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________________ २८८ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : कूट वर्णन सूत्र ४८०-४८२ ४ हिमवयकूडे, ५ रययकूडे, ६ रुअगकूडे, ७ सागर- (४) हिमवंतकूट, (५) रजतकूट, (६) रुचककूट, (७) सागरचित्तचित्तकूडे, ८ वइरकूडे, ६ बलकूडे । कूट, (८) वक्षकूट, (६) बलकूट । ४८१. ५०–कहि णं भंते ! णंदणवणे णंदणवणकूडे णामं कूडे ४८१. प्र०-हे भगवन् ! नन्दनवन में नन्दनवनकूट नाम का कूट पण्णत्ते ? कहाँ कहा गया है ? उ०-गोयमा ! १-मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमिल्लसिद्धाय- उ०-हे गौतम ! मन्दर पर्वत के पूर्वी सिद्धायतन से उत्तर यणस्स उत्तरेणं, उत्तर-पुरथिमिल्लस्स पासायव.सबस्स में उत्तर पूर्वी प्रासादावतंसक के दक्षिण में नन्दनवन में नन्दनवन दक्खिणेणं-एत्थ णं णंदणवणे णदणवणकडे णामं कूट कहा गया है। कुडे पण्णत्ते। पंचसइआ कूडा पुव्ववण्णिया भाणियव्वा । पूर्ववणित (विदिक हस्तिकूट) के समान ये कट भी पाँच सौ योजन ऊँचे कहने चाहिए। देवी-मेहंकरा, रायहाणी-विदिसाए ति । यहाँ मेघंकरा देवी निवास करती है, इसकी राजधानी विदिशा (उत्तर-पूर्व) में है। एआहि चेव पुव्वाभिलावेणं णेयव्वा । पूर्वकथित राजधानियों के समान इस राजधानी का वर्णन भी जानना चाहिए। इमे कूडा इमाहिं दिसाहिं। ये कूट इन दिशाओं में है(२) एवं मंदरे कूडे (२) इसी प्रकार मन्दरकूट है४८२. पुरथिमिल्लस्स भवणस्स दाहिणेणं, दाहिण-पुरथिमिल्लस्स ४८२. यह पूर्वी भवन से दक्षिण में है, दक्षिण-पूर्वी प्रासादावतंसक पासायवडेअगस्स उत्तरेणं । से उत्तर में है। मेहवई देवी, रायहाणी-पुब्वेणं । इस कूट पर मेघवतीदेवी निवास करती है, इसकी राजधानी पूर्व में है। (३) एवं णिसहे कूडे (३) इसी प्रकार निषधकूट हैदक्खिणिल्लस्स भवणस्स पुरथिमेणं, दाहिण-पुरत्थि- यह दक्षिणी भवन से पूर्व में है। दक्षिणी-पूर्वी प्रासादावतंसक मिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पच्चत्थिमेणं । से पश्चिम में है। सुमेहा देवी, रायहाणी-दक्खिणेणं । इस कूट पर सुमेघा देवी निवास करती है, इसकी राजधानी दक्षिण में है। (४) एवं हेमवए कूडे (४) इसी प्रकार हेमवतकूट हैदक्खिणिल्लस्स भवणस्स पच्चत्थिमेणं, दाहिण-पच्चत्थि- यह दक्षिणी भवन से पश्चिम में है, दक्षिण-पश्चिमी प्रासादामिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पुरथिमेणं । वतंसक से पूर्व में है। हेममालिनी देवी, रायहाणी-दक्खिणेणं । इस कूट पर हेममालिनी देवी निवास करती है, इसकी राजधानी दक्षिण में है। (५) एवं रययकूडे (५) इसी प्रकार रजतकूट हैपच्चथिमिल्लस्स भवणस्स दक्खिणेणं, दाहिण-पच्चत्थि- यह पश्चिमी भवन से दक्षिण में है, दक्षिण-पश्चिमी प्रासादामिल्लस्स पासायवडेंसगस्स उत्तरेणं । वतंसक से उत्तर में है। २ जम्बुद्दीवे दीवे मंदरपव्वए णंदणवणे णवकूडा पण्णत्ता; तं जहा-गाहा-(१) णंदणे, (२) मंदरे चेव, (३) णिसहे, (४) हेमवते, (५) रयय, (६) रुयएय । (७) सागरचित्ते, (८) वइरे, (६) बलकूडे चेव बोद्धव्वं । -ठाणं ६, सु० ६८९
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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