसीओ पण्णत्ताओ |
से णं तीहि पमपरिवसिओ समता सपरिव तं जहा अतिरकेण ममएणं बाहिरएणं । अमितरए पउमपरिवर्णये बसी पउमसयसाहसीओ पण्णत्ताओ ।
मज्झिमए पउमपरिक्खेवे चत्तालीस पउमसयसाहसीओ पण्णत्ताओ ।
बाहिरए पमपरिअडवाली पउमससाहसीओ पण्णत्ताओ ।
एवामेव सपूम्यावरे तिहि परमपरिक्लेवहि एगा पउमकोडी बीसं च पडमयसाहसीओ भवतीतिमन्यायें ।
- जंबु० वक्ख० ४, सु० ७३
वर्णन
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एक कोस पानी से ऊपर (पानी के बाहर ) हैं । ( इस प्रकार सब मिलाकर) दस योजन से कुछ अधिक ऊँचे हैं ।
इन पद्मों का वर्णन इस प्रकार कहा गया है । यथा
इनके मूल वज्रमय है- यावत् - कणिका कनकमय है ।
यह कणिका एक कोस लम्बी आधा कोस मोटी, सर्वजनकमयी और स्वच्छ है - यावत् - प्रतिरूप है ।
इस कर्णिका के ऊपर अति सम एवं रमणीय ( भूमिभाग ) है - यावत् - मणियों से सुशोभित है ।
इस पद्म से पश्चिमोत्तर में, उत्तर में तथा उत्तर-पूर्व में श्रीदेवी के चार हजार सामानिकों (देवों) के चार हजार पद्म कहे गये हैं ।
इस पद्म के पूर्व में श्रीदेवी की चार महत्तरिकाओं (मुख्य देवियों) के चार पद्म कहे गये हैं ।
इस पद्म के दक्षिण-पूर्व में श्रीदेवी की आभ्यंतर परिषद् के आठ हजार देवों के आठ पद्म कहे गये हैं।
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दक्षिण में मध्य परिषद् के दस हजार देवों के दस हजार पद्म कहे गये हैं ।
दक्षिण-पश्चिम में बाह्य परिषद के बारह हजार देवों के बारह हजार पद्म कहे गये हैं ।
पश्चिम में सात अनीकाधिपतियों (देवों) के सात पद्म कहे गये हैं।
इन पद्मों की चारों दिशाओं में सभी ओर श्रीदेवी के सोलह हजार आत्मरक्षक देवों के सोलह हजार पद्म कहे गये हैं ।
यह पद्म सब ओर से तीन पद्म-परिधियों से घिरा हुआ है, यथा आभ्यन्तरपरिधि, मध्यपरिधि और बाह्यपरिधि । आभ्यन्तर पद्म-परिधि में बत्तीस लाख पद्म कहे गये हैं ।
मध्यमपद्म परिधि में चालीस लाख पद्म कहे गये हैं ।
बाह्यपद्म परिधि में अड़तालीस लाख पद्म कहे गये हैं।
इन तीनों पद्म-परिधियों में सब मिलाकर एक करोड़ बीस लाख पद्म है; ऐसा कहा गया है ।
पउमरहस्य णामहेऊ
पद्मद्रह के नाम का हेतु -
५२७. १० – से केण णं मंते ! एवं बुच्चइ - पउमद्दहे पउमद्दहे ? ५२७. प्र० - भगवन् ! पद्मद्रह, पद्मद्रह क्यों कहलाता है ?