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________________ -सूत्र ४५५-४५७ तिर्यक् लोक : कूट वर्णन गणितानुयोग २७६ फलिह-लोहिअक्खेसु भोगंकर-भोगवईओ देवयाओ' सेसेसु स्फटिककूट और लोहिताक्षकूट पर भोगंकरा और भोगवती सरिसणामया देवा । नाम को दो दिक्कुमारियाँ रहती हैं, शेष कूटों पर कूट सदृश नाम वाले देव रहते हैं। छ सु वि पासायवडेंसगा। इन छः कूटों पर प्रासादावतंसक है। रायहाणीओ विदिसासु । इन कट-देवों की राजधानियाँ मंदरपर्वत के उत्तर-पश्चिम मालवंत (गजदंतागार) वक्खारपव्वए णव कूडा- गजदन्ताकार माल्यवन्त वक्षस्कार पर्वत पर नौ कूट४५६. ५०-मालवते णं भंते ! वक्खारपव्वए कति कूडा पण्णत्ता? ४५६. प्र०-हे भगवन् ! माल्यवन्त वक्षस्कार पर्वत पर कितने कितने कूट कहे गये हैं ? उ०-गोयमा ! णवकूडा पण्णत्ता, तं जहा ____उ० -हे गौतम ! नौ कूट कहे गये हैं, यथा-- १ सिद्धाययणकूड. २ मालवंतकूड, ३ उत्तरकुरुकडे, (१) सिद्धायतनकूट, (२) माल्यवंतकूट, (३) उत्तरकुरुकूट, ४ कच्छकूड५, ५ सायर कूड , ६ रययकूड, ७ सीआ- (४) कच्छकूट, (५) सागरकूट, (६) रजतकूट, (७) शीताकूट, कुड, ८ पुण्णभकूड, ८ हरिस्सहकूड। (८) पूर्णभद्रक्ट, (६) हरिस्सहकूट । -जंबु० वक्ख० ४, सु० ६१ सिद्धाययणकूडाईणं अवट्ठिई पमाण च - सिद्धायतनकूट की अवस्थिति और प्रमाण४५७. ५०-कहि णं भंते ! मालवंते वक्खारपव्वए सिद्धाययण- ४५७. प्र०-हे भगवन् ! माल्यवन्त वक्षस्कार पर्वत पर सिद्धायतन कूड णाम कूडे पण्णते ? नामका कूट कहाँ कहा गया है ? उ.-गोयमा ! मंदरस्स पब्बयस्स उत्तर-पुरस्थिमे णं, माल- उ०-हे गौतम ! मंदर पर्वत के उत्तर-पूर्व में, माल्यवन्तकूट वंतस्स कूडस्स दाहिण-पच्चस्थिमे णं एत्थ णं सिद्धाय- के दक्षिण-पश्चिम में सिद्धायतनकूट नाम का कूट कहा गया है। यणकडे णामं कर पण्णत्ते । पंच जोयणसयाई उद्धं उच्चत्तेणं । यह पाँच सौ योजन ऊँचा है। अवसिळं तं चेव-जाव-रायहाणी । शेष सब राजधानी पर्यन्त वही हैएवं (२) मालवंतस्स कूडस्स, (३) उत्तरकुरुकू इस्स, इसी प्रकार (२) माल्यवतकूट, (३) उत्तरकुरुकूट, (४) (४) कच्छकूडस्स एए चत्तारि दिसाहि पमाणेहि और कच्छकूट इन चारों का दिशा प्रमाण जानना चाहिए। णअब्वा । कूडसरिसणामया देवा । - जंबु० वक्ख० ४ सु० ६१ कूट सदृश नाम वाले देव इन कूटों पर रहते हैं.... १ स्फटिककूट-लोहिताक्षकूटयोः पञ्चम-षष्ठयो गङ्करा भोगवत्यौ द्वे देवते दिक्कुमार्यो वसतः । -जम्बू० वृत्ति २ “एषां च राजधान्योऽसङ ख्याततमे जम्बूद्वीपे विदिक्षु उत्तर-पश्चिमासु" । -जम्बू० वृत्ति ३ माल्यवत्कूटं - प्रस्तुतवक्षस्काराधिपवासकूट । ४ उत्तरकुरुकूटं-उत्तरकुरुदेवकूटं । ५ कच्छकूट-कच्छविजयाधिपकूटं । ६ शीताकूटं-शीतासरित्सुरीकूटं । ७ पूर्णभद्रनाम्नो व्यन्तरेशस्य कूट-पूर्णभद्रकूटम् । ८ (क) हरिस्सह नाम्न उत्तरश्रेणिपतिविद्य त्कुमारेन्द्रस्य कूट-हरिस्सहकूटं । -जम्व० वृत्ति (ख) जम्बुद्दीवे दीवे मालवंतवखारपब्बए णव कूड़ा पण्णता। तं जहा-गाहा-(१) सिद्ध य, (२) मालवंते, (३) उत्तरकुरु, (४) कच्छ, (५) सागरे, (६) रयते । (७) सीता य, (९) पुण्णणामे, (६) हरिस्सहकूडे य बोद्धब्वे ।। -ठाणं. ६, सु० ६८६ .. प्रथम सिद्धायतनकूट मेरोरुत्तर-पूर्वस्यां दिशि, ततस्तस्य दिशि द्वितीयं माल्यवस्कूट, ततस्तस्यामेव दिशि तृतीयमुत्तरकुरुकूट, ततोऽप्यस्यां दिशि कच्छकूट, एतानि चत्वार्यपि कूटानि विदिग्भावीनि, मानतो हिमवत्कूट प्रमाणानीति ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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