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१८
गणितानुयोग प्रस्तावना
सूत्र ३११, १०२१३
उसका धनुपृष्ठ ६०४१८१८ योजन दिया गया है जो उपरोक्त
सूत्र द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। यह दाशमिक संकेतना में है ।
सूत्र ३१६, ३१७, ३१८, पृ० २१५
यहाँ के प्रमाण उपरोक्त गाथाओं सूत्र ३०६, ३१०, ३११ जैसे ही हैं ।
सूत्र ३१६, पृ० २१५-२१६
यहाँ धनुष शब्द का उपयोग उत्तरकुरु के मनुष्यों की ऊँचाई में हुआ है । यहाँ पत्योपम के संख्यातवें भाग से कुछ कम तीन पत्योपम का आयु में उपयोग हुआ है।
सूत्र ३३२, पृ० २२३
२
यहाँ दाशमिक संकेतना में १६५६२ योजन का कथन है । १९
सूत्र ३३६, पृ० २२६
क्षुद्र हिमवान पर्वत १०० योजन ऊँचा, २५ योजन गहरा १०५२१२ योजन चौड़ा, पार्श्व भुजा ५३५०+22+
१. २x१६
१६
१६
अथवा ५३५० योजन है। इसकी उत्तर जीवा २४९३२ ३८
योजन से कुछ कम कही गयी है। यही मान ति० प० भाग १/४ गाथा १६२४, १६२७ में दिये गये हैं किन्तु गाथा १६२६ में
उत्तर जीवा २४६३२ दी गयी है । १६
नोट- ५३५०५३५० में
१५ १६
यदि १५ में १६ भागों के भाग का आधा
१६
१
२
जोड़ने के लिए कहा गया है, किन्तु
१
३८
उसी का धनुपृष्ठ
जोड़ा जाये तभी
३१
प्राप्त होता है जो ति० प० की गाथा से मिलते हैं अन्यथा
३८
नहीं ।
६ दक्षिण में है जो २५२३० योजन है जो
१६ ० प० भाग १ / ४ गाथा १६२६ में इसी रूप में दिया गया है।
ति०
सूत्र ३३८, पृ० २२७.२२८
महाहिमवान की ऊँचाई २०० योजन विस्तार ४२१०.
१६
अथवा
00005
१६
गाथा १७१७ में दिया गया है।
योजन दिया गया है जो ति० प० भाग १/४
इसी प्रकार बाहु ९२७६ +
ह १६
भाग १/४ गाथा १७२१ में इसका मान ९२७६
= ६२७६
दी गई है । ति० ०
पूर्वोक लेना उचित होगा अर्थात् ९२७६+
३७ ३८
इस प्रकार यह पुनः शोध का विषय है ।
यदि यहाँ
करते हैं तो
६१६ दिया गया है।
३८
होगा ।
ह
१६
+
के स्थान में १६ भागों के भाग
१ ३८
योजन होता है इस प्रकार ३/१९ +१ / २६
१६ / ३८ हो जाता है ।
से कुछ अधिक योजन
इसकी लम्बाई (बीचा) २३६३११६
दी गयी है । ति० प० भाग १ / ४, गाथा १७१९ इसका मान
५३६.३१. योजन दिया गया है । यह भी शोध का विषय है ।
इसका धनुपृष्ठ ५७२६३ योजन दिया गया है जो ति०
१० १६ प० भाग १/४ गाथा १७२० से मिलता है ।
सूत्र ३४०, पृ० २२६
निषेध पर्वत ४०० योजन ऊँचा और ४०० योजन गहरा दिया गया है।
इसकी चौड़ाई १६८४२
१६
१/४ गाथा १७५० में इसी के समान दी गई है ।
योजन है जो ति एक भाग
प०