SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 435
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७६ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : कूट वर्णन सूत्र ४४७-४४६ WWWWWWWWWWWWWW ६. सिहरीवासहरपव्वए इक्कारसकूडा ६. शिखरीवर्षधर पर्वत पर इग्यारह कूट४४७. ५०-सिहरिम्मि णं भंते ! वासहरपब्वए कइ कूडा पण्णत्ता? ४४७. प्र०-हे भगवन् ! शिखरी वर्षधर पर्वत पर कितने कूट कहे गये हैं ? उ०-गोयमा ! इक्कारसकूडा पण्णत्ता, तं जहा उ०-हे गौतम ! इग्यारह कूट कहे गये हैं । यथा१ सिद्धाययणकूडे, २ सिहरीकूडे, ३ हेरण्णवयकूडे, (१) सिद्धायतनकूट, (२) शिखरीकूट, (३) हैरण्यवतकूट, ४ सुवण्णकूलाकूडे, ५ सुरादेवीकूडे, ६ रत्ताकूडे, (४) सुवर्णकूलाकूट, (५) सुरादेवीकूट, (६) रक्ताकूट, (७) लक्ष्मी७ लच्छोकूडे, ८ रत्तवईकूडे, ६ इलादेवीकूडे, कूट, (८) रक्तवतीकूट, (६) इलादेवीकूट, (१०) ऐरवतकूट, १० एरवयकूडे, ११ तिगिच्छकूडे । (११) तिगिच्छकूट । सब्वे वि एए कूडा पंचसइआ।' ये सभी कूट पांच सौ योजन ऊँचे हैं। रायहाणी उत्तरेणं । (इन कूट-देवों की) राजधानियाँ (मदरपर्वत से) उत्तर -जंबु० वक्ख० ४, सु० १११ में है। दो कूडा बहुसमतुल्ला-- दो कूट अधिक सम एवं तुल्य हैं४४८. एवं (जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं) सिहरिम्मि ४४८, इसी प्रकार (जम्बूद्वीप में मंदर पर्वत के उत्तर में) शिखरी वासहरपब्बए दो कडा पण्णत्ता, बहुसमतुल्ला-जाव-परिणाहणं, वर्षधर पर्वत पर दो कूट कहे गये हैं, ये अधिक सम एवं तुल्य हैं तं जहा–१ सिहरीकूडे चेव, २ तिगिछिकूडे चेद। -यावत् –परिधि में एक-दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं, -ठाणं २, उ० ३, सु० ८७ यथा-(१) शिखरीकूट, (२) तिगिच्छकूट । छण्णउइं वक्खारकूडा वक्षस्कार कूट छिनवेसोडससु सरल वक्खारपव्वएसु चउसट्ठी क डा- सोलह सरल वक्षस्कार पर्वतों पर चौसठ कूट चित्तक ड-वक्खारपव्वए चत्तारि कूडा-- चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत पर चार कूट४४६. ५०-चित्तकूडे णं भंते ! वक्खारपव्वए कतिकूडा पण्णता? ४४६. प्र०-हे भगवन् ! चित्रकूट वक्षस्कार पर्वतों पर कितने कूट कहे गये हैं ? उ०—गोयमा ! चत्तारि कूडा पण्णत्ता, तं जहा ___उ०-हे गौतम ! चार कूट कहे गये हैं, यथा१ सिद्धाययणकूडे, २ चित्तकूडे, ३ कच्छकूडे, (१) सिद्धायतनकूट, (२) चित्रकूट, (३) कच्छकूट, (४) ४ सुकच्छकूडे, समा उत्तर-दाहिणणं परुप्परंति । सुकच्छकूट, चारों कूट उत्तर-दक्षिण में परस्पर सम है। १ (क) सव्वे वि णं वासहरकूडा पंच पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चतेग मूने पंच पंच जोपणसयाई विक्वं भेणं पण्णत्ता । -सम० १०८, सु०२ (ख) जम्बू-मंदर-दाहिणुत्तरे गं दुवालसकूडा जम्बू-मंदर-दाहिणे णं छ कू डा पण्णता, तं जहा(१) चुल्लहिमवंत कू डे, (२) वेसमणकूडे, (३) महाहिमवंतकूडे, (४) वेरुलिया डे, (५) णिसढकूडे, (६) रुयगकूडे । जम्बू-मंदर-उत्तरे णं कुछ डा पण्णत्ता तं जहा(१) णीलवंतकडे, (२) उवदंसणकूडे, (३) रुप्पिकू डे, (४) मणिकंचणकूडे, (५) सिहरीकडे, (६) तिगिच्छकुडे । -ठाणं ६, सु० ५२२ परस्परमेतानि चत्वार्यपि उत्तर-दक्षिणभावेन समानि-तुल्यानीत्यर्थः तथाहि-प्रथमं सिद्वायततकूटं द्वितीयस्य चित्रकूटस्य दक्षिणस्यां, चित्रकूटं च सिद्धायतन कूटस्योत्तरस्यां एवं प्राक्तनं प्राक्तनं अग्रेतनाद् अग्रेतनाद्दक्षिणस्या अग्रेतनमग्रेतन प्राक्तनात् प्राक्तनाद् उत्तरस्यां ज्ञेयं.... २ पर
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy