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________________ ३०४ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : महाद्रह वर्णन सूत्र ५२१-५२३ जम्बुद्दीवे छ महदहा, दहदेविओ य जम्बूद्वीप में छह महाद्रह और द्रहदेवियाँ५२१. जंबुद्दीवे दीवे छ महद्दहा पण्णत्ता तं जहा ५२१. जम्बूद्वीप नामक द्वीप में छह महाद्रह कहे हैं । यथा१ पउमदहे, २ महापउमद्दहे, ३ तिगिच्छद्दहे, ४ केसरिद्दहे, (१) पद्मद्रह, (२) महापद्मद्रह, (३) तिगिछद्रह, ५ महापोंडरीयद्दहे, ६ पुण्डरीयद्दहे । (४) केसरिद्रह, (५) महापुण्डरीकद्रह, (६) पुण्डरीकद्रह । तत्थ णं छ देवयाओ महिड्ढियाओ-जाव-पलिओवमट्टिइयाओ उन (पद्म आदि द्रहों में अनुक्रम से) छह देवियाँ महधिकपरिवति तं जहा यावत्-पल्योपम की स्थिति वाली निवास करती है । यथा१ सिरि, २ हिरि, ३ धिति, ४ कित्ति, ५ बुद्धि, ६ लच्छी। (१) श्री, (२) ही, (३) धृति, (४) कीर्ति, (५) बुद्धि, -ठाणं ६, सु० ५२२ (६) लक्ष्मी । जंबमंदर-दाहिणुत्तरेणं तओ तओ महा दहा दहदेविओ जम्बूद्वीप के मंदर पर्वत से दक्षिण और उत्तर में तीन तीन य महाद्रह और द्रहदेवियाँ५२२. जंबुमंदरस्स दाहिणेणं तओ महादहा पण्णत्ता, तं जहा- ५२२. जम्बूद्वीप के मंदर पर्वत से दक्षिण में तीन महाद्रह कहे गये हैं, यथा-. १ पउमदहे, २ महापउमदहे, ३ तिगिछदहे। (१) पद्मद्रह, (२) महापद्मद्रह, (३) तिगिछद्रह । तत्थ णं तओ देवयाओ महिड्ढियाओ-जाव-पलिओवमट्ठि- वहाँ महाऋद्धि वाली-यावत्-पल्योपम की स्थिति वाली इयाओ परिवसति, तं जहा तीन देवियाँ रहती हैं, यथा१सिरी, २ हिरी, ३ धितो। (१) श्री, (२) ह्री, (३) धृति । जंबुमंदरस्स उत्तरेणं तओ महा दहा पण्णत्ता, तं जहा- जम्बूद्वीप के मंदर पर्वत से उत्तर में तीन महाद्रह कहे गये हैं, यथा१ केसरीदहे, २ महापोंडरीयदहे, ३ पोंडरीयदहे। (१) केसरीद्रह, (२) महापोंडरीकद्रह, (३) पोंडरीकद्रह । तत्थ णं तओ देवयाओ महिड्ढियाओ-जाव-पलिओवमट्टि- वहाँ महाऋद्धिवाली-यावत्-पल्योपम की स्थिति वाली इयाओ परिवति, तं जहा तीन देवियाँ रहती हैं, यथा१ कित्ती, २ बुद्धि, ३ लच्छो । (१) कीति, (२) बुद्धि, (३) लक्ष्मी । -ठाणं ३, उ० ४, सु० १६७ दोण्हं दोण्हं दहाणं समप्यमाणं दहदेवीओ य- दो दो द्रहों का समप्रमाण और द्रहदेवियाँ५२३. जंबुद्दीवे दीवे मंदरपव्वयस्स उत्तर-दाहिणणं चुल्लहिमवंत- ५२३. जम्बूद्वीपवर्ती मेरुपर्वत के उत्तर और दक्षिण में लघुहिम सिहरीसु वासहरपब्बएसु दो महद्दहा बहुसमतुल्ला अविसेस- वान् और शिखरी पर्वतों में दो महान् द्रह हैं। जो अतिसमतल्य. मणाणत्ता अण्णमण्णं णाइवट्टन्ति, आयाम-विक्खंभ-उब्वेह- विशेषता व विविधता रहित लम्बाई-चौड़ाई, गहराई, संस्थान संठाण-परिणाहेणं तं जहा-पउमद्दहे चैव, पुण्डरीयद्दहे चेव। एवं परिधि में एक-दूसरे का अतिक्रमण नहीं करने वाले हैं। यथा-पद्मद्रह और पुण्डरीकद्रह । तत्थ णं दो देवयाओ महिड्ढियाओ, महज्जुइयाओ महाणु- वहाँ महान् ऋद्धि वाली, महाद्युति वाली, महानुभाग वाली, भागाओ, महायसाओ महाबलाओ महासोक्खाओ पलिओव- महायश वाली, महाबल वाली, महासुख वाली और पल्योपम की मट्रिइयाओ परिवति, तं जहा–सिरि चेव, लच्छी चैव। स्थिति वाली दो देवियाँ रहती हैं, यथा-श्री देवी और लक्ष्मी देवी। एवं महाहिमवंत-रुप्पीसु वासहरपव्वएसु दो महद्दहा बहु- इसी तरह-महाहिमवान् और रुक्मि वर्षधर पर्वतों पर दो समतुल्ला-जाव-परिणाहेणं, तं जहा-महापउमद्दहे चेव, महा- महाद्रह हैं, जो अतिसमतुल्य हैं, तुल्य परिधियाँ वाले हैं-यावत पोंडरीयद्दहे चेव । --परिधितुल्य हैं, यथा-महापद्मद्रह और महापुण्डरिकद्रह ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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