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________________ ___ सिद्धायतन की लम्बाई १२३ योजन, चौड़ाई ६१ योजन गणितानुयोग : प्रस्तावना १५ सम्बन्धी इतना प्रमाण देकर अभी भी प्राचीन विधि को रहस्यमय सूत्र १६४, पृ० १६६ रखा गया है। पुनः ति० प०, वही, सूत्र ६, पृ० १४३ पर त्रसनाली के बहुमध्य भाग में चित्रा पृथ्वी के उपरिम भाग में ४५००००० योजन विस्तार वाला अतिगोल मनुष्यलोक है जिसका और ऊंचाई योजन दी गयी है । यह घनायत के आकार का है। बाहल्य १००००० योजन और परिधि १४२३०२४६ योजन सूत्र १७१, पृ० १६६ बतलाई गयी है । इन सभी मापों का उपयोग होता रहा होगा। इस सूत्र में यावत् शब्द का उपयोग तथा दाशमिक सकेतना सूत्र ८, पृ० १२५ में एक सौ आठ का अनेक बार उपयोग हुआ है। कथन, 'कथंचित् शाश्वत और कथंचित् अशाश्वत यह जम्बू सूत्र १६५, पृ० १७३ द्वीप है" जो स्याद्वाद प्रणाली पर आधारित है । अन्य शब्दों में ___ इस में एक हजार आठ, एक सौ आठ, वैक्रिय समुद्घात यह सापेक्ष कथन है । पर्यायहष्टि से अशाश्वत और द्रव्यदृष्टि से यावत्, का गणितीय उपयोग हुआ है। शाश्वत है। सूत्र ८६, पृ० १५१ सूत्र २३०, पृ० १६१ यहाँ १०८ अथवा एकसौ आठवीं संख्या वाले अनेक चिन्हों इस सूत्र में पर्याप्त एवं अपर्याप्त मनुष्यों के स्थान मनुष्य का विवरण है । कुल १०८० ध्वजाओं का प्रमाण बतलाया गया । क्षेत्र में पैतालीस लाख योजन अढाई द्वीप में, पंद्रह कर्मभूमियों है । दाशमिक संकेतना में वर्णित है । में, तीस अकर्मभूमियों में और छप्पन अंतीपों में बतलाये गये सूत्र १०, पृ० १५१ यहाँ यावत् शब्द का उपयोग है। यह गणित में प्रयुक्त इस प्रकार लोक के असंख्यातवें भाग का उल्लेख है। होता है। सम्पूर्ण लोक में समुद्घात का भी उल्लेख है। सूत्र ६१, पृ०१५२ सूत्र २४५, पृ० १६५ यहाँ गणितीय शब्द बहुमध्यदेश भाग है। जम्बूद्वीप के एक सौ नव्वे भाग करने पर भरत क्षेत्र का सूत्र ६२, पृ०१५२ विष्कम्भ ५२६ योजन होता है। विष्कम्भ १००००० योजन यहाँ चार हजार में दाशमिक संकेतना का उपयोग है। सूत्र ६४-६६ पृ० १५२ में १६० का भाग देने पर यह प्राप्त हो जाता है। इन सभी में दाशमिक संकेतना का उपयोग हआ है, जहाँ सूत्र २४६, पृ० १६६ आठ हजार, दस हजार, बारह हजार का उपयोग हुआ है। इस सूत्र में पल्योपम स्थिति का उल्लेख है । काल की समय सूत्र १०५, प०१५३ राशि उपमा मान में पल्योपम के नाम से प्रसिद्ध है । इसका आयाम विष्कम्भ १२००० योजन लिया गया है। परिक्षेप प्रमाण ज्ञात करने हेतु देखिये ति० प० ग०, पृ०, २१-२२ जै० कुछ अधिक ३७९४८ योजन है । स्पष्ट है १२०००x१० अथवा ल०, पृ० ६६६, वि० प्र० पृ० १२१ आदि, जै० सि० को०, भाग १२०००४३.१६२२७ अथवा ३७६४७२४ से कुछ अधिक ३, पृ० ५०, भाग २, पृ० २१८ । गो० सा० जी० भाग १, बतलाया न्या है। पृ०२३० । सूत्र २५३, २५४, पृ० १६७ सूत्र १०६, पृ० १५३ प्राकार कोट का आयाम सहित मूल, मध्य, एवं ऊपरी भाग ___ जीवा की लम्बाई ६७४८ १२ योजन तथा धनुपीठिका का वर्णन किया गया है। यह ज्यामिति रूप में है जो गोपुच्छाकार है । यहाँ योजन, कोस इकाइयों का उपयोग हुआ है। इसी प्रकार आगे के १०७ से लेकर १०८ ११०, १११ सूत्र तक इन ९७६६० योजन से किंचित् विशेष अधिक परिधि वाली कही इकाइयों का उपयोग हुआ है । पुनः इसी प्रकार आगे सूत्र १२१, ___ गयी है । देखिये ति० प०, भाग १, पृ० १६३ । यदि सूत्र २५२, १२६, १२७ आदि गाथाओं में इनका उपयोग हुआ है। इनके द्वारा विभिन्न आकार वाली वस्तुओं के आयामादि के प्रमाण दिये पृ० १६७ के अनुसार चौड़ाई २३८ : योजन लेने पर, गये हैं। १४
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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