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________________ २६० लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : कूट वर्णन सूत्र ४८४.४८५ उ०-गोयमा ! अट्ठ दिसाहत्थिकूडा पण्णत्ता, तं जहा- उ०-हे गौतम ! आठ दिशाहस्तिकूट कहे गये हैं, यथा १ पउमुत्तरकूडे, २ णीलबंतकूडे, ३ सुहत्थीकूडे, (१) पद्मोत्तरकूट, (२) नीलवंतकूट, (३) सुहस्तिकूट, (४) ४ अंजणगिरीकूडे, ५ कुमुदकूडे, ६ पलासकूडे, ७ वडि- अंजनगिरिकूट, (५) कुमुदकूट, (६) पलाशकूट, (७) वडिशककूट, सयकूडे, ८ रोअणगिरीकूडे ।' (८) रोचनगिरिकूट । ४८५. ५०-(१) कहि णं भंते ! मंदरे पम्वए भद्दसालवणे पउमुत्तरे ४८५. प्र०-(१) हे भगवन् ! मंदरपर्वत पर भद्रशालवन में णाम दिसाहत्थिकूडे पण्णत्ते ? पद्मोत्तर नाम का दिशाहस्तिकूट कहाँ कहा गया है ? उ०-गोयमा ! मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-पुरथिमेणं, पुरत्थि- उ-हे गौतम ! मंदरपर्वत के उत्तर पूर्व में, पूर्वी शीता मिल्लाए सीआए उत्तरेणं-एत्थ णं पउमुत्तरे णामं नदी के उत्तर में 'पद्मोत्तर' नाम का दिशाहस्तिकूट कहा गया है, दिसाहत्थिकूडे पण्णत्ते। पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच गाउयसयाई वह पाँच सौ योजन ऊंचा है, पाँच सौ गाउ भूमि में है । उन्हे णं। विक्खंभ-परिक्खेवो भाणियव्वो चल्लहिमवंत- इसी प्रकार-विष्कम्भ एवं परिधि चुल्ल हिमवन्त पर्वत के सरिसो। सदृश कहना चाहिए। पासायाण य तं चेव, पउमुत्तरो देवो, रायहाणी- इन कूटों पर स्थित प्रासादों का प्रमाण क्षुद्र हिमवन्कटाधिउत्तर-पुरत्थिमेणं । पति देव के प्रासाद जितना ही है । वहाँ पद्मोत्तर देव है, उसकी राजधानी उत्तर-पूर्व में है। (२) एवं णोलवंतदिसाहत्थिकूडे (२) इसी प्रकार नीलवन्त दिशाहस्तिकूट हैमंदरस्स दाहिण-पुरथिमेणं, पुरथिमिल्लाए सीआए यह मंदर पर्वत के दक्षिण-पूर्व में है, पूर्वी शीतानदी से दक्षिण दक्खिणेणं। एयस्स वि णीलवंतो देवो, रायहाणी-दाहिण-पुरस्थि- इस कूट का अधिपति नीलवन्त देव है, इसकी राजधानी मेणं। दक्षिण-पूर्व में है। (३) एवं सुहत्थि दिसाहत्थिकूडे (३) इसी प्रकार सुहस्ति दिशाहस्तिकूट हैमंदरस्स दाहिण-पुरथिमेणं, दक्खिणिल्लाए सीओआए यह मंदर पर्वत के दक्षिण-पूर्व में है, दक्षिणी शीतोदा नदी से पुरत्थिमेणं । पूर्व में है। एयस्स वि सुहत्थी देवो, रायहाणी-दाहिण-पुरस्थिमेणं। इस कूट का अधिपति सुहस्ति देव है, इसकी राजधानी दक्षिण-पूर्व में है। (४) एवं अंजणागिरिदिसाहत्थिकूडे ।। (४) इसी प्रकार अंजनगिरि दिशा हस्तिकूट हैमंदरस्स दाहिण-पच्चस्थिमेणं, दक्खिणिल्लाए सीओआए यह मंदर पर्वत के दक्षिण-पश्चिम में है, दक्षिणी शीतोदा नदी पच्चत्थिमेणं । से पश्चिम में है। १ (क) जम्बुद्दीवे दीवे मंदरे पव्वए भद्दसालवणे अट्ठ दिसाहत्थिकूडा पण्णता । तं जहागाहा-(१) पउमुत्तर, (२) णीलवंते, (३) सुहत्थि, (४) अंजणागिरी। (५) कुमुदे य, (६) पलासे य, (७) वडेंसे, (८) रोयणागिरी ।। -ठाणं. ८, सु० ६४२ स्थानाङ्गेऽष्टमस्थाने तु पूर्वादिषु दिक्षु हस्त्याकाराणि कूटानीति । (ख) अन्यत्र रोहणागिरि२ (क) उच्चत्वन्यायेन विष्कम्भः, मूले पञ्चयोजनशतानि, मध्ये त्रीणि योजनशतानि पञ्चसप्तत्यधिकानि, उपरि अ ततीयानि योजन शतानीत्येवंरूपो विष्कम्भः । (ख) परिक्षेपश्च भणितव्यः तथाहि-मूले पञ्चदशयोजन शतानि एकाशीत्यधिकानि, मध्ये एकादशयोजनशतानि पडशील्यधिकानि किञ्चिदूनानीति परिक्षेपः। ३ प्रासादानां च एतद्वतिदेवसत्कानां तदेव प्रमाणमिति गम्यं यत् क्षुद्रहिमवत्कूटपतिप्रासादस्पेति, अत्र बहवचननिर्देशो वक्ष्यमाणदिग्रहस्तिकूटवर्तिप्रासादेष्वपि समानप्रमाणसूचनार्थम् । -जम्बू० वृत्ति
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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