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________________ सूत्र ४४६-४५३ तिर्यक् लोक ः कूट वर्णन गणितानुयोग २७७ पढमं सीआए उत्तरेणं, चउत्थए नीलवंतस्स वासहर- प्रथम कूट शीता (महानदी) के उत्तर में है, चतुर्थकूट नीलबंत पव्वयस्स दाहिणेणं-एत्थ णं चित्तकूडे णामं देवे' वर्षधर पर्वत के दक्षिण में है, इस पर्वत पर चित्रकूट नाम का महिद्धीए-जाव-रायहाणी' सेत्ति । महधिक देव रहता है-यावत्-राजधानी मेरु से उत्तर में है। -जंबु० वक्ख० ४, सु० ६४ पम्हकूडवक्खारपव्वए चत्तारि कूडा पद्मकूट वक्षस्कार पर्वत पर चार कूट'४५०. ५०-पाकडे णं भंते ! वक्खारपव्वए कति कूडा पण्णता? ४५०. प्र०-हे भगवन् ! पद्मकूट वक्षस्कार पर्वत पर कितने कूट कहे गये हैं ? उ०—गोयमा ! पम्हकडे चत्तारि कूडा पण्णत्ता, तं जहा- उ०-हे गौतम ! पद्मकूट वक्षस्कार पर्वत पर चार कूट कहे १ सिद्धाययणकूडे, २ पम्हकूडे, ३ महाकच्छकूडे, गये हैं, यथा-(१) सिद्धायतनकूट, (२) पद्मकूट, (३) महा४ कच्छावइकूडे । कच्छकूट, (४) कच्छावति कूट । एवं-जाव- अट्ठो। इस प्रकार-यावत्-नाम के हेतु पर्यन्त जानना चाहिए। ४५१. ५०-से केण8 णं भते एवं वुच्चइ–'पम्हकूडे, पम्हकूडे ।' ४५१. प्र०-हे भगवन् ! यह पद्मकूट क्यों कहा जाता है ? उ०-गोयमा ! पम्हकूडे इत्थ देवे महिद्धीए पलिओवमट्ठिईए उ०-हे गौतम ! यहाँ एक पल्योपम की स्थिति वाला पद्मपरिवसइ। कूट नाम का एक महधिक देव रहता है। से तेणटुणं गोयमा ! एवं वुच्चइ–“पम्हकूडे, पम्ह- हे गौतम ! इस कारण से पद्मकूट पद्मकूट कहा जाता है । -जबु. वक्ख० ४, मु० ६५ णलिणक डवक्खारपव्वए चत्तारिक डा नलिनकूट वक्षस्कार पर्वत पर चार कूट४५२. ५०–णलिणकूडे णं भंते ! वक्खारपब्वए कतिकूडा पण्णता? ४५२. प्र०—हे भगवन् ! नलिनकूट वक्षस्कार पर्वत पर कितने कूट कहे गये हैं। उ०-गोयमा ! चत्तारि कूडा पण्णत्ता, तं जहा उ०-हे गौतम ! चार कूट कहे गये हैं, यथा१ सिद्धाययणकूडे, २ णलिणकूडे, ३ आवत्तकूडे, (१) सिद्धायतनकूट, (२) नलिनकूट, (३) आवर्तकूट, (४) ४ मंगलावत्तकूडे । मंगलावर्तकूट । एए कूडा पंचसइया । __ ये कूट पाँच सो योजन ऊँचे है । रायहाणीओ उत्तरेणं । -जंबु० वक्ख० ४, सु० ६५ इनकी राजधानियाँ मेरु पर्वत से उत्तर में है । एगसेलवक्खारपव्वए चत्तारि कडा एकल वक्षस्कार पर्वत पर चार कूट४५३. ५०-एगसेले गं भंते ! वक्खारपव्वए कति कूडा पण्णता? ४५३. प्र०-हे भगवन् ! एकशैल वक्षस्कार पर्वत पर कितने कूट कहे गये हैं ? उ०-गोयमा ! चत्तारि कूडा पण्णत्ता, तं जहा उ०-हे गौतम ! चार कूट कहे गये हैं, यथा१ सिद्धाययणकूडे, २ एगसेलकूडे, ३ पुक्खलावत्तकूडे, (१) सिद्धायतनकूट, (२) एकशैलकूट, (३) पुष्कलावर्तकूट, ४ पुक्खलावईकूडे । (४) पुष्कलावती कूट । १ अत्र चित्रकूटनामा देवः परिवसति तद्योगाच्चित्रकूट इति नाम । २ अस्य राजधानी मेरोरुत्तरतः शीताया उत्तरदिग्भावि-वक्षस्काराधिपतित्त्वात् । एवमग्रेतनेष्वपि वक्षस्कारेषु यथासम्भवं वाच्यमिति । -जम्बू० वृत्ति ३ “यावत्करणात्"-समा उत्तर-दाहिणणं पहप्परंतीत्यादिग्राहा।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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