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लोक-प्रज्ञप्ति
उस जोजना आयाम- विश्वं मेगं दोणि विसरे जोजनाए परिश्यवेगं ।
दो कोसे ऊसिए जलंताओ सध्ववइरामए अच्छे-जावपडिरुवे ।
ति लोक कुछ वर्णन
सेसं तमेव वेश्या वणसं भूमिभाग भवनसम्मिट्टो भाणि। - जंबु० वक्ख० ४, सु० ८४
(१-१६) गंगाकुण्डस्स ठाणप्पमाणाइ
५१५.५० कहि ते कुण्डे पणते ?
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उ०- गोयमा ! चित्तकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, उसकूडस्स व्वयस्स पुरत्थिमेणं, णीलवंतस्स वास हरपव्वयस्स बाहिणिले णिलंबे एथ उत्तरहरू विजए गंगाकुण्डे णामं कुण्डे पण्णत्ते ।
जोगाई आयाम विक्खंभेणं, तहेव जहा सिंधु - जाव- वणसंडेणं य संपरिक्खित्ता ।
- जंबु० वक्ख० ४, सु० ६३
(१७-३२) सिंधुकुण्डस्स ठाणप्पमाणाइ५१६. ५० कहि भते जंबूद्दीये दीवे महाविदेहे वासे उत्तर कच्छे विजए सिंधुकुण्डे णामं कुण्डे पण्णत्ते ?
(१-१६) गंगाकुण्ड के स्थान - प्रमाणादि
उत्तरछे बिजए गंगाकुण्डे नाम ५१५. १० - भगवन् ! उत्तरार्ध विजय में गंगाकुण्ड नामक कुण्ड कहाँ कहा गया है ?
सूत्र ५१४- ५१७
वह चौसठ योजन लम्बा-चौड़ा, दो सौ दो योजन की परिधि वाला है,
उ० गोषमा ! सुकच्छविजयस्स पुरत्थिमेणं महाकपछस्स विजयस्स पच्चत्थिमेणं, णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स
जल की सतह से दो कोस ऊँचा, सर्ववज्रमय और स्वच्छ है - यावत्-मनोहर है।
शेष वेदिका, वनखण्ड, भूमिभाग, भवन, शय्या तथा नाम. हेतु का कथन भी उसी प्रकार कह लेना चाहिए।
उ०- गौतम ! चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में, ऋषभकूट पर्वत के पूर्व में तथा नीलवन्त वर्षधर पर्वत के दक्षिणी नितम्ब में उत्तरार्ध विजय में गंगाकुण्ड नामक कुण्ड कहा
गया है ।
यह साठ योजन लम्बा-चौड़ा है, इत्यादि वर्णन सिन्धु कुण्ड के समान है - यावत् - वनखण्ड से घिरा है ।
( १७-३२) सिन्धुकुण्ड के स्थान प्रमाणादि
५१५. प्र०- भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के महाविदेह वर्ष के उत्तरार्धकच्छ विजय में सिन्धुकुण्ड नामक कुण्ड कहाँ कहा गया है ?
उ०- गोयमा ! मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, उसभकूडस्स पच्चत्थिमेणं, णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स पहिले निसवे एव जंबुद्दीवे दोबे महाविदेहे वासे उत्तरढकच्छविजए सिधुकुण्डे णामं कुण्डे पण्णत्ते । स जोअणाणि आयाम विक्खंभेणं जाव-भवणं अट्ठो । महाणी या भरहसिधुकुण्डसरिसं सम्यं अव्वं जाव- । - जंबु० वक्ख० ४, सु० ९३ (३३-४८) रत्ताकुण्डस्स ठानप्यमाणाइ'
(४६-६४) रतबइकुण्डस ठाणप्यमाणाइ'(६५) गंगावइकुण्डस ठाणव्यमाणाई
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५१७. ० कहि ते! जंबुद्दी दीवे महाविदेहे वाले गाहा ५१७. प्र० भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के महाविदेह क्षेत्र में ग्राहावती कुण्ड नामक कुण्ड कहा गया है ?
बडकुण्डे णामं कुण्डे पणसे ?
उ०- गौतम ! माल्यवन्त वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में, ऋषभ - कूट के पश्चिम में तथा नीलवन्त वर्षधर पर्वत के दक्षिणी नितम्ब में जम्बूद्वीप नामक द्वीप के महाविदेह क्षेत्र के उत्तरार्ध विजय में सिन्धुकुण्ड कहा गया है ।
यह साठ योजन लम्बा-चौड़ा है- यावत् - भवन नाम का हेतु तथा राजधानी पर्यन्त वर्णन पूर्ववत् समझ लेना चाहिए। भरत क्षेत्र के सिन्धुकुण्ड के समान सब वर्णन जानना चाहिए। (३३-४८) रक्ताकुण्ड के स्थान प्रमाणादि(४६-६४ ) रक्तावती कुण्ड के स्थान प्रमाणादि - (६५) ग्राहावती कुण्ड के स्थान प्रमाणादि
उ०- गौतम ! सुकच्छ विजय के पूर्व में महाकच्छ विजय के पश्चिम में तथा नीलवन्त वर्षधर पर्वत के दक्षिणी नितम्ब में
१-२ रक्ताकुण्ड और रक्तावती कुण्ड का प्रमाण गंगाकुण्ड के समान है ।