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________________ २८६ लोक- प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : कूट वर्णन २ ३ ४ 1 १ माणिभद्दकूडे २ वेअड्ढकूडे, ३ पुण्णभद्दकूडे - एए तिण्णि कूडा कणगमया', सेसा छप्पि रयणमया ।] दोहं विसरिणामया देवा – १ कयमालए चेव, २ णट्टमालए चैव सेसाणं छ सरिणामया गाहा— जण्णा मया य कूडा, तन्नामा खलु हवंति ते देवा । पलिओवमट्टिइया, हवंति पत्तेयं पत्तेयं ॥ रापहाणीओ- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं तिरिअं असंखेदीय समूह बीता अम्ममि जंबुद्वीने दोवे वारस जोगसहस्सा ओगाहिता एत्थ रापहाणीओ भाग याओ, विजयरावाणी सरिसपाओ । - जंबु० वक्ख० १, सु० १४ १ सिद्धे २ एरवए ३ खंडे ४ माणी ५ वेयड्ढ ७ तिमिसगुहा । एरवए ६ वेसमणे, एरवए कूडणामाई ॥ - ठाणं ६, सु० ६८९ महा विदेहवासे बत्तीसविजय दीवेय दडपण्यएस दुसय अट्ठासीइकूडा सूत्र ४६६-४७१ (१) मणिकूर (२) बताइयकूट और (३) पूर्णभ ये तीन कूट कनकमय है, शेष छः रत्नमय हैं । एरवए वासे दीवेयद्दे नवकूडा ऐरवत क्षेत्र में दीर्घ वैताद्यपर्वत पर नी कूट ४७०. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं एरवए वासे दीह ४७० जम्बूद्वीप द्वीप में मंदर पर्वत के उत्तर में ऐरवत क्षेत्र में वेयड्ढे पव्व णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा- गाहा दीपं वेतादय पर्वत पर नौ कूट कहे गये हैं, यथा-गावार्थ १ सिद्धे २ कच्छे ३ खंडग, ४ माणी ५ वेयड्ढ ६ पुण्ण ७ तिमिसगुहा । कच्छे वेसमणेय, कच्छे कूडाण णामाई ॥ दो कटों के देवों के नाम विसर मालदेव, (२) नृतमालदेव, शेष छः सदृश हैं, गाथार्थ जो कूटों के नाम हैं वे ही कूटाधिप देवों के नाम हैं । प्रत्येक देव की स्थिति एक-एक पल्योपम की है। राजधानियां - (असमान हैं, (१) कृत कूटों के देवों के नाम कूट जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत से दक्षिण में तिरछे असंख्यद्वीप समुद्रों को लांघने पर अन्य जम्बूद्वीप में बारह हजार वजन जाने पर इनकी राजधानियां कहनी चाहिए इन राजधानियों का वर्णन विजय देव की राजधानी के समान जानना चाहिए। (१) सिद्धायतनकूट, ( २ ) ऐरवतकूट, (३) खण्डप्रपातकूट, (४) माणिभद्रकूट, (५) वेताढ्यकूट, (६) पूर्णभद्रकूट, (७) तिमिस्रगुफा (4) रक्तकूट, (२) वैधमणकूट ऐवत क्षेत्र में ये कूटों के नाम हैं । ४७१. (१) जंबुद्दीवे दीवे कच्छे दीहवेयड्डपव्वए णवकूडा पण्णत्ता, ४७१. (१) जम्बूद्वीप द्वीप के कच्छविजय में दीर्घवताढ्यपर्वत पर तं जहा - गाहानौ कूट कहे गये हैं, यथा-गाथार्थ - महाविदेह क्षेत्र के बत्तीस विजयों में बत्तीस दीर्घवताय पर्वतों पर दो सौ अवासी कूट प्रत्येक विजय में प्रत्येक दीर्घवेताढ्यपर्वत पर नौ-नौ फूट (१) (२) विजय (३) पत कूट, (४) माणिभद्रकूट, (५) वैताढ्यकूट, (६) पूर्णभद्रकूट, (७) तिमिस्रगुफाकूट (८) कच्छ विजयकूट, (९) वैश्रमणकूट, कच्छविजय में ये कूटों के नाम हैं । १ष्ठरूपाणि पीणि कुटानि कनकमयानि भवन्ति... सर्वेवामपि तावानां भरतरायत महाविदेहविजयगतानां नव कूटेषु सर्वममानि वीणि त्रीणि कूटानि कनकमयानि ज्ञातव्यानि । महास्य कृतमालः स्वामी, खण्डप्रपातगृहाटस्य नृत्तमालः स्वामी..... जम्बू० वृति इस द्वितीय कूट का नाम 'दक्षिणार्ध ऐरावत कूट' समझना चाहिए । इस अष्टमकूट का नाम - 'उत्तरार्ध ऐरावत कूट' समझना चाहिए ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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