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लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : कूट वर्णन
सूत्र ४३६-४४२
२. महाहिमवंतवासहरपव्वए अट्ठकडा
२. महाहिमवान् वर्षधर पर्वत पर आठ कूट४३६. प० – महाहिमवंते णं भंते ! वासहरपब्वए कइ कूडा ४३६. प्र०-हे भगवन् ! महाहिमवान् वर्षधर पर्वत पर कितने पण्णता?
कूट कहे गये हैं ? उ०-गोयमा ! अट्ठकूडा पण्णत्ता, तं जहा
उ०—हे गौतम ! आठ कूट कहे गये हैं यथा१ सिद्धाययणकूडे, २ महाहिमवंतकूडे, ३ हेमवयकूडे, (१) सिद्धायतन कूट, (२) महाहिमवान् कूट, (३) हैमवत ४ रोहियकडे, ५ हिरिदेवीकूडे, ६ हरिकंतकूडे, कूट, (४) रोहितकूट, (५) ह्रीदेवीकूट, (६) हरिकताकूट, (७) ७ हरिवासकूडे, ८ वेरुलियकूडे ।'
हरिवर्षकूट, (८) वैडूर्य कूट । एवं चुल्ल हिमवंत कूडाणं जा चेव वत्तवया सच्चेव क्षुद्र हिमवान् पर्वत के कूटों का जो कथन है वही इनका
णयव्वा । -जम्बु० वक्ख० ४, सु० ८२ जानना चाहिए। दो कूडा बहुसमतुल्ला
दो कूट अधिक सम एवं तुल्य है४४०. जंबुद्दीवे दीवे मंदरपव्वयस्स दाहिणेणं महाहिमवंते वासहर- ४४०. जम्बूद्वीप द्वीप में मंदरपर्वत के दक्षिण में महाहिमवान्
पम्वए दो झूडा पण्णता बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्ण- वर्षधर पर्वत पर दो कूट कहे गये हैं, ये अधिक सम एवं तुल्य हैं, मण्णं नाइवट्टन्ति, आयाम-विक्खंभुच्चत्त-संठाण-परिणाहेण, इनमें एक-दूसरे से विशेषता एवं नानापन नहीं है, लम्बाई चौड़ाई तं जहा–१ महाहिमवंतकूडे चेव, २ वेरुलियकूडे चेव। ऊँचाई, आकार एवं परिधि में एक-दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते
–ठाणं २, उ० ३, सु० ८७ हैं, यथा-(१) महाहिमवान् कूट, (२) वैडूर्यकूट । ३. णिसहवासहरपब्वए नवकूडा
३. निषध वर्षधर पर्वत पर नो कूट४४१. ५० -णिसढे णं भंते ! वासहरपब्वए णं कति कूडा पण्णत्ता? ४४१. प्र०-हे भगवन् ! निषध वर्षधर पर्वत पर कितने कूट
कहे गये हैं ? उ०-गोयमा ! णव कुडा पण्णत्ता, तं जहा--
___उ०-हे गौतम ! नौ कूट कहे गये हैं, यथा१ सिद्धाययणकूडे, २ णिसढकूडे, ३ हरिवासकूडे, (१) सिद्धायतन कूट, (२) निषधकूट, (३) हरिवर्षकूट, (४) ४ पुष्वविदेहकूडे, ५ हरिकूडें, ६ धिईकूडे, ७ सीओआ- पूर्व विदेहकूट, (५) ह्रीकूट, (६) धृतिकूट, (७) शीतोदाकूट, कूडे, ८ अवरविदेहकूडे, ६ रुअगकूडे ।२ . (८) अपरविदेहकूट, (९) रुचककूट । एवं चुल्लहिमवंतकूडाण जा चेव वत्तव्वया सच्चेव क्षुद्र हिमवान् पर्वत के कूटों का जो कथन है, वही इनका णेयव्वा ।
-जंबु० वक्ख० ४, सु० ८४ जानना चाहिए । दो कूडा बहुसमतुल्ला
दो कूट अधिक सम एवं तुल्य है४४२. एवं (जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं) णिसढे वास- इसी प्रकार (जम्बूद्वीप द्वीप में मंदर पर्वत के दक्षिण में)
हरपत्रए दो कूडा पण्णत्ता बहुसमतुल्ला-जाव-परिणाहे गं, निषध वर्षधर पर्वत पर दो कट कहे गये हैं, ये अधिक सम एवं तं जहा–१ णिसढकूडे चेव, २ रुयगप्पभे चेव ।
तुल्य है -यावत्-परिधि में एक-दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते -ठाणं २, उ० ३, सु० ८७ हैं, यथा-(१) निषध कूट, (२) रुचक प्रभकूट ।
-ठाणं ८, सु० ६४३
१ जम्बूद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्वयस्स दाहिणणं महाहिमवते वासहरपव्वए अट्टकूडा पण्णत्ता, त जहागाहा-(१) सिद्व (२) महाहिमवंते, (३) हिमवंते (४) रोहिया (५) हरीकूडे ।
(६) हरिकन्ता, (७) हरिवासे, (८) बेरुलिए चेव कूडा उ । २ जम्बूद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणणं णिसहे वासहरपव्वए णव कूडा पण्णता, तं जहा.गाहा–(१) सिद्ध (२) णिसहे (३) हरिवास, (४) विदेह (५) हरि (६) धिति अ (७) सीतोदा।
(८) अवर विदेहे (९) रुयगे, णिसहे कडाण णामाणि ।।
- ठाणं ६, सु. ६८६