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सूत्र ५११-५१४
तिर्यक् लोक द्वीप वर्णन
(७) सुवण्णकुलाबीवरस रुपकूलादीवरस य (७८) सुवर्णकुलाद्वीप और रुप्यङ्गलाद्वीप के प्रमाणादि
पमाणाइ
५११. "सुवण्णकूला”...." रुप्पकूला".... अवसिद्ध तं चेव भाणियव्वं । - जंबु० क्व० ४ ० १११
(E) हरिदीवरस पमाणाइ
५१२. "एवं जाने हरिकंसाए यत्सव्वा सा देव हरीए वि" - जंबु ० ० वक्ख० ४, सु० ८४
बत्तीसं जोअणाई आयाम विक्खंभेणं, एगुत्तरं जोअणसयं परिवर्त
दो कोसे ऊसिए जलताओ, सन्दरपणामए अच्छे-जाय पडिलवे |
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गणितानुयोग ३०१
५१२. जो हरिकान्ता नदी का वर्णन है वही हरि (हरिसलिला) नदी का भी जानना चाहिए ।
(१०) हरिकंतवीवस्त पमाणाइ
(१०) हरिकान्ताद्वीप के प्रमाणादि
-५१३. तस्स णं हरिकंतप्पवायकुण्डस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं ५१३ उस हरिकान्ता प्रपातकुण्ड के मध्य में हरिकान्तद्वीप
एवं हरिकंसदीये णामं दीवे।
नामक एक विशाल द्वीप कहा गया है ।
से णं एगाए पउमवरवेइआए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समता संपरिक्खित्ते ।
वण्णओ भाणिअव्वेत्ति पमाणं च सयणिज्जं च अट्ठो अ भाणिअव्वो । - जंबु० वक्ख० ४, सु० ८०
५११. 'सुवर्णकूला' द्वीप और 'रुप्यकूला' द्वीप के प्रमाणादि रोहिताद्वय और रोहितांसाद्वीप के समान है।
सुवर्णकुलादेवी के भवन और रुप्यकूलादेवी के भवन का प्रमाण भी रोहिता और रोहितांसादेवी के भवन के समान है । (2) हरिद्वीप के प्रमाणादि
यह बत्तीस योजन लम्बा-चौड़ा, एक सौ एक योजन की परिधि वाला है ।
जल से दो कोस ऊँचा, सर्वरत्नमय एवं स्वच्छ है- यावत्मनोहर है ।
यह एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से सभी ओर से घिरा हुआ है ।
यहाँ वर्णक कहना चाहिए, प्रमाण, शय्या तथा नाम का हेतु भी कहना चाहिए ।
(११-१२) परकतादीवरस णारिकतादीवरस य पमा- (११-१२) नरकान्ताद्वीप और नारीकान्ताद्वीप के प्रमाणादि
णाइ -
(१३) सीआदीयरस पमाणाइ
(१४) सीओअदीवरस पमाणाइ
(१३) शीताद्वीप के प्रमाणादि
(१४) शीतोदद्वीप के प्रमाणादि
५१४. तस्स णं सोपवायकुण्डस्स बहुमन्सवेसभाए एरवणं महं ५१४. उस शीतोदाप्रापातकुण्ड के मध्य में सीतोद्वीप नामक एक एगे सीओ अदीवे णामं दीवे पण्णत्ते । विशाल द्वीप कहा गया है ।
१
इस संक्षिप्त वाचनापाठ की सूचनानुसार सुवर्णकुलाद्वीप तथा रुप्यकुलाद्वीप और देवियों के भवनों का प्रमाण रोहिताद्वीप, रोहितांसाद्वीप और रोहितादेवी के भवन एवं राहितांसादेवी के भवन के समान कहना चाहिए ।
२
इस संक्षिप्त वाचना पाठ की सूचना के अनुसार हरिकान्तद्वीप के प्रमाण के समान हरि ( सलिला) द्वीप का प्रमाण भी जानना चाहिए । इसी प्रकार हरिकान्ता देवी के भवन के समान हरिदेवी का भवन भी जानना चाहिए ।
३ स्थानांग २, उ० ३, सूत्र ८८ में नरकान्ता और नारिकान्ता नदियों को समान कहा है । अतः उनमें नरकान्ताद्वीप और नारीकान्ता द्वीप भी समान है। इसी प्रकार नरकान्ता देवी का भवन तथा नारीकान्तादेवी का भवन समान है ।
४ स्थानांग २, उ० ३, सूत्र ८८ में शीता और शीतोदानदी को समान कहा है । अतः शीतोदाद्वीप के प्रमाण के समान शीतद्वीप का प्रमाण है ।
इस सूत्र की टीका में भी इस प्रकार कहा है- "...शीताद्वीपस्चतुःषष्टि योजनायामविष्कम्भो द्वयुत्तरयोजनशतद्वयपरिक्षेपः जलान्तादहिकोशोभित सीतादेवीभयनेन विभूषितोपरितन भाग ....