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________________ सूत्र ४४३-४४६ . तिर्यक् लोक : कूट वर्णन गणितानुयोग २७५ ४ णीलवंत वासहरपन्थए णव कूडा ४. नीलवंत वर्षधर पर्वत पर नौ कूट४४३. ५०–णीलवंते णं भंते ! वासहरपव्वए कइ कूडा पण्णत्ता? ४४३. प्र०-हे भगवन् ! नीलवंत वर्षधर पर्वत पर कितने कूट कहे गये हैं ? उ०-गोयमा ! णव कडा पण्णत्ता, तं जहा उ०-हे गौतम ! नौ कूट कहे गये हैं, यथा१ सिद्धाययणकूडे, २ णीलवंतकूडे, ३ पुवविदेहकूडे, (१) सिद्धायतनकूट, (२) नीलवंतकूट, (३) पूर्वविदेहकूट, ४ सीआकडे, ५ कित्तिकूडे, ६ णारिकताकूडे, ७ अवर- (४) सीताकुट, (५) कीतिकूट, (६) नारिकान्ताकुट, (७) अपरविदेहकूडे, ८ रम्मगकूडे, ह उवदसणकूडे ।' विदेहकूट, (८) रम्यक् कूट, (६) उपदर्शनकूट । सब्बे एए कूडा पंचसइया। ये सभी कूट पांच सो योजन ऊँचे हैं । रायहाणीओ उत्तरेणं । (इन कूट-देवों की) राजधानियाँ (मंदर पर्वत से) उत्तर -जंबु० वक्ख० ४, सु० ११० में है। दो क डा बहुसमतुल्ला ___ दो कूट अधिक सम एवं तुल्य हैं४४४. जंबुट्टीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उतरेणं णीलवते वासहर- ४४४. जम्बूद्वीप द्वीप में मंदर पर्वत के उत्तर में नीलवंत वर्षधर पव्वए दो कूडा पण्णत्ता, बहुसमतुल्ला-जाव-परिणाहेणं, तं पर्वत पर दो कूट कहे गये हैं, ये अधिक सम एवं तुल्य हैं-यावत्जहा-१ णीलवतकूडे चेव, २ उवदंसणकूडे चेव। परिधि में एक-दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं, यथा-(१) -ठाणं २, उ० ३, सु० ८७ नीलवंत कूट, (२) उपदर्शनकूट । ५. रुप्पी वासहरपव्वए अट्ठक डा ५. रुक्मी वर्षधर पर्वत पर आठ कूट१४ प्पिमि णं भंते ! वासहरपव्वए कइ कूडा पण्णत्ता? ४४५. प्र०-हे भगवन् ! रुक्मी वर्षधर पर्वत पर कितने कट कहे गये हैं ? उ० --गोयमा ! अट्ठकूडा पण्णत्ता, तं जहा उ०-हे गौतम ! आठ कूट कहे गये हैं, यथा१ सिद्धाययणकूडे, २ रुप्पिकूडे, ३ रम्मकूडे, ४ नरकंत- (१) सिद्धायतनकूट, (२) रुक्मीकूट, (३) रम्यक्कूट (४) कडे, ५ बुद्धिकूडे, ६ महापुण्डरीअकूड, ७ रुप्पकूला- नरकान्ताकूट, (५) बुद्धिकुट, (६) महापुण्डरीककूट, (७) रुप्यकलाकूडे, ८ हेरण्णवयकूडे (मणिकञ्चणकूडे ।) कूट, (८) हैरण्यवत कूट (मणि-कंचनकूट)। सब्वे वि एए कूडा पंचसइया । ये सभी कूट पांच सौ योजन ऊंचे हैं । रायहाणीओ उत्तरेणं । (इन कूट-देवों की) राजधानियाँ (मंदर पर्वत से) उत्तर -जंबु० वक्ख० ४, सु० १११ में है। दो कडा बहुसमतुल्ला दो कूट अधिक सम एवं तुल्य है-- १४ जंबडीचे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेण) पिमि ४४६ इसी प्रकार (जम्बूद्वीप द्वीप में मंदरपर्वत के उत्तर में) रुक्मी वासहरपवए दो कडा पप्णत्ता-जाब-परिणाहणं, तं जहा- वर्षधर पर्वत पर दो कूट कहे गये हैं। ये अधिक सम एवं तुल्य हैं१ रुप्पिकडे चेब, २ मणिकंचणकूडे चेव । । यावत् परिधि में एक-दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं, यथा --ठाणं २, उ० ३, सु० ८७ (१) रुक्मीकूट, (२) मणि कंचनकूट । -ठाणं ६, सु० ६८६ १ जम्बट्टीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स, उत्तरे णं णीलवंते वासहरपब्वा णवकूडा पण्णत्ता, तं जहा - गाहा-(१) सिद्ध (२) णीले (३) पुव्वविदेहे. (४) सीया य (५) कित्ति (६) णारी अ। (७) अवरविदेहे (८) रम्मगकूडे (६) उवदंसणे चेव ।। २ जम्बट्टीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं रुप्पिमि वासहरपव्वए अट्ट कुडा पण्णत्ता तं जहागाहा-(१) सिद्ध य (२) रुप्पि (३) रम्मग, (४) नरकन्ता (५) बुद्धि (६) रुप्पकुडे य । (७) हिरण्णवए (८) मणिक चणे य रुप्पिम्मि कुडा उ ।। -ठाणं ८, सु० ६४३
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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