SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 461
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०२ लोक-प्रज्ञप्ति उस जोजना आयाम- विश्वं मेगं दोणि विसरे जोजनाए परिश्यवेगं । दो कोसे ऊसिए जलंताओ सध्ववइरामए अच्छे-जावपडिरुवे । ति लोक कुछ वर्णन सेसं तमेव वेश्या वणसं भूमिभाग भवनसम्मिट्टो भाणि। - जंबु० वक्ख० ४, सु० ८४ (१-१६) गंगाकुण्डस्स ठाणप्पमाणाइ ५१५.५० कहि ते कुण्डे पणते ? - उ०- गोयमा ! चित्तकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, उसकूडस्स व्वयस्स पुरत्थिमेणं, णीलवंतस्स वास हरपव्वयस्स बाहिणिले णिलंबे एथ उत्तरहरू विजए गंगाकुण्डे णामं कुण्डे पण्णत्ते । जोगाई आयाम विक्खंभेणं, तहेव जहा सिंधु - जाव- वणसंडेणं य संपरिक्खित्ता । - जंबु० वक्ख० ४, सु० ६३ (१७-३२) सिंधुकुण्डस्स ठाणप्पमाणाइ५१६. ५० कहि भते जंबूद्दीये दीवे महाविदेहे वासे उत्तर कच्छे विजए सिंधुकुण्डे णामं कुण्डे पण्णत्ते ? (१-१६) गंगाकुण्ड के स्थान - प्रमाणादि उत्तरछे बिजए गंगाकुण्डे नाम ५१५. १० - भगवन् ! उत्तरार्ध विजय में गंगाकुण्ड नामक कुण्ड कहाँ कहा गया है ? सूत्र ५१४- ५१७ वह चौसठ योजन लम्बा-चौड़ा, दो सौ दो योजन की परिधि वाला है, उ० गोषमा ! सुकच्छविजयस्स पुरत्थिमेणं महाकपछस्स विजयस्स पच्चत्थिमेणं, णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स जल की सतह से दो कोस ऊँचा, सर्ववज्रमय और स्वच्छ है - यावत्-मनोहर है। शेष वेदिका, वनखण्ड, भूमिभाग, भवन, शय्या तथा नाम. हेतु का कथन भी उसी प्रकार कह लेना चाहिए। उ०- गौतम ! चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में, ऋषभकूट पर्वत के पूर्व में तथा नीलवन्त वर्षधर पर्वत के दक्षिणी नितम्ब में उत्तरार्ध विजय में गंगाकुण्ड नामक कुण्ड कहा गया है । यह साठ योजन लम्बा-चौड़ा है, इत्यादि वर्णन सिन्धु कुण्ड के समान है - यावत् - वनखण्ड से घिरा है । ( १७-३२) सिन्धुकुण्ड के स्थान प्रमाणादि ५१५. प्र०- भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के महाविदेह वर्ष के उत्तरार्धकच्छ विजय में सिन्धुकुण्ड नामक कुण्ड कहाँ कहा गया है ? उ०- गोयमा ! मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, उसभकूडस्स पच्चत्थिमेणं, णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स पहिले निसवे एव जंबुद्दीवे दोबे महाविदेहे वासे उत्तरढकच्छविजए सिधुकुण्डे णामं कुण्डे पण्णत्ते । स जोअणाणि आयाम विक्खंभेणं जाव-भवणं अट्ठो । महाणी या भरहसिधुकुण्डसरिसं सम्यं अव्वं जाव- । - जंबु० वक्ख० ४, सु० ९३ (३३-४८) रत्ताकुण्डस्स ठानप्यमाणाइ' (४६-६४) रतबइकुण्डस ठाणप्यमाणाइ'(६५) गंगावइकुण्डस ठाणव्यमाणाई | ५१७. ० कहि ते! जंबुद्दी दीवे महाविदेहे वाले गाहा ५१७. प्र० भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के महाविदेह क्षेत्र में ग्राहावती कुण्ड नामक कुण्ड कहा गया है ? बडकुण्डे णामं कुण्डे पणसे ? उ०- गौतम ! माल्यवन्त वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में, ऋषभ - कूट के पश्चिम में तथा नीलवन्त वर्षधर पर्वत के दक्षिणी नितम्ब में जम्बूद्वीप नामक द्वीप के महाविदेह क्षेत्र के उत्तरार्ध विजय में सिन्धुकुण्ड कहा गया है । यह साठ योजन लम्बा-चौड़ा है- यावत् - भवन नाम का हेतु तथा राजधानी पर्यन्त वर्णन पूर्ववत् समझ लेना चाहिए। भरत क्षेत्र के सिन्धुकुण्ड के समान सब वर्णन जानना चाहिए। (३३-४८) रक्ताकुण्ड के स्थान प्रमाणादि(४६-६४ ) रक्तावती कुण्ड के स्थान प्रमाणादि - (६५) ग्राहावती कुण्ड के स्थान प्रमाणादि उ०- गौतम ! सुकच्छ विजय के पूर्व में महाकच्छ विजय के पश्चिम में तथा नीलवन्त वर्षधर पर्वत के दक्षिणी नितम्ब में १-२ रक्ताकुण्ड और रक्तावती कुण्ड का प्रमाण गंगाकुण्ड के समान है ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy