SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६ गतिणानुयोग : प्रस्तावना अथवा बाण का मान यह ले लेने पर धनुष का प्रमाण निम्नलिखित सूत्र से निकालते है बाण से युक्त व्यास के वर्ग में से व्यास के वर्ग को घटाकर शेष को दुगुणा करने से जो प्राप्त होता है वह धनुष का वर्ग होता है और उसका वर्गमूल धनुष का प्रमाण होता है । यथा ३ बाण = २३८ : योजन, व्यास = १००००० योजन १६ अतः धनुष= 2 -√ (१०००००+२३८)' - (१०००००)t (800000 =२७६६, • योजन १६ नोट- प्रकृत गणितायुयोग में इसका मान इससे किंचित विशेष अधिक कहा गया है। ३ बाण २३८३८ (५२६८-५० ) - २ योजन होता है। - = १६ इसी प्रकार जीवा निकालने का सूत्र है बाण से रहित अर्द्धविस्तार का वर्ग करके उसे विस्तार के अर्द्धभाग के वर्ग में से घटा देने पर अवशिष्ट राशि को चार से गुणा करके प्राप्त राशि का वर्गमूल निकालने पर जीवा का प्रमाण प्राप्त होता है यथा विष्कंभ १००००० योजन, बाण ३ ४५२५ २३८-= योजन १६ १६ . जीवा * ४५२५ १६ = २७४८!- योजन दक्षिणार्ध (दक्षिण विजया) की जीवा १६ यथा : प्राप्त होती है । इसी प्रकार यदि जीवा दी गई हो तो बाण प्राप्त करने हेतु जीवा के वर्ग के चतुर्थ भाग को अर्द्ध विस्तार के वर्ग में से घटा कर शेष का वर्गमूल निकालने पर जो प्राप्त हो उसे विस्तार के अर्द्धभाग में से कम कर देने पर शेष बाण का प्रमाण प्राप्त होता है । जीवा = ६७४८१२ योजन=१८५२२४ १६ १६ विस्तार १००००० योजन ... बाण = १००००० २ - √(००:-")* - {{{८११२४)**}} X बतलाया गया है । १००००० =√*{{'""""")' -("+""-')} सूत्र २६१. ० १६६ यहाँ प्रमाण १४५२ ३ = २३८ - योजन १६ देखिए ति० प० भाग १, महा० ४ गाथा १८०-१८२. सूव २५६, पृ० १६८ योजन यहाँ प्रमाण १८६२६६+ २+योजन अर्थात् १०१२ योजन है । ति० प० भाग १/४ गाथा १६४ में यह प्रमाण १८६ ૦૨૨# दिया गया है। सूत्र २६०, पृ० १६६ यहाँ प्रमाण १४४७१४७१ योजन से कुछ कम बतलाया गया। १६ है । ति० ० प० भाग १ / ४, गाथा १६१ में यह प्रमाण १४४७१ १६. १४५२८६ योजन बतलाया गया है । ૨૪૫૨૬}} सूत्र २६६, पृ० २०० ३३ ३८ ति० प० भाग १ / ४, गाथा १९२ में भी यही प्रमाण बतलाया गया है । यहाँ प्रमाण ३३६८४ योजन दिया गया है । ति० प० भाग १ / ४ गाथा १७७५ में भी यही मान दिया गया है ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy