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सूत्र ४६८-५००
तिर्यक् लोक :प्रपात कुण्ड वर्णन
गणितानुयोग
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सवीसं जोयणसयं आयाम-विक्खंभेणं पण्णत्तं ।
यह एक सौ बीस योजन लम्बा-चौड़ा कहा गया है। तिण्णि असीए जोअणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं । तीन सौ अस्सी योजन से कुछ कम की परिधि वाला है । दस जोअणाई उव्वेहेणं, अच्छे-जाव-पडिहवे ।
दस योजन गहरा स्वच्छ-यावत्-मनोहर है। सो चेव कुण्ड वण्णओ। वइरतले वट्ट समतीरे-जाव- यहाँ वही कुण्डवर्णक कहना चाहिए। इसका तल वज्रमय तोरणा। -जंबु० वक्ख० ४, सु० ८० है। यह वर्तुलाकार व सम किनारों वाला है-यावत्
तोरण हैं। (६) रोहिअंसप्पवायकुण्डस्स पमाणाई
(६) रोहितांशप्रपातकुण्ड के प्रमाणादि४६६. रोहिअंसा महाणई जहिं पवडइ एत्थ णं महं एगे रोहिअंसा- ४६६. जहाँ रोहितांशा महानदी गिरती है वहाँ एक विशाल प्पवाय-कुण्डे णामं कुण्डे पण्णत्ते।
रोहितांशाप्रपातकुण्ड नामक कुण्ड कहा गया है । सवीस जोयणसयं आयाम-विक्खंभेणं,
यह एक सौ बीस योजन लम्बा-चौड़ा है। तिण्णिं असीए जोअणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं । तीन सौ अस्सी योजन से कुछ कम की परिधि वाला है।
दस जोअणाणं उब्वेहेणं, अच्छे-जाव-पडिरूवे । कुण्डवण्णओ दस योजन गहरा स्वच्छ-यावत्-मनोहर है। यहाँ कुण्ड -जाव--तोरणा। -जंबु० बक्ख० ४, सु०७४ का वर्णन समझ लेना चाहिए -यावत्-तोरण हैं। (७) सुवण्णकूलप्पवायकुण्डस्स पमाणाइ'
(७) सुवर्णकूला प्रपातकुण्ड के प्रमाणादि(८) रुप्पकूलप्पवायकुण्डस्स पमाणाइ
(८) रुप्यकूला प्रपातकुण्ड के प्रमाणादि(8) हरिकतप्पवायकुण्डस्स पमाणाइ
(६) हरिकांतप्रपातकुण्ड के प्रमाणादि५००. हरिकता णं महाणई जहिं पवडइ एत्थ णं महं एगे हरिकत- ५००. हरिकान्ता महानदी जहाँ गिरती है वहा हरिकान्ताप्रपातप्पवायकुण्डे णामं कुण्डे पण्णत्ते ।
कुण्ड नामक एक विशाल कुण्ड कहा गया है। दोण्णि अ चत्ताले जोयणसए आयाम-विक्खंभेणं,
यह दो सौ चालीस योजन लम्बा-चौड़ा है। सत्ताउण? जोअणसए परिक्खेवणं, अच्छे-जाव-पडिहवे। सात सौ उनसठ योजन की परिधि वाला है यह स्वच्छ है
यावत्-मनोहर है। एवं कुण्डवत्तव्वया सव्वा नेयव्वा-जाव-तोरणा । ___ यह सम्पूर्ण कुण्डवक्तव्यता कहनी चाहिए-यावत -
-जंबु० वक्ख० ४, सु०८० तोरण हैं। (१०) हरिसलिलप्पवायकुण्डस्स पमाणा
(१०) हरिसलिला प्रपातकुण्ड के प्रमाणादि(११) नरकतप्पवायकुण्डस्स पमाणा
(११) नरकान्ता प्रपातकुण्ड के प्रमाणादि(१२) नारीकंतप्पवायकुण्डस्स पमाणाइ
(१२) नारीकान्ता प्रपातकुण्ड के प्रमाणादि
१ जम्बु० वक्ष० ४ सूत्र १११ में 'जहा रोहिअंसा'-यह संक्षिप्त वाचना की सूचना है, इसके अनुसार सूवर्णकूला प्रपातकुण्ड के
आयामादिका वर्णन रोहितांसाप्रपातकुण्ड के आयामादि के वर्णन के समान है। २ जम्बु० वक्ष० ४ सूत्र १११ में 'जहा हरिकंता' तथा 'अवसिट्ठ तं चैव' ये दो संक्षिप्त वाचना की सूचनाएं हैं-इनके अनुसार
रुप्यकुलाप्रपातकुण्ड के आयामादि का वर्णन हरिकान्ता प्रपातकुण्ड के आयामादि के वर्णन के समान है। ३ जम्बु. वक्ष० ४ सूत्र ८४ में 'एवं जा चव हरिकताए वत्तव्वया सा चैव हरीए वि णेयव्वा । जिभियाए, कुडस्स, दीवस्स, भवणस्स
तं चैव पमाण । अट्ठो वि भाणियब्वो। यह संक्षिप्त सूचना हैं-इसके अनुसार हरिकान्ता प्रपातकुण्ड के आयामादि के समान हरिसलिलाप्रपातकुण्ड के आयामादि हैं । जम्बु० वक्ष० ४ सूत्र १११ में 'जहा रोहिआ'-यह संक्षिप्त वाचना की सूचना है, इसके अनुसार नरकान्ता प्रपातकुण्ड के आयामादि का वर्णन रोहिता प्रपात कुण्ड के आयामादि के वर्णन के समान है। जम्बु० वक्ष० ४ सूत्र १११ में 'जहा हरिसलिला'- यह संक्षिप्त वाचना की सूचना है, इसके अनुसार नारिकान्ताप्रपातकुण्ड के आयामादि का वर्णन हरिसलिलाप्रपातकुण्ड के आयामादि के वर्णन के समान है।