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________________ २६८ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : प्रपातकुण्ड वर्णन सूत्र ५०१-५०२ (१३) सीअप्पवायकुण्डस्स पमाणाई' (१३) सीताप्रपातकुण्ड के प्रमाणादि(१४) सीओअप्पवायकुण्डस्स पमाणाइ (१४) सीतोदाप्रपातकुण्ड के प्रमाणादि५०१. सीओआ णं महाणई जहिं पवडइ एत्थ णं महं एगे सीओ- ५०१. शीतोदा महानदी जहाँ गिरती है वहाँ शीतोदा प्रपातकुण्ड अप्पवायकुण्डे णामं कुण्डे पण्णत्ते । नामक एक विशाल कुण्ड कहा गया है । चत्तारि असीए जोअणसए आयाम-विक्खं भेणं, यह चार सौ अस्सी योजन का लम्बा-चौड़ा है। पण्णरस-अट्ठारे जोअणसए किंचिबिसेसूणे परिक्खेवेणं, ___ पन्द्रह सौ योजन से कुछ कम की परिधि वाला है, स्वच्छअच्छे-जाव-पडिरूवे। यावत्-मनोहर है। एवं कुण्डवत्तव्वया अव्वा-जाव-तोरणा । इस प्रकार कुण्ड को वक्तव्यता जान लेना चाहिए-यावत् -जंबु० वक्ख० ४, सु० ८४ तोरण है। जंबुद्दीवे भरहाईवासेसु गंगप्पवायाइ पवायदहा- जम्बूद्वीप के भरतादि क्षेत्रों में गंगाप्रपातादि प्रपातद्रह५०२. जंबुद्दीवे दीवे मंदरपब्वयस्स दाहिणणं भरहे वासे दो पवाय- ५०२. जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में भरत क्षेत्र में दो दहा, प्रपात द्रह हैं। बहुसमतुल्ला-जाव-परिणाहेणं । जो अति समतुल्य-यावत्-परिधि तुल्य हैं । तं जहा-गंगप्पवायद्दहे चेव, सिंधुप्पवायदहे चेव । यथा-गंगाप्रपातद्रह और सिन्धु प्रपातद्रह । . एवं हिमवए वासे दो पवायद्दहा, इसी प्रकार हैमवत क्षेत्र में दो प्रपातद्रह हैं। बहुसमतुल्ला-जाव-परिणाहेणं ।। जो अतिसम तुल्य-यावत्-परिधि तुल्य हैं। तं जहा-रोहियप्पवायद्दहे चेव, रोहियंसप्पवायद्दहे चेव । यथा-रोहितप्रपात द्रह और रोहितांशप्रपात द्रह । जंबुद्दीवे दीवे मंदरपब्वयस्स दाहिणेणं हरिवासे दो जम्बूद्वीपवर्ती मेरुपर्वत के दक्षिण में हरिवर्ष क्षेत्र में दो पवायद्दहा, प्रपातद्रह हैं। बहुसमतुल्ला-जाव-परिणाहेणं । जो अति समतुल्य-यावत्-तुल्य परिधि हैं । तं जहा-हरिप्पवायद्दहे चेव, हरिकंतप्पवायदहे चेव । यथा-हरिप्रपात द्रह और हरिकान्त प्रपातद्रह । जंबुद्दीवे दीवे मंदरपव्वयस्स उत्तर-दाहिणणं महाविदेह- जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर-दक्षिण में महाविदेह क्षेत्र वासे दो पवायद्दहा। में दो प्रपातद्रह हैं। बहुसमतुल्ला-जाव-परिणाहेगं, जो अतिसम तुल्य-यावत्-परिधि तुल्य है। तं जहा--सीअप्पवायदहे चेव, सीओअप्पवायदहे चेव। यथा-सीताप्रपातद्रह और शीतोदाप्रपातद्रह । जंबुद्दीवे दीवे मंदरपव्वयस्स उत्तरेणं रम्मए वासे दो। जम्बुद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर में रम्यकवर्ष में दो प्रपातपवायदहा, बहुसमतुल्ला-जाव-परिणाहेणं, जो अतिसमतुल्य--यावत्-परिधि तुल्य हैं। तं जहा-नरकंतप्पवायदहे चेव, नारीकंतप्पवायदहे चेव । यथा--नरकान्त प्रपातद्रह और नारीकान्तप्रपात द्रह । एवं हेरण्णवए वासे दो पवायदहा, इसी प्रकार हैरण्यवत क्षेत्र में दो प्रपातद्रह हैं । बहुसमतुल्ला-जाव-परिणाहेणं, जो अतिसम तुल्य-यावत्-परिधि तुल्य है । तं जहा-सुवन्नकूलप्पवायद्दहे चेव, रुप्पकूलप्पवायद्दहे चेव । __यथा-सुवर्णकूल प्रपातद्रह और रुप्यकूल प्रपातद्रह । १ जम्बु० वक्ष० ४ सूत्र ८४ में सीतोद प्रपातकुण्ड के आयामादि का वर्णन तो है किन्तु सीता प्रपातकुण्ड के आयामादि के सम्बन्ध में संक्षिप्त वाचना का सूचना पाठ उपलब्ध नहीं है फिर भी स्थानाङ्ग २, उ० ३, सूक्ष ८८ में सीता और सीतोदा महानदी का प्रमाण समान कहा है। अतः दोनों महानदियों के प्रपातकुण्डों के आयामादि भी समान ही हैं-ऐसा समझना चाहिए ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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