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________________ सूत्र ५२३.५२५ तिर्यक् लोक : पद्मद्रह वर्णन गणितानुयोग ३०५ तत्थ णं दो देवयाओ महिड्ढियाओ-जाव-पलिओवमट्ठिइ- वहाँ दो देवियाँ महान् ऋद्धि वाली-यावत्-पल्योपम की याओ परिवसंति, तं जहा-हिरि चेव, बुद्धि चेव। स्थिति वाली रहती हैं, यथा-ही देवी और बुद्धि देवी। एवं निसढ-नीलवंतेसु वासहरपव्वएसु दो महद्दहा बहुसम- इसी तरह निषध और नीलवंत वर्षधर पर्वतों पर दो महातुल्ला-जाव-परिणाहेणं, तं जहा-तिगिछिद्दहे चैव, केसरिद्दहे द्रह हैं, जो अति समतुल्य-यावत्-तुल्य परिधि वाले हैं। चव। यथा-तिगिच्छद्रह और केसरीद्रह । तत्थ णं दो देवयाओ महिड्ढियाओ-जाव-पलिओवमट्ठिइ- वहाँ दो देवियाँ महान् ऋद्धि वाली-यावत्-पल्योपम की याओ परिवति, तं जहा-धिति चेव, कित्ति चेव। स्थिति वाली रहती हैं। -ठाणं २, उ० ३, सु० ८८ (१) पउमद्दहस्स अवट्ठिई पमाणं च (१) पद्मद्रह की स्थिति और प्रमाण५२४. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए ५२४. इस अति सम एवं रमणीय भूमिभाग के मध्य में एक एत्थ णं इक्के महं पउमद्दहे णामं दहे पण्णत्ते । विशाल पद्मद्रह नामक द्रह कहा गया है। पाईण-पडीणायए, उदीण-दाहिण-वित्थिण्णे इक्कं जोअण- यह पूर्व-पश्चिम में लम्बा, उत्तर-दक्षिण में चौड़ा, एक हजार सहस्सं आयामेणं,' पंच जोअणसयाई विक्खंभेणं, दस जोअणाई योजन लम्बा, पाँच सौ योजन चौड़ा तथा दस योजन गहरा है । उन्वेहेणं,' अच्छे सण्हे, रययामयकूले-जाव-पासाईए-जाव- स्वच्छ, चिकना, रजतमय किनारों वाला-यावत्-प्रासादिक पडिरूवेति । -यावत्-प्रतिरूप है। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सवओ यह एक पद्मवरवेदिका तथा एक वनखण्ड से सब ओर से समंता संपरिक्खित्ते। घिरा है। वेइआ-वणसंडवण्णओ भाणिअब्वोत्ति । यहाँ वेदिका और वनखण्ड का वर्णन कहना चाहिए। तस्स णं पउमद्दहस्स चउद्दिसि चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा। इस (पद्मद्रह) के चारों दिशाओं में चार प्रतिरूप तीन पण्णत्ता। सोपान (पंक्तियाँ) कही गई है। वण्णावासो भाणिअन्वोत्ति । यहाँ इनका भी वर्णन कहना चाहिए। तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं पुरओ पत्ते पत्तेअं तोरणा इन प्रतिरूप तीन सोपानों के सामने पृथक्-पृथक् तोरण कहे पण्णता। ते णं तोरणा जाणामणिमया। गये हैं । ये तोरण नाना मणिमय हैं। -जंबु० वक्ख० ४, सु०७३ पउमद्दहस्स पउम-वण्णओ पद्मद्रह में पद्मवर्णक५२५. तस्स णं पउमद्दहस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एगे पउमे ५२५. इस पद्मद्रह के मध्य में एक विशाल पद्म कहा गया है। पण्णत्ते। जोअणं आयाम-विक्खंभेणं, अद्धजोअणं बाहल्लेणं, दस यह एक योजन लम्बा-चौड़ा, आधा योजन मोटा, दस योजन जोअणाइं उब्वेहेणं । गहरा है। दो कोसे ऊसिए जलताओ, साइरेगाइं दस जोअणाई सम्व- और जल की सतह से दो कोस ऊँचा है। सब मिलाकर ग्गेणं पण्णत्ता। इसका परिमाण कुछ अधिक दस योजन का कहा गया है । से णं एगाए जगईए सब्वओ समंता संपरिक्खित्ते । यह चारों ओर से एक जगती (कोट) से घिरा हुआ है। १ सम० ११३ सूत्र १० । २ सव्वेवि णं महादहा दस जोयणाई उव्वेहेणं पण्णत्ता। -ठाणं १०, सु० ७७६
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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