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लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : गुफा एवं प्रपातकुण्ड वर्णन
सूत्र ४८५-४६५
तं जहा-१. तमिसगुहा चैव, खंडप्पवायगुहा चेव। यथा-तमिस्रगुफा और खण्डप्रपातगुफा । तत्थ णं दो देवा महिड्ढिया-जाव-पलिओवमट्ठिइया परि- इन गुफाओं में दो देव रहते हैं जो महद्धिक-यावत्वसंति, तं जहा–१. कयमालाए चेव, २. गट्टमालए चेब। पल्योपम की स्थिति वाले हैं यथा-१. कृतमाल और २. नृत्यमाला।
-जंबुछ वक्ख० १, सु० १२ सीया-सीओयामहाणइउत्तर-दाहिणगया पव्वय-गुहा- शीता-शीतोदा महानदियों की उत्तर-दक्षिण दिशा स्थित देवा
पर्वत, गुफा और देव४८६. जंबुमंदर-पुरथिमेणं सीयाए महाणईए उत्तरेणं अट्ठ दोह- ४८६. जम्बूद्वीप के मन्दर पर्वत से पूर्व में और सीतामहानदी के
वेयड्ढा, अट्ठ तिमिसगुहाओ, अट्ठ खंडप्पवायगुहाओ, अट्ठ उत्तर में आठ दीर्घवैताढ्य पर्वत हैं, आठ तमिस्रगुफायें हैं, आठ कयमालगा देवा, अट्ठ नट्टमालगा देवा ।
खण्डप्रपात गुफायें हैं, आठ कृतमालक देव हैं, और आठ नृत्यमालक
देव हैं। ४६०. जंबुमंदर-पुरस्थिमेणं सोयाए महाणईए दाहिणेणं अट्ठ दोह- ४६०. जम्बूद्वीप के मन्दर पर्वत से पूर्व में और सीता महानदी के
वेयड्ढा, अट्ठ तिमिसगुहाओ, अट्ठ खंडप्पवायगुहाओ, अट्ठ दक्षिण में आठ दीर्घताढ्य पर्वत हैं, आठ तमिस्रगुफायें हैं, आठ कयमालगा देवा, अट्ठ नट्टमालगा देवा ।
खण्डप्रपात गुफायें है, आठ कृतमालक देव हैं और आठ नृत्यमालक
देव हैं। ४६१. जंबुमंदर-पच्चत्थिमेणं सीओयाए महाणईए उत्तरेणं अट्ठ दोह- ४६१. जम्बूद्वीप के मन्दर पर्वत से पश्चिम में और सीतोदा महानदी वेयड्ढा-जाव-अट्ठ नट्टमालगा देवा।
के उत्तर में आठ दीर्घवैताड्य पर्वत है-यावत् -आठ नृत्य
मालक देव हैं। ४६२. जंबुमंदर-पच्चत्थिमेणं सीओयाए महाणईए दाहिणेणं अट्ठ ४६२. जम्बूद्वीप के मन्दर पर्वत से पश्चिम में और सीतोदा दोहवेयड्ढा-जाव-अट्ठ नट्टमालगा देवा।
महानदी के दक्षिण में आठ दीर्घवैताढ्य पर्वत हैं -यावत्-आठ
-ठाणं ८, सु० ६३६ नृत्यमालक देव हैं । भरहे एरवए य दोहवेयड्ढाणं दुण्हं गृहाणं समतुल्लत्तं- भरत और ऐरवत के दीर्घवैताढ्य पर्वतों की दोनों गुफाओं
की समानता४६३. भारहए णं दोहवेयड्ढे दो गुहाओ बहुसमतुल्लाओ अविसेस ४६३. उस भरत-दीर्घ वैताढ्य में दो गुफायें कही गई हैं जो अति
मणाणत्ताओ अण्णमण्णं नाइवट्टन्ति आयाम-विक्खंभुच्चत्त- समतुल्य, अविशेष, विविधता रहित और एक-दूसरी की लम्बाई, संठाणपरिणाहेणं, तं जहा-तिमिसगुहा चैव, खंडप्पवायगुहा चौड़ाई, ऊँचाई, संस्थान और परिधि में अतिक्रम न करने वाली चेव।
हैं यथा-तिमिस्र गुफा और खण्ड-प्रपातगुफा । तत्थ णं दो देवा महिड्ढिया-जाव-पलिओवमट्ठिइया परि- वहाँ महद्धिक-यावत्-पल्योपम की स्थिति वाले दो देव वसंति । तं जहा–कयमालए चैव नट्टमालए चेव। रहते हैं, यथा-कृतमालक और नृत्यमालक ।
-ठाणं २, उ० २, सु० ८७ ४६४. एरावयाए णं दीहवेयड्ढे दो गुहाओ बहुसमतुल्ला-जाव-कय- ४६४. ऐरवत-दीर्घवैताढ्य में दो गुफायें हैं जो अतिसमान हैं
मालए चेव, नट्टमालए चैव। -ठाणं २, उ० ३, सु० ८७ वहां कृतमालक और नृत्यमालक देव रहते हैं । चोद्दसप्पवायकुण्डा'
चौदह प्रपात कुण्ड(१) गंगप्पवायकुण्डस्स पमाणाइ
(१) गंगा प्रपातकुण्ड का प्रमाण४६५. गंगा महाणई जत्थ पवडइ, एत्थ णं महं एगे गंगप्पवाए कुण्डे ४६५. गंगा महानदी जहां मिलती (हिमवान आदि पर्वतों से णामं कुण्डे पण्णत्ते।
गिरती) है, वहाँ गंगाप्रपात कुण्ड नामक एक विशाल कुण्ड कहा
गया है। प्रपातकुण्ड और प्रपातद्रह-दोनों समानार्थक हैं । देखिए-स्थानांग २, उ० ३, सूत्र ८८ की टीका का अंश"पवायदह" त्ति प्रपतनं प्रपातस्तदुपलक्षितो ह्रदौ प्रपात ह्रदी, इह यत्र हिमवदादेर्नगात् गंगादिका महानदी प्रणालेनाधोनिपतति. स प्रपातह्रद इति, प्रपातकुण्डमित्यर्थः ।"