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________________ ३०६ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : पद्मद्रह वर्णन सूत्र ५२५-५२६ जंबुद्दीवजगइप्पमाणा। गवक्खकडए वि तह चेव पमाणे- इसका परिमाण जम्बूद्वीप की जगती के बराबर है। उसके णंति । गवाक्षकटक (जालियों के समूह) का भी परिमाण उसी प्रकार समझना चाहिए। तस्स णं पउमस्स अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णसे, तं जहा- इस पद्म का वर्णन इस प्रकार का कहा गया है । यथावइरामया मूला, रिट्ठामए कंदे, वेरुलिआमए णाले वेरुलि- इसके मूल वज्रमय हैं । कन्द (मूल नाल के बीच की गांठ) आमया बाहिरपत्ता, जम्बूणयामया अमितरपत्ता, तवणिज्ज- अरिष्टरत्न की है। नाल वैडूर्यरत्नमय है । बाहर के पत्ते वैडूर्यमया केसरा, णाणामणिमया पोक्खरस्थिभाया, कणगामई मय है, अन्दर के पत्ते जम्बूनदस्वर्णमय है। केसर रक्तस्वर्णमय हैं । कण्णिगा। पुष्कर अस्थिभाग (कमल के बीज के विभाग) नाना-मणिमय है। कणिका कनकमयी है। सा णं अद्धजोअणं आयामविक्खंभेणं, कोसं बाहल्लेणं, यह कणिका आधा योजन लम्बी-चौड़ी, एक कोस मोटी तथा सव्वकणगामई अच्छा-जाव-पडिरूवा। स्वर्णमयी स्वच्छ-यावत्-प्रतिरूप है । तीसे णं कण्णिआए उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे इस कणिका के ऊपर अति सम और रमणीय भू-भाग कहा पण्णत्ते, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा,-जाव-तस्स गं गया है जैसे आलिंगपुष्कर हो-यावत्-उस अतिसम एवं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसमाए एत्थ णं महं रमणीय भूभाग के मध्य में एक विशाल भवन कहा गया है। एगे भवणे पण्णत्ते। कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, देसूणगं कोसं उड्ढं यह एक कोस लम्बा, आधा कोस चौड़ा कुछ कम एक कोश उच्चत्तेणं, अणेगखंभसयसण्णिविट्ठ पासाईए-जाव-पडिरूवे। ऊँचा सैकड़ों स्तम्भों से सन्निविष्ट, प्रासादिक—यावत्-प्रति तस्स णं भवणस्स तिदिसि तओ दारा पण्णत्ता । ते णं इस भवन की तीन दिशाओं में तीन द्वार कहे गये हैं। ये दारा पंचधणुसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं, अड्ढाइज्जाइंधणुसयाई द्वार पांच सौ धनुष ऊँचे, अढ़ाई सौ धनुष विष्कंभ वाले एवं उतने विक्खंभेणं, तावतिअं चेव पवेसेणं । ही प्रवेश वाले हैं। सेआवरकणगभिआओ-जाव-वणमालाओ अव्वाओ। यहाँ श्वेत व श्रेष्ठ कनक-स्तूपिकायें हैं-यावत्-बनमालाओं तक का कथन समझ लेना चाहिए । तस्स णं भवणस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते इस भवन के अन्दर का भू-भाग समतल एवं रमणीय कहा से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा,-जाव-तस्स गं बहुमज्झ- गया है जैसे आलिंगपुष्कर हो यावत्-उसके बीचों बीच एक देसभाए एत्थ णं महई एगा मणिपेढिआ पण्णत्ता। विशाल मणिपीठिका कही गई है। सा गं मणिपेढिआ पंचधणुसयाई आयाम विक्खंभेणं । यह मणिपीठिका पाँच सौ धनुष लम्बी-चौड़ी है, अड्ढाइज्जाइं धणुसयाई बाहल्लेणं । अढ़ाई सौ धनुष मोटी है, सव्वमणिमई अच्छा-जाव-पडिरूवा । सर्वमणिमयी और स्वच्छ-यावत्-प्रतिरूप है । तीसे गं मणिपेढिआए उप्पि एत्थ णं महं एगै सणिज्जे इस मणिपीठिका के ऊपर एक बड़ी शय्या कही गई है। पण्णत्ते । सयणिज्जवण्णओ भाणिअब्बो। शय्या का वर्णन यहाँ कहना चाहिए। -जंबु० वक्ख० ४, सु०७३ पउमपरिवारो पद्म-परिवार५२६. से णं पउमे अण्णणं अट्ठसएणं पउमाणं तद्धदूच्चत्तप्पमाण- ५२६. वह (उपर्युक्त) पद्म अपने से आधी ऊँचाई वाले अन्य एक मित्ताणं सवओ समता संपरिक्खित्ते । सौ आठ पद्मों से सब ओर से घिरा है। ते णं पउमा अद्धजोयणं आयाम-विक्खंभेणं, कोसं बाहल्लेणं, ये पदम आधा योजन लम्बे-चौड़े, एक कोस मोटे, दस योजन दसजोयणाई उब्वेहेणं। गहरे है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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