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सूत्र ४७२.४८०
तिर्यक् लोक : कूट वर्णन
गणितानुयोग
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४७२. (२) जंबुद्दीवे दीवे सुकच्छे दोहवेयडढपब्बए णवकूडा पण्णत्ता, ४७२. (२) जम्बूद्वीप द्वीप के सुकच्छविजय में दीर्घवैताढ्य पर्वत तं जहा-गाहा
पर नौ कूट कहे गये हैं, यथा-गाथा१सिद्ध २ सुकच्छे ३ खंडग, ४ माणी ५ वेयड् ६ पुण्ण (१) सिद्धायतनकूट, (२) सुकच्छ विजयकूट, (३) खण्डप्रपात
____७ तिमिसगुहा। कूट, (४) माणिभद्रकूट, (५) वैताढ्यकूट, (६) पूर्णभद्रकूट,' (७) ८ सुकच्छे ६ वेसमणे य, सुकच्छे कूडाण णामाई। तिमिस्रगुफाकूट, (८) सुकच्छविजयकूट, (९) वैश्रमणकूट, सुकच्छ
विजय में ये कूटों के नाम हैं। ४७३. (३-८) एवं-जाव-पोक्खलावइम्मि दीहवेयड्ढे ।
४७३. (३-८) इसी प्रकार-यावत्-पुष्कलावती विजय में दीर्घ
वैताढ्यपर्वत पर नौ कूट हैं । ४७४. (६) एवं वच्छे दीहवेयड्ढे ।
४७४. (E) इसी प्रकार वत्सविजय में दीर्घवैताढ्यपर्वत पर नौ
४७५. (१०-१६) एवं-जाव-मंगलावइम्मि दीहवेयड्ढे । ४७५. (१०-१६) इसी प्रकार-यावत्-मंगलावर्तविजय में
दीघंवैताढ्यपर्वत पर नौ-नौ कूट हैं। ४७६. (१७) जंबुद्दीवे दीवे पम्हे बीहवेयड्ढपब्वए णव कूडा पण्णत्ता, ४७६. (१७) जम्बूद्वीप द्वीप के पक्ष्मविजय में दीर्घवैताढ्यपर्वत तं जहा-गाहा
पर नौ कूट कहे गये हैं, यथा-गाथार्थ१ सिद्धे २ पम्हे ३ खंडग, ४ माणी ५ वेयड्ढ ६ पुण्ण (१) सिद्धायतनकूट, (२) पक्ष्मविजय कूट, (३) खण्डप्रपातकूट,
७ तिमिसगुहा। (४) मणिभद्रकूट, (५) वैताढ्य कूट, (६) पूर्णभद्रकूट, (७) तिमिस्र ८ पम्हे ६ वेसमणे य, पम्हे कूडाण णामाई ॥ गुफाकूट, (८) पक्ष्मविजयकूट, (६) वैश्रमणकूट । पक्ष्मविजय में ये
कूटों के नाम हैं। ४७७. (१८-२४) एवं-जाव-सलिलाव इम्मि दीहवेयड्ढे ।
४७७. (१८-२४) इसी प्रकार-यावत -सलिलावती विजय में
दीर्घ वैताढ्यपर्वत पर नौ-नौ कूट हैं। ४७८. (२५) एवं वप्पे दीहवेयड्ढे ।
४७८. (२५) इसी प्रकार वप्रविजय में दीर्घवंताठ्यपर्वत पर नौ
कूट हैं। ४७९. (२६.३२) एवं-जाव-गंधिलावइम्मि दोहवेयड्पवए णव ४७६, (२६-३२) इसी प्रकार-यावत्-गंधिलावतिविजय में कूडा पण्णत्ता, तं जहा—गाहा
दीर्घवैताढ्यपर्वत पर नौ कूट कहे गये हैं, यथा-गाथार्थ१ सिद्ध २ गंधिल ३ खंडग, ४ माणी ५ वेयड्ढ ६ पुण्ण (१) सिद्धायतनकूट, (२) गंधिलावतिविजयकूट, (३) खण्ड
७ तिमिसगुहा। प्रपातकूट, (४) मणिभद्रकूट, (५) वैताढ्यकूट, (६) पूर्णभद्रकूट, ८ गंधिलावइ, ६ वेसमणे, कूडाण होंति णामाई ॥ (७) तिमिस्रगुफाकूट, (८) गंधिलावतिविजयकूट, (३) वैश्रमणकूट,
ये कूटों के नाम हैं। एवं सब्बेसु दीहवेयड् ढपव्वएसु दो कूडा सरिसणामगा, इस प्रकार सभी दीर्घवैताढ्यपर्वतों पर दो कूटों (द्वितीय और सेसा तं चेव।
-ठाणं ६, सु० ६८६ अष्टम के) नाम समान हैं शेष कूटों के नाम वे ही हैं । णंदणवणे णवकूडा
नन्दनवन में नो कूट४८०.५०–णंदणवणे णं भते ! कइ कूडा पण्णता?
४८०. प्र०-हे भगवन् ! नन्दनवन में कितने कूट कहे गये हैं ? उ०-गोयमा ! णव कूडा पण्णत्ता', तं जहा
उ०-हे गौतम ! नो कूट कहे गये हैं, यथा१ णंदणवणकूडे, २ मंदरकूडे, ३ णिसहकूडे, (१) नन्दनवन कूट, (२) मन्दर कूट, (३) निषधकूट,
१ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति वक्षस्कार ६ सूत्र १२५–'णव मंदर कूडा' कहा है इसका अर्थ होता है-'मन्दर पर्वत के नौ कूट हैं'।
इस सूत्र में 'णंदणवणे णव कूडा' कहा है, इसका अर्थ होता है-'नन्दनवन में, मन्दर पर्वत के नौ कूट हैं' दोनों पाठों का वह संयुक्त भावार्थ है।