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________________ सूत्र ४८२-४८४ तिर्यक् लोक : कूट वर्णन गणितानुयोग २८६ सुवच्छादेवी, रायहाणी-पच्चत्थिमेणं । इस कूट पर सुवत्सा देवी निवास करती है, इसकी राजधानी पश्चिम में है। (६) एवं रुअगे कूडे (६) इसी प्रकार रुचककूट हैपच्चत्थिमिल्लस्स भवणस्स उत्तरेणं, उत्तर-पच्चत्थि- यह पश्चिमी भवन से उत्तर में है, उत्तर-पश्चिमी प्रासादामिल्लस्स पासायवडेंसगस्स दक्खिणेणं । वतंसक से दक्षिण में है। वच्छमित्तादेवी, रायहाणी-पच्चत्थिमेणं । इस कूट पर वत्स मित्रा देवी निवास करती है, इसकी राज धानी पश्चिम में है। (७) एवं सागरचित्तकूडे (७) इसी प्रकार सागरचित्तकूट हैउत्तरिल्लस्स भवणस्स पच्चत्थिमेणं, उत्तर-पच्चत्थि- यह उत्तरी भवन से पश्चिम में है, उत्तर-पश्चिमी प्रासादामिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पुरथिमेणं । वतंसक से पूर्व में है। वइरसेणादेवी, रायहाणी-उत्तरेणं । इस कूट पर वनसेना देवी निवास करती है, इसकी राज धानी उत्तर में है । (८) एवं वइरकूडे (८) इसी प्रकार वज्रकूट हैउत्तरिल्लस्स भवणस्स पुरथिमेणं, उत्तर-पुरथिमिल्लस्स यह उत्तरीभवन से पूर्व में है, उत्तर-पूर्वी प्रासादावतंसक से पासायवडेंसगस्स पच्चत्थिमेणं । पश्चिम है। बलाया देवी', रायहाणी उत्तरेणं । ____ इस कूट पर बलाहका देवी निवास करती है, इसकी राज धानी उत्तर में है। ४८३.५०-(8) कहि णं भंते ! गंदणवणे बलकूडे णामं कूडे ४८३. प्र०-(९) हे भगवन् ! नन्दनवन में बलकट नाम का पण्णत्ते? कूट कहाँ कहा गया है ? उ.-गोयमा ! मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-पुरथिमेणं-एत्थ उ०-हे गौतम ! मंदरपर्वत के उत्तर-पूर्व में नन्दनवन में णं णंदणवणे बलकूडे णाम कूडे पण्णत्ते । वज्रकूट नाम का कूट कहा गया है। एवं जं चेव हरिस्सह कूडस्स पमाण, रायहाणी अतं हरिस्सह कूट का जो प्रमाण है वही इस कूट का प्रमाण है, चेव बलकूडस्स वि। बलकूट की राजधानी का प्रमाण भी हरिस्सह कुट को राजधानी के समान है। णवरं-बलो देवो, रायहाणी उत्तर-पुरथिमे णं ति । विशेष—इस कूट पर बल नामक देव निवास करता है, -जंबु० वक्ख० ४, सु० १०४ इसकी राजधानी उत्तर-पूर्व में है। भद्दसालवणे अढदिसा हथिकूडा भद्रशालवन में आठ दिशा हस्तिकूट४८४. प०-मंदरे णं भंते ! पव्वए भद्दसालवणे कइ दिसाहत्थिकूडा ४८४. प्र०-हे भगवन् ! मेरु पर्वत पर भद्रशाल वन में कितने पण्णत्ता ? दिशा हस्तिकूट कहे गये हैं ? १ "एतत्कूटवासिन्यश्च देव्योऽष्टौ दिक्कुमार्यः" । -जम्बू० वृत्ति २ एवं बलकूडा वि, गंदणकूडवज्जा । -सम० ११३, सु०६ ३ "राजधानी-चतुरशीतियोजनसहस्रप्रमाणा"। -जम्बू० वृत्ति ४ (क) प्रश्नसूत्र-दिक्षु ऐशान्यादिविदिक्प्रभृतिषु हस्त्याकाराणि, कूटानि दिग्रहस्तिकूटानि । (ख) कूट शब्दवाच्यानामप्येषां पर्वतत्वव्यवहारःऋषभकूटप्रकरण इव ज्ञेयः । -जम्बू० वृत्ति
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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