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गणितानुयोग : प्रस्तावना
१ २४१६ लिखने की और
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सूत्र २६७, पृ० २००--
सूत्र ३०२, पृ० २११-यहाँ प्रमाण ३३७६७७० योजन दिया गया है। यहाँ हरिवर्ष क्षेत्र की पूर्व पश्चिम में भुजा १३
ति०प० भाग १/४ में इसका प्रमाण नहीं दिया गया है। योजन लम्बी दी गई है। यही मान ति०प० भाग १/४, पृ०॥ सूत्र २६६, पृ० २००---
३७०, गाथा १७४३ में १३३६११३ रूप में दिया गया है। यहाँ यहाँ प्रमाण १५८११३१६ योजन से कुछ अधिक बतलाया गया है।
लिखने की शैली में १३३६१+ ति० प० भाग १/४ में यह मान १५८११३, कोस - दिया
- अर्थ निकलता है। यह शोध का विषय है। गया है।
२४१६ सूत्र २६३, पृ० २०६
यदि १६ भाग के एक भाग का भाग लिया जाये तो.. होता है यहाँ प्रमाण २१०५४ योजन दिया गया है । सूत्र २६४, पृ० २०६
जिसे 5 में जोड़ने पर १३ प्राप्त हो जाता है । यहाँ प्रमाण ६७५५२ योजन दिया गया है।
सूत्र ३०३, पृ० २११- - ति० प० भाग १/४ में यह मान वही ६७५५ ३ योजन दिया
___ हरिवर्ष क्षेत्र की जीवा का मान ७३६०१६ योजन
दिया गया है जो ति० प० भाग १/४, गाथा १७४० में गया है। सूत्र २६५, २६६, पृ० २१०
७३९०११० योजन दिया गया है। यहाँ हेमवत क्षेत्र की जीवा एवं धनुपृष्ठ के माप क्रमशः
सूत्र ३०४, पृ० २११३७६७४१६ एवं ३८७४०१० योजन हैं जो ति० प० भाग १/४
हरिवर्ष क्षेत्र की धनुपीठिका का मान ८४०१६, योजन गाथा १६६६ एवं १७०० से मिलते हैं। इनके निकालने की विधि पूर्वोक्त ही है।
दिया गया है, जो ति० प० भाग १/४, गाथा १७४८ में इसी
रूप में दिया गया है। सूत्र २६८, पृ० २१०इस सूत्र में पल्योपम शब्द का उल्लेख है जो स्थिति दर्शाता
सूत्र ३०६, पृ० २१३-- है। इसी प्रकार सूत्र ३००, ३०६, ३१३ आदि में इस पारिभा
यहाँ देवकुरु का विष्कम्भ ११८४२ योजन बतलाया गया षिक शब्द का प्रयोग हुआ है। यह काल-समय राशि का द्योतक
है जो दाशमिक संकेतना में है। यह मान ति० प० भाग १/४, सूत्र ३०१, पृ० २११
गाथा २१४२ में
दया गया है। यह शोध का यहाँ निषध पर्वत के दक्षिण में हरिवर्ष क्षेत्र की चौड़ाई
विषय है। ८४२११ योजन बतलाई गई है । यह हल करने पर सूत्र ३१०, पृ० २१३योजन होता है जो ति०प० भाग १/४ गाथा १७३६ में दिया. देवकुरु की जीवा उत्तर में ५३००० योजन दी गई है । यही गया है।
मान ति० ५० भाग १/४, गाथा २१४० में दिया गया है।
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