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________________ सूत्र ५१७-५२० जव रोहिअंसाकुण्डे तहेव - जाव अट्ठो । तिर्यक् लोक महाग्रह वर्णन दाहिनेतिं एत्य में अंबुद्दीचे दोने महाविदेहे जम्बूद्वीप नामक द्वीप के महाविदेह वर्ष में ग्राहावतीकुण्ड नामक वासे वाहावकुण्डे णामं कुठे पण्णत्ते । कुण्ड कहा गया है । इसका स्वरूप रोहितांशा कुण्ड के समान - यावत्-नाम - जंबु० वक्ख० ४, सु० ६५ हेतु पर्यन्त समझ लेना चाहिए । उ०- गोयमा आवत्तस्स विजयस्स पच्चत्थिमेणं, कच्छगावईए विजयस्स पुरत्थिमेणं, णीलवंतस्स दाहिणिल्ले नितंबे एत्थ णं महाविदेहे वासे दहावईकुण्डे णामं कुण्डे पण्णत्ते । से जहा माहाकुण्ड जान-अडी गणितानुयोग (६६) दहावईकुण्डरस ठाणप्यमाणाई (६६) ब्रहावती कुण्ड के स्थान प्रमाणादि ५१८. ५० - कहि णं भंते! महाविदेहे वासे दहावई कुण्डे णामं ५१० प्र० - भगवन् ! महाविदेह वर्ष में द्रहावतीकुण्ड नामक कुण्डे पण्णत्ते ? कुण्ड कहाँ कहा गया है ? — - जंबु० वक्ख० ४, सु० ६५ हेतु कहना चाहिए । (६८) तत्तजलाकुण्डस्स ठाणप्पमाणाइ(६९) मत्तजलाकुण्डस्स ठाणप्पमाणाइ(७०) उम्मत्तजला कुण्डस्स ठाणप्पमाणाइ(७१) खीरोदाण्डस ठाणप्यमाणाइ(७२) सीअसोजकुण्डस ठाणप्पमाणाइ(७३) अन्तोवाहिनी कुण्डस्स ठाणप्पमाणाइ(७४) उम्मिमालिणीकुण्डस्स ठाणप्पमाणाइ(७५) फेणमा लिणीकुण्डरस ठाणप्पमाणाइ(७६) गंभीरमालिणीकुण्डस्स ठाणप्यमाणाइ जंबुद्दीवे सोलस महद्दहा५२० प० - जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइआ महद्दहा पण्णत्ता ? उ०- गोयमा ! सोलस महद्दहा पण्णत्ता । - जंबु० वदख० ६, सु० १२५ ३०३ उ०- गौतम ! आवर्तविजय के पश्चिम में कच्छगावती विजय के पूर्व में तथा नीलवन्त पर्वत के दक्षिणी नितम्ब में महाविदेह वर्ष में द्रहावतीकुण्ड नामक कुण्ड कहा गया है । शेष वर्णन ग्राहायती कुण्ड के समान है— यावत्-यहाँ नाम (६०) पंकावईण्डरस ठाणप्यमाणाई (६७) पंकावतीकुण्ड के स्थान प्रमाणादि ५१६. ५० – कहि णं भंते! महाविदेहे वासे पंकावई कुण्डे णामं ५१६. प्र० - भगवन् ! महाविदेह वर्ष में पंकावतीकुण्ड नामक कुण्ड कहाँ कहा गया है ? ? पुष्कल उ०- गोयमा ! मंगलावत्तस्स विजयस्स पुरत्थिमेणं, पुक्खलविजयस्स पच्चत्थिमेणं, णीलवंतस्स दाहिणणितंबे एत्थ णं महाविदेहे वासे पंकावई कुण्डे णामं कुण्डे पण्णत्ते तं चैव वाहावइकुण्डपमा जावो। उ०- गौतम ! मंगलावर्त्त विजय के पूर्व में, विजय के पश्चिम में तथा नीलवन्त के दक्षिणी नितम्ब में महाविदेह वर्ष में पंकावतीकुण्ड कहा गया है । । - जंबु० वक्ख० ४, सु० ६५ इसका प्रमाण ग्राहावती कुण्ड के बराबर कहा गया हैनाम हेतु कहना चाहिए । (६८) तप्तजलाकुण्ड के स्थान प्रमाणादि(६६) मत्तजलाकुण्ड के स्थान प्रमाणादि(७०) उन्मत्तजलाकुण्ड के स्थान प्रमाणादि(७१) शीतोदकुण्ड के स्थान प्रमाणादि( ७२ ) शीतश्रोताकुण्ड के स्थान प्रमाणादि(७३) अंतोवाहिनीकुण्ड के स्थान प्रमाणादि(७४) उर्मिमालिनीकुण्ड के स्थान प्रमाणादि(७५) फैनमालिनीकुण्ड के स्थान प्रमाणादि(७६) गंभीरमालिनीकुण्ड के स्थान प्रमाणादि—जम्बूद्वीप में सोलह महाग्रह ५२०. भगवन् जम्बूद्वीप में कितने महाइह कहे गये हैं ? ! उ०- गौतम ! सोलह महाद्रह कहे गये हैं । १ तप्तजलाकुण्ड से लेकर अंतिम गम्भीरमालिनी कुण्ड पर्यन्त का प्रमाण पंकावतीकुण्ड के समान समझना चाहिए ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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