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लोक-प्रज्ञप्ति
• तिर्यक् लोक : द्वीप वर्णन
सूत्र ५०६-५१०
पाला हा
(२) सिंधुदीवस्स पमाणाइ
(२) सिन्धुद्वीप के प्रमाणादि५०६. सिंधुदीवे अट्ठो सो चेव ।
५०६. प्र०-'सिन्धुद्वीप' के 'प्रमाणादि' तथा नाम का हेतु गंगा-जंबु० वक्ख० ४, सु० ७४ द्वीप के समान है-यावत्- (सिन्धुदेवी का भवन भी गंगादेवी के
भवन के समान है।) (३-४) रत्तादीवस्स रत्तवईदीवस्स च पमाणाइ- (३-४) रक्ताद्वीप के और रक्तवतीद्वीप के प्रमाणादि५०७. “एवं जह चेव गंगा-सिंधुओ, तह चेव रत्ता-रत्तवईओ ५०७. गंगाद्वीप और सिन्धुद्वीप के प्रमाण के समान रक्ताद्वीप और णेयवाओ।"
रक्तवती द्वीप के प्रमाणादि हैं। -जंबु० वक्ख० ४, सु० १११ (रक्तादेवी और रक्तवती देवी के भवन भी गंगा-सिन्धुदेवी के
समान हैं ।) (५) रोहीअदीवस्स पमाणाइ
(५) रोहिताद्वीप के प्रमाणादितस्स णं रोहिअप्पवायकुण्डस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं ५०८. इस रोहिताप्रपातकुण्ड के मध्य में रोहिताद्वीप नामक एगे रोहिअदीवे णामं दीवे पण्णत्ते ।
एक विशाल द्वीप कहा गया है। सोलस जोअणाई आयाम-विक्खंभेणं, साइरेगाइं पण्णासं यह सोलह योजन लम्बा-चौड़ा, पचास योजन से कुछ अधिक जोअणाई परिक्खेवेणं,
की परिधि वाला है। दो कोसे ऊसिए जलताओ,
जल की सतह से दो कोस ऊँचा है। सव्ववइरामए अच्छे-जाव-पडिरूवे ।
सर्ववज्रमय एवं स्वच्छ है-यावत्-मनोहर है । से णं एगाए पउमवरवेइआए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ यह एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से सब ओर से समंता संपरिक्खित्ते । -जंबु० वक्ख० ४, सु०८० घिरा हुआ है। रोहिआ देवीए भवणस्स पमाणाइ
रोहितादेवी के भवन के प्रमाणादि५०६. रोहिअदीवस्स णं दीवस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे ५०६. रोहिताद्वीप के ऊपर का भूभाग अत्यन्त सम एवं रमणीय पण्णत्ते।
कहा गया है। तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए इस सम एवं रमणीय भूभाग के मध्य में एक विशाल भवन एत्थ णं महं एगे भवणे पण्णत्ते ।
कहा गया है। कोसं आयामेणं,
यह एक कोस लम्बा है। सेसं तं चेव, पमाणं च अट्ठो अ भाणिअब्बो।
शेष वक्तव्यता वही (गंगाद्वीप आदि के समान) है। इसका -जंबु० वक्ख० ४, सु० ८० प्रमाण और नाम का हेतु कहना चाहिए। (६) रोहिअंसदीवस्स पमाणाइ
(६) रोहितांसद्वीप के प्रमाणादि५१०. तस्स गं रोहिअंसप्पवायकुण्डस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं ५१०. रोहितांसाप्रपात कुण्ड के मध्य में रोहितांसा नामक एक एगे रोहिअंसाणामं दीवे पण्णत्ते ।
विशाल द्वीप कहा गया है। सोलस जोअणाई आयाम-विक्ख भेणं, साइरेगाइं पण्णासं यह सोलह योजन लम्बा-चौड़ा, पचास योजन से कुछ अधिक जोअणाई परिक्खेवेणं,
की परिधि वाला है। दो कोसे ऊसिए जलताओ,
पानी की सतह से दो कोस ऊँचा है। सब्बरयणामए अच्छे सण्हे-जाव-पडिरूवे ।
पुरा रत्नमय, स्वच्छ, चिकना-यावत्-मनोहर हैं। सेसं तं चेव-जाब-भवणं अट्रो अ भाणिअव्वोत्ति ।
शेष वर्णन वही-पूर्ववत् है-यावत्-भवन और नाम का -जंबु० वक्ख० ४, सु० ७४ कारण कहलवाना चाहिए।